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टैरिफ की आँधी में स्वदेशी की मशाल: एकजुट भारत का आर्थिक धर्मयुद्ध

भारत पर लगे अमेरिकी टैरिफ से उत्पन्न आर्थिक संकट का समाधान केवल नीतियों से नहीं, बल्कि जन सहयोग, राजनीतिक एकजुटता और स्वदेशी अपनाने से होगा. यह लेख आत्मनिर्भर भारत की दिशा में रणनीतिक पहल की मांग करता है.

KJ Staff
KJ Staff
Dr Rajaram Tripathi
डॉ. राजाराम त्रिपाठी, ग्रामीण अर्थशास्त्र एवं कृषि मामलों के विशेषज्ञ तथा अखिल भारतीय किसान महासंघ 'आईफा' के राष्ट्रीय संयोजक
  • रूस से सीखें : "रूस में मैंने किसी युवा को अमेरिकी पिज़्ज़ा,बर्गर,कोल्ड ड्रिंक के लिए लार टपकाते नहीं देखा; भारत के युवाओं को भी स्वदेशी विकल्प अपनाने चाहिए."

  • राजनीति से ऊपर उठकर: "टैरिफ की चुनौती पर दलगत राजनीति नहीं, सर्वदलीय एकजुटता ही देश की जीत सुनिश्चित करेगी."

  • स्वदेशी विकल्पों का विस्तार: "मेक इन इंडिया और MSME के माध्यम से अमेरिकी उत्पादों के सशक्त विकल्प तैयार करना अब समय की मांग है."

  • विकल्प बाजार की खोज: "यूरोप, खाड़ी देशों, रूस और ब्रिक्स देशों में व्यापार बढ़ाना अमेरिकी टैरिफ का प्रभावी जवाब है."

  • जन भागीदारी की शक्ति: "किसान, युवा और आम नागरिक अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार से स्वदेशी उद्योगों को नया जीवन दे सकते हैं."

 एकजुटता, आत्मनिर्भरता और विजय का रास्ता :

     हाल में लागू अमेरिकी 50% टैरिफ के बावजूद भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह आर्थिक युद्ध राजनीति से ऊपर उठकर लड़ना होगा. देश को जब समझने की जरूरत है कि, अब यह केवल आर्थिक मुद्दा नहीं है, यह सीधे सीधे देश के आत्मस्वाभिमान से जुड़ा मसला है.

 यह समय टैरिफ पर राजनीति करने का नहीं है. इस लड़ाई में केवल सरकार को ही नहीं, बल्कि सभी विपक्षी दलों को भी परस्पर अंतर्विरोधों को दरकिनार कर, देश  हित में शत-प्रतिशत सहयोग देना चाहिए. सत्ता की लड़ाई भले जारी रहे, पर विदेशी दबाव के अवसर पर राष्ट्रीय एकजुटता अनिवार्य है. इस एकजुटता ने ही हर कठिन परिस्थिति में भारत की जीत सुनिश्चित किया है.

      वास्तव में, अमेरिका ने एक झटके में दोस्ती का मुखौटा उतार कर फेंकते हुए भारत को टैरिफ के माध्यम से वैश्विक बाजार में दम घोटने वाले दबाव में लाने की कोशिश की है. 131.84 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार में भारत का निर्यात करीब 86.5 बिलियन डॉलर था, जिसमें कपड़ा, जूते, ज्वेलरी, फर्नीचर, कृषि उत्पाद, फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर शामिल थे. ट्रंप प्रशासन ने रूस से तेल खरीद के चलते अतिरिक्त 25% टैरिफ भी लगाया, जिससे कुल 50% का भार भारत पर पड़ा है. इससे हमारा लगभग 70% निर्यात प्रभावित हो सकता है. प्रभावित क्षेत्रों में पंजाब के कपड़ा उद्योग, उत्तर प्रदेश के चमड़ा व कालीन उद्योग जैसे लगभग हजारों करोड़ के उद्योग हैं, जहां लाखों की संख्या में लोग रोजगार पर निर्भर हैं. 

अमेरिका में मोबाइल, स्मार्टफोन, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स को छूट मिली है, जिससे तकनीकी निर्यात प्रभावित नहीं होगा. लेकिन कपड़ा, रत्न-आभूषण, जूते, कृषि उपकरण सहित कई उत्पादों पर भारी टैरिफ लगेगा, जिन पर भारत का निर्यात कुल 49.6 अरब डॉलर में घट सकता है. 

