आजकल गहरी जुताई भी होने लगी है. इसका नुकसान यह है कि मिट्टी में गहरी अभी पुरानी जड़े उखड़ कर बाहर फिंक जाती हैं. उसके बाद रोटावेटर चलता है जो मिट्टी को पूरा धूल धूल कर देता है, जबकि मिट्टी में गहरी दबी यह पुरानी जड़े नालियों की तरह काम करती हैं. एक तरह से पौधों के लिए सुरंग बन जाती है. जिनके सहारे से पौधों की जड़े गहराई से भी जल की प्राप्ति कर सकती हैं. ऐसे में पौधों की जड़े तो मजबूत होती ही हैं उनकी जल पूर्ति भी होती रहती है. आप ऊपर से फल-फूल रहे मक्का को देखकर अंदाजा नहीं लगा सकते लेकिन हो सकता है वह 15 फीट नीचे से पानी पी रहा हो.
गर्मियों में जंगल में छोटे पौधे बिना पानी के भी नहीं मरते. जबकि खेतों में आप कुछ भी लगा दो वह 2 दिन में ही पानी न मिलने से मरने लगेगा. ऐसे में यह भी समझना जरूरी है कि जैविक तत्व एवं मिट्टी की सरंचना को नष्ट करने से बचाना भी जैविक खेती का एक हिस्सा है सही तरीके से तैयार की गई जमीन में भूमिगत जल भी इस्तेमाल हो सकता है.
यदि खाद दवाई एवं तेल का खर्च कम हो जाएगा, पानी आसानी से मिलेगा, मिट्टी स्वस्थ रहेगी तो जैविक खेती रसायन की तुलना में सफलता के निकट स्वत: ही पहुंच जाएगी. जैविक खेती एवं रासायनिक खेती की तुलना करें तो रासायनिक में समय के साथ नुकसान बढ़ता है और पर्यावरण जलवायु मिट्टी सब की क्षमता खत्म होती जाती है, जबकि जैविक में यह निरंतर बढ़ती है.
जैविक खेती को मूल रूप से चार भागों में बांटा जा सकता है. जैसे मिट्टी, पौधों, कीटो पर नियंत्रण एवं जलवायु. जिस पर वर्तमान स्थितियों को देखते हुए कर सकते हैं इस पर हमारा नियंत्रण नहीं. लेकिन इसके अलावा अन्य के लिए स्वस्थता का सिद्धांत अपनाकर हम कृषि, मनुष्य, पौधे ,जीव जंतु एवं जलवायु सभी को स्वस्थ रख सकते हैं जो कि जैविक खेती का एक मूलभूत सिद्धांत भी है. यदि रासायनिक खेती में देखें तो यह चारों अलग-अलग होते हैं. लेकिन जैविक में देखें तो यह चारों जुड़े हुए हैं. एक दूसरे पर निर्भर करते हैं. क्रमशः - रबीन्द्रनाथ चौबे कृषि मीडिया बलिया उत्तरप्रदेश.
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