केंद्र सरकार पर आम चुनाव से पहले किसानों की कर्ज माफी का दबाव बढ़ रहा है. कई राज्यों में कांग्रेस नीत सरकारों की ऋण छूट की घोषणाओं ने मोदी सरकार को किसानों के हित में सकारात्मक कदम उठाने के लिए विवश कर दिया है. मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक जल्द ही सरकार कुछ अहम फैसले ले सकती है. जिसमें किसान क्रेडिट कार्ड(केसीसी) के तहत दो लाख रूपये तक की ऋण सीमा को बढ़ाकर दोगुना किया जाना शामिल है. साथ ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना(पीएमएफबीवाई) के अंतर्गत कवरेज बढ़ाये जाने की भी संभावना है. इसके अलावा बीमा के दावों का तेजी से निपटान सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया जाएगा.
वर्ष के खत्म होने में अब महज कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. आने वाला साल किसानों के लिहाज से कई मायनों में खास साबित हो सकता है. अगले साल देश में लोकसभा चुनाव होने हैं इसलिए केंद्र सरकार किसानों के हक में कुछ कदम उठा सकती है. हालाँकि, सरकार इसमें किस हद तक कामयाब हो पाती है इसका अंदाजा लगाना अभी जल्दबाजी होगी. सरकारी सूत्रों की मानें तो सरकार इस मुद्दे पर काफी गंभीर दिख रही है. इस संबंध में नीति आयोग, कृषि और वित्त मंत्रालय के साथ सभी संभावित कदमों पर चर्चा कर रहा है, जिसमें कर्ज-माफी भी शामिल है.
'इकोनॉमिक टाइम्स' में एक अधिकारी के हवाले से खबर लिखी गई है जिसके मुताबिक सरकार सरंचनात्मक सुधार शुरू करने के लिए कई नीतिगत कदम उठा रही है. सरकार का कहना है कि कर्जमाफी किसानों की समस्या के लिए रामबाण नहीं है लेकिन राजनीतिक परिदृश्य को मद्देनजर रखते हुए ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा. फिलहाल, फसल बीमा योजना की कुछ विशेषताओं को बढ़ाने के अलावा केसीसी की सीमा बढ़ाने पर भी बातचीत चल रही है. इसके साथ ही कृषि ऋणों के वर्गीकरण पर भी कुछ चर्चा हो सकती है. वर्तमान में किसानों को नया ऋण पाने के लिए पुराने लोन के मूलधन और ब्याज दोनों चुकाने पड़ते हैं.
11 दिसंबर को आए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे बीजेपी के अनुकूल नहीं रहे थे. हिंदी हार्ट लैंड में शामिल तीन राज्यों में पार्टी को सत्ता गंवानी पड़ी थी. इन राज्यों में किसानों के मुद्दे हावी रहे थे. तभी से इस बात के आसार मिलने शुरू हो गए थे कि मोदी सरकार 2019 आम चुनाव से पहले किसानों के लिए कोई बड़ा फैसला ले सकती है. इन राज्यों में झटका लगने के बाद आने वाला बजट भी किसानों और ग्रामीण आबादी पर केंद्रित रहने का अनुमान है.
आंकड़ों के मुताबिक, देश में 2.37 लाख करोड़ रुपये की कुल सीमा के 4 करोड़ से अधिक केसीसी खाते हैं. केसीसी दिशानिर्देशों के तहत, भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को 1 लाख रुपये तक के ऋणों के लिए मार्जिन आवश्यकताओं को माफ करने की अनुमति दी है. इसके साथ ही बैंक, अतिरिक्त सुरक्षा पर जोर दिए बिना 3 लाख रुपये तक की कार्ड सीमा तक फसलों के अनुमान के आधार पर ऋण को मंजूरी देने पर विचार कर सकते हैं.
सरकार, केसीसी को 'रूपे एटीएम-कम-डेबिट किसान क्रेडिट कार्ड(आरकेसीसी) में बदलने के लिए बैंकों पर जोर डाल रही है क्योंकि इससे धनराशि प्राप्त करने में आसानी हो जाती है. हालाँकि, विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार को ऋणों को दोगुना करने की बजाय अधिक प्रभावी कदम उठाने की जरुरत थी. इससे दीर्घावधि में सुधार होने के विकल्प बनते हैं.
केंद्रीय बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व स्वतंत्र निदेशक, एमपी शोरावाला ने कहा, "सरकार को कर्ज माफी की बजाय उन किसानों को अधिक कर्ज देने की जरुरत है जिन्होंने अपने बकाया लोन का भुगतान कर दिया है. इससे अन्य किसानों को भी लोन चुकाने के लिए प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है. कई राज्यों के कृषि कर्ज माफी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इससे वित्तीय संकट बढ़ाने हालांकि, शोरावला ने कहा कि कृषि क्षेत्र में खराब ऋण, कॉर्पोरेट्स की तुलना में कम हैं.
आंकड़ों के अनुसार इस साल मार्च तक कृषि और इससे संबंधित क्षेत्र में कुल फंसा कर्ज 85,344 करोड़ रुपये था. देश की सूचीबद्ध वाणिज्यिक बैंकों का कुल बैड लोन पोर्टफोलियो 8.45 लाख करोड़ रुपये था. पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने कृषि ऋण माफी योजनाओं की घोषणा की है. केंद्र सरकार पर देशव्यापी कर्ज माफी योजना की घोषणा करने का दबाव है. 2008 में अंतिम राष्ट्रीय ऋण माफी की घोषणा की गई थी और लागत 52,000 करोड़ रुपये थी.
रोहिताश, कृषि जागरण
Share your comments