         विशेष रूप से मोंसेंटो (अब मॉरिसन कंपनी के अधीन), कारगिल, एमवे और नाइकी जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारत में व्यापार हजारों करोड़ों का है. किसानों के लिए मोंसेंटो के बीज और कृषि रसायन महत्वपूर्ण हैं, जबकि युवाओं के बीच नाइकी, एडिडास, अमवे जैसे उपभोक्ता ब्रांड लोकप्रिय हैं. नेस्ले के फूड एवं पेय उत्पाद भी भारतीय बाजार में प्रमुख हैं. इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विकल्प के विकास की दिशा में भारत तेजी से बढ़ रहा है, जो 'प्रधान मंत्री किसान समृद्धि योजना' और 'मेक इन इंडिया' जैसी योजनाओंके प्रभावी संचालन एवं समुचित क्रियान्वयन से संभव  हो सकता है. 

भारत सरकार को इस चुनौती का सामना बहुआयामी रणनीति से करना होगा. नई बाजार खोज, यूरोप, खाड़ी देश, रूस और ब्रिक्स देशों से व्यापार बढ़ाना, घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना और MSMEs को आंकड़ों से ऊपर उठकर सही मायने में मजबूत करना इसके मुख्य स्तंभ हैं. साथ ही, वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र तथा कई नवाचारी सफल किसानों द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों में नानाविध स्वदेशी कृषि उत्पाद, विभिन्न प्रकार की जैविक खाद, अच्छी परंपरागत बी जैविक उत्पादों से तैयार प्रभावी कीटनाशक तथा दवाइयां और बहुस्तरीय प्राकृतिक रक्षा प्रणाली विकसित किया गया है, जो कि बहुराष्ट्रीय कृषि उत्पादों का सशक्त विकल्प हैं.

इस लड़ाई में किसानों, उद्योगपतियों, युवाओं, आम नागरिकों और विपक्षी दलों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है.  ऐसे कठिन हालातो में यह जरूरी है कि राजनीतिक दल भी अपनी क्षुद्र दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस आर्थिक युद्ध में सरकार का साथ दें. विपक्षी दलों को इस चुनौती में केवल आलोचना नहीं, बल्कि सक्रिय सहयोग और विचारशील समर्थन भी देना चाहिए ताकि देश की एकता और ताकत दिखे.

युवाओं और आम नागरिकों को चाहिए कि वे अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार के माध्यम से सूक्ष्म स्तर पर राष्ट्र-आर्थिक स्वावलंबन में योगदान दें. देश में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता वाले स्वदेशी वस्त्र, जूते, आभूषण और फूड सप्लीमेंट आदि पर्याप्त मात्रा में अनेकों विकल्प उपलब्ध हैं. ऐसे में यह बहिष्कार देश में रोजगार के नए द्वार खोलेगा और स्वदेशी उद्योगों को सशक्त करेगा.

अमेरिकी टैरिफ और प्रतिबंधों के विरोध में एक स्पष्ट रणनीति यह भी होनी चाहिए कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर यथासंभव प्रतिबंध लगाए, उनकी कंपनियों के उत्पादों का बहिष्कार हो, और घरेलू कंपनियों को बढ़ावा दिया जाए.

 हाल ही में कि मैंने रुस की यात्रा की तथा उनकी अर्थव्यवस्था को नजदीक से देखने समझने का प्रयास किया.  रूस पर तो अमेरिका ने लगातार हर स्तर पर, हर संभव प्रतिबंध लगाए तथा उसकी आर्थिक व्यवस्था को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. यूक्रेन युद्ध के बाद तो अधिकांश अमेरिका कंपनियों ने वहां से अपना कारोबार भी समेट लिया. मास्टर कार्ड, वीजा कार्ड  जैसी वैश्विक वित्तीय सेवा कंपनियों ने भी रूस को सेवा देना बंद कर दिया अमेजन,गुगल ने भी रूस के लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए. पर इससे हुआ क्या?  शुरुआती परेशानियों के बाद रूस ने इन सब के प्रभावी स्थानीय विकल्प तैयार कर लिए, और वहां की अर्थव्यवस्था मजे से चल रही है. *वहां मैंने किसी युवा को केएफसी और मैकडॉनल्ड के पिज़्ज़ा के लिए या पेप्सी-कोला के लिए लार टपकाते नहीं देखा. उनके स्थानीय ब्रांड गुणवत्ता से लेकर हर मापदंड पर अमेरिकी ब्रांड से किसी मायने में कम नहीं हैं. वहां अमेजॉन,गुगल का शक्तिशाली स्थानीय विकल्प स्थापित तरीके से कार्य कर रहा है.

आज हमारी जरूरत है कि, रूस की तरह वैकल्पिक बाजार,  और व्यापार रास्ते निकाले जाएं जिसके कारण अमेरिका के टैरिफ से भारत की अर्थ-व्यवस्था के लड़खड़ाए कदम जल्द से जल्द फिर से मजबूत हों. यह आत्मनिर्भरता हमारी अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक मजबूती देगी.

