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अद्भुत धरोहर है बिहार की मंजूषा पेंटिंग, जीआई टैग मिलने के बाद बाजार में है भारी मांग, जानें पहचान और विशेषताएं

मंजूषा पेंटिंग भारत की प्राचीन लोककलाओँ में से एक है. इस कला का विशेष प्रभाव अंग प्रदेश की पौराणिक कथाओँ पर ही आधारित है. जिसमें कहानी का चित्रण किया जाता है. मंजूषा कला को सूचिबद्ध कला भी कहते हैं.ये कला बिहार के भागलपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों की कला है. मंजूषा कला अंग प्रदेश की एक बहुत बड़ी बिरासतों में से एक है

सावन कुमार
सावन कुमार
manjusha painting of bihar
manjusha painting of bihar

बिहार की मधुबनी पेंटिंग की तरह ही है मंजूषा कला . इस कला को भी कपड़ों पर उकेरा जाता है. मंजूषा कला भारत की एक ऐसी अनोखी लोककला है जिसमें कहानी का चित्रण किया जाता है. मंजूषा कला को सूचिबद्ध कला भी कहते हैं. ये कला बिहार के भागलपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों की कला है. मंजूषा कला अंग प्रदेश की एक बहुत बड़ी बिरासतों में से एक है. वैदिक इतिहारकारों की मानें तो मंजूषा कला पर सिंधु-घाटी सभ्यता का अच्छा  प्रभाव देखने को मिलता है. एक अध्ययन के अनुसार यह कला प्रचीन अंग महाजनपद को इतिहास को उकेरती है. साथ ही ये पेंटिंस बिहुला बिषहरी की कहानी को भी दर्शाती है.

      मंजूषा पेंटिंग एक प्राचीन कालीन पेंटिंग है. जो लोगों को अपनी तरफ काफी आकर्षित करती है. इस कला को वैश्विक पहचान भी मिली है. इस पेंटिंग को जीआई टैग तो मिला फिर भी इस पेंटिंग को विशेष पहचान नहीं मिल पाई. आईये जानते हैं इस कला के बारें में विस्तार से...

क्या है मंजूषा कला

मंजूषा कला भारतीय कला का सबसे प्राचीन लोककलाओँ में से एक है . ये कला अंग प्रदेश की विशेषताओँ को वर्णित करता है. साथ ही साथ अंग प्रदेश की लोककथा बिहुला बिषहरी के बारे में भी मंजूषा कला के माध्यम से बताई जाती है. इस कला में एक मोटी और लंबी लाइन का प्रयोग किया जाता है साथ ही बालों को लाइन के माध्यम से नहीं बल्कि रंगों से दिखाया जाता है. इस कला में देवी-देवताओं और अंग प्रदेश के इतिहास के साथ साथ बिहुला-विषहरी की कथा को दर्शाया जाता है जिसमें पांच जहरीली बहनों के साथ एक सांप दिखाने की परंपरा है. जहां पात्रों के बाल खुले रहते हैं. चित्रों के माध्यम से बिहुला को उसके खुले केश और उसके सामने मंजूषा (नाग) को चित्रों को उकेरा जाता है. इस चित्र में एक ऐसी देवी को दर्शाया जाता है जो दाहिने हाथ में अमृत कलश लिए हुए रहती है.

      इस कला में मुख्यरुप से गुलाबी, पीले और हरे रंग को भी उपयोग किया जाता है. इस कला में जो देवी-देवताओं या महिलाओँ की चित्र बनाई जाती हैं उसमें उनकी सज्जा का बहुत महत्व रखा जाता है. कभी- कभी इस कला में हरा और नारंगी रंग के जुड़े सामान्य सहायक रंगों का भी उपयोग किया जाता हे.

क्या है बिहुला- विषहरी

बिहार के अंग प्रदेश में आज भी पौराणिक काल से चली आ रही बिहुला-विषहरी पूजा की परंपरा कायम है. बिहुला-विषहरी में माता मनसा की पूजा होती है. मां मनसा को शिव पुत्री और महादेव के गले में हार बने बैठे वासुकी की बहन बताई गई है.

 किसी समय में अंग प्रदेश में चंद्रधर नाक के एक सौदागर थे. वह चंपानगर के बहुत बड़े व्यवसायी थे. साथ बी साथ वो एक शिव भक्त भी थे. विषहरी जो भगवान शिव की पुत्री कही जाती हैं उन्होंने चंद्रधर पर दबाव बनाया कि वे शिव की पूजा न करें बल्की उसकी पूजा करें. लेकिन चंद्रधर इस बात से राजी नहीं हुए. इसके बाद गुस्से में  विषहरी ने सौदागर के पूरे परिवार को खत्म करना शुरू कर दिया. सौदागर के छोटे बेटे जिनका नाम बाला लखेंद्र था उसकी शादी बिहुला नाम की एक लड़की से हुई.

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उसके प्राण की रक्षा के लिए सौदागर ने बांस का एक घर बनवाया ताकि उसमें एक भी छिद्र न रहें. विषहरी ने उसमें भी प्रवेश कर लखेन्द्र को डस लिया. सती हुई बिहुला अपने पति के शव को केले की थम से बने नाव में लेकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक पहुंच गई. इसके बाद वो पति के प्राण वापस लेकर ही लौटी. सौदागर भी विषहरी की पूजा के लिए राजी हुए लेकिन बाएं हाथ से तब से आज तक विषहरी पूजा में बाएं हाथ से ही पूजा होती है. सौदागर का बेटे के लिए बनाया हुआ घऱ आज भी चंपानगर में मौजूद है.

English Summary: manjusha painting of bihar manjusha art history significance of manjusha art Published on: 01 October 2023, 02:51 IST

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