शुरू से भारत की आर्थिक स्थिति का आधार कृषि रहा है क्योंकि पूर्वजों के समय से ही भारत में खेती होती आई है। यहां तक कि भारतीय खेती से अंग्रेजों ने आजादी के पहले अच्छी कमाई की थी इसलिए कृषि भारत की आर्थिक स्थिति में एक बहुत बड़ी भूमिका निभा रही है। पिछले 30 सालों में कृषि में बड़े बदलाव हुए हैं। पहले भूमि अधिक थी तो कृषि भी बड़े स्तर पर हो रही थी लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी तो खेती की भूमि भी कम हो गई। इस स्थिति में कम भूमि में अधिक कृषि उत्पादन लेना एक समस्या बन गई है। कम भूमि में अधिक उत्पादन लेने के लिए जरुरत है बेहतरीन तकनीक वाली मशीनरी, गुणवत्ता वाले उच्च किस्म के बीज, उच्च कोटि के खाद एवं उर्वरक। अधिक फसल उत्पादन लेने में कारगर इन उत्पादों के उत्पादन में एक बहुत ही अहम किरदार कृषि संस्थानों का है।
जब भारत में कृषि क्रांति की शुरुआत हुई तो वो भी एक कृषि संस्थान के महान वैज्ञानिक द्वारा ही हुई थी। देश की कृषि को विकसित किया जा सके इसके लिए सन् 1905 में पूसा में भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान का गठन किया गया। देश के हर एक कोने में कृषि विकास को ले जाया जा सके इसके लिए कृषि संस्थानों, अनुसन्धान केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालयों का गठन किया गया। इन संस्थानों में कृषि वैज्ञानिकों, कृषि के विद्यार्थियों और किसानों को एक-साथ जोड़ा गया।
देशभर में इन संस्थानों से सम्बद्ध अलग-अलग राज्यों में 45 कृषि विश्वविद्यालय, 5 डीम्ड विश्वविद्यालय, 4 केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, 63 राज्यस्तरीय कृषि संस्थान, 6 राष्ट्रीय ब्यूरो, 16 राष्ट्रीय अनुसन्धान केंद्र और 13 डायरेक्टेरेट ऑफ रिसर्च मौजूद हैं। यह संस्थान, विश्वविद्यालय और अनुसन्धान केंद्र देशभर में कृषि के हालात सुधारने के लिए कार्य कर रहे हैं। इन कृषि संस्थानों ने किसानों तक हाइब्रिड बीज, कृषि मशीनरी और नवीनीकरण को पहुंचाने का कार्य बखूबी किया है। भारत की कृषि क्रांति के पीछे इन संस्थानों ने बहुत अहम भूमिका निभाई है लेकिन अभी भी कृषि संस्थान पूरी तरह से किसानों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इसके लिए कृषि संस्थानों के प्रसार विभाग को और मजबूत करने की जरुरत है। यही नहीं इसमें सरकार के कृषि विभाग की सक्रिय भागीदारी भी जरुरी है ताकि ये सभी कृषि संस्थान और अधिक सक्रियता के साथ काम कर सकें।
कुछ मुख्य अनुसन्धान केंद्र जैसे राष्ट्रीय कपास अनुसन्धान केंद्र, राष्ट्रीय अंगूर अनुसन्धान केंद्र, गन्ना अनुसन्धान केंद्र, केन्द्रीय भैंस अनुसन्धान केंद्र, भारतीय सब्जी अनुसन्धान संस्थान काफी सराहनीय कार्य कर रहे हैं। समय-समय पर कृषकों के लिए कृषि वार्ता, सम्मेलनों, प्रशिक्षण कार्याशालाओं का आयोजन कर यह सभी संस्थान अपना योगदान कृषि को विकास की ओर ले जाने में दे रहे हैं। हालांकि अभी नई तकनीकों के माध्यम से अधिक उत्पादन लेना व आय में इजाफा करने के लिए काफी प्रयास करने बाकी हैं लेकिन यदि किसान भाई पंरपरागत खेती व पशुपालन के तरीकों में नवीन तकनीकों के माध्यम से बदलाव लाते हैं तो उनके विकास को कोई नहीं रोक सकता। यदि सभी एक ही स्तर पर काम करें तो भारतीय कृषि में एक और बड़ी क्रांति आ सकती है। कृषि और किसान दोनों के विकास में इन संस्थानों ने बहुत ही अहम भूमिका निभाई है। इन पर थोड़ा ध्यान देने की और आवयश्कता है।
एम.सी. डोमिनिक
कृषि जागरण नई दिल्ली
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