नीचे भारत की बहुउद्देशीय रणनीति के 7- सात महत्वपूर्ण बिंदु दिए जा रहे हैं :-

  • कूटनीतिक संतुलन और सहयोग के साथ संदेहास्पद टैरिफ का जवाब देना.

  • अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए बहुअक्षीय व्यापार विस्तार,व विदेशी बाजारों में वैकल्पिक निर्यात लक्ष्य जानें और बढ़ाएं.

  • स्वदेशी उत्पादन की गुणवत्ता तथा उत्कृष्टता को बढ़कर आत्मनिर्भरता को नीति द्वारा सशक्त बनाएं

  • स्वदेशी कृषि उद्योगों और भारतीय कृषि उत्पादों को सशक्त बनाने की नीति.

  • सफल कृषि नवाचारों को बढ़ावा तथा उनका विकास एवं तीव्र विस्तार.

  • एक राष्ट्र के रूप में इस चुनौती का सामना करने के लिए सर्वदलीय समिति का गठन किया जाए . विपक्ष तथा सभी दल राजनीति से ऊपर उठकर इस मुद्दे पर एकजुट होकर कार्य करें.

  • हमारे युवाओं और आम जनता द्वारा अमेरिकी उत्पादों का स्वदेशी विकल्प अपनाकर शत-प्रतिशत अनिवार्य राष्ट्रीय बहिष्कार.

यह रणनीति न केवल वर्तमान टैरिफ संकट से निपटने में मदद करेगी बल्कि भारत को वैश्विक आर्थिक मंच पर अधिक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने में सहायता करेगी. किसान, आम नागरिक, छात्र, नीति निर्माता, और उद्योग सभी को एकीकृत प्रयास करना होगा ताकि अमेरिकी टैरिफ की चुनौती को अवसर में बदला जा सके.

सरकार के प्रोत्साहन एवं त्वरित नीतिगत फैसलों से वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत के पैर मजबूत होंगे. तकनीकी हस्तांतरण, सुविधाजनक वित्तपोषण, क़ानूनी सुधार और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को भ्रष्टाचार मुक्त तथा निष्पक्ष और पारदर्शी बनाते हुए  इनके प्रभावी क्रियान्वयन पर ठोस कार्य करने की जरूरत है, यह लंबे समय में आर्थिक आत्मनिर्भरता की नींव साबित हो सकता है.

यह लड़ाई सिर्फ व्यापार का मुद्दा नहीं है, यह भारत की आत्मा, संकल्प, स्वाभिमान और उसके आर्थिक स्वावलंबन की लड़ाई है. पिछली बार जैसे हमने 1971 के युद्ध, 1991 के आर्थिक संकट और कोविड काल को जीतकर अपने देश को मजबूत बनाया, वही जज्बा अब इस टैरिफ युद्ध में भी दिखाना होगा. हर भारतीय के भीतर यह विश्वास होना चाहिए कि हम ना केवल लड़ेंगे, बल्कि जीतेंगे भी.

इस आर्थिक युद्ध में जीत की कुंजी है एकता, धैर्य, समझदारी और आत्मनिर्भरता का संयोजन. हमें यह समझना होगा कि यह समय केवल सरकार का नहीं, पूरे देश का संघर्ष है. युवा, किसान, उद्योगपति, विद्यार्थी, गृहणियां और नीति निर्माता,,, हम सभी को अपने हिस्से की भूमिका इमानदारी से निभानी होगी.

भारत की अर्थव्यवस्था इस समय मजबूती के शिखर पर है. हम न केवल टैरिफ की मार को सहन करने के लिए तैयार हैं, बल्कि उसे अवसर में बदलने के लिए आगे भी बढ़ रहे हैं. यह वह समय है जब हम सभी मिलकर संकल्प लें कि विदेशी दबावों के आगे झुकेंगे नहीं, देश की आत्मा और शक्ति के साथ खड़े रहेंगे.

यही भावना, यही जज्बा हमें विजयी बनाएगा. हम आराम से अमेरिकाओं के टैरिफ से लड़ेंगे, समझदारी से मुकाबला करेंगे और जीत का परचम लहराएंगे. क्योंकि भारत की असल ताकत गिरते- चढ़ते आंकड़ों में नहीं है बल्कि उसके लोगों के अदम्य आत्मविश्वास, मेहनत,देश के प्रति समर्पण और एकजुटता में है.

English Summary: India economic response to us tariffs swadeshi movement national unity aatmanirbhar bharat Published on: 01 September 2025, 11:28 IST

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