इस हफ्ते के आखिर में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति, देश की मुद्रास्फीति को परखने के लिए बैठक करेगी. मुद्रास्फीति के आधार पर रेपो दर को निर्धारित किया जाएगा. इस बैठक में मुद्रास्फीति को कमज़ोर करने वाले कारकों पर विचार किया जाएगा. इस साल अगस्त में आरबीआई ने रेपो रेट में बढ़ोतरी की थी. फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के आधार पर यह फैसला लिया गया था. हालाँकि ताजा अध्ययनों के मुताबिक केंद्रीय बैंक ने एमएसपी संबंधी डर को किनारे रख दिया है और आने वाली बैठक में रेपो रेट में बदलाव किया जा सकता है. यह कदम किसानों को नुकसान पहुंचा सकता है.
हाल ही में प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका 'ईपीडब्लू' में एस. मोहनकुमार और प्रेमकुमार का लेख प्रकाशित हुआ है. इस लेख में एमएसपी और मुद्रास्फीति के बीच के संबंधों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है. वित्त वर्ष 2005-06 से 2017-18 के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर लेखक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि मुद्रास्फीति और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के बीच सांख्यिकी आधारित कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं है. लेखकों का तर्क है कि देश के अधिकतर किसान अपनी फसल को एमएसपी पर नहीं बेच पाते हैं इसलिए एमएसपी और मुद्रास्फीति के बीच संबंधों को इस आधार पर भी ख़ारिज किया जा सकता है. बताते चलें कि देश में चावल, गेहूं और कपास जैसी प्रमुख फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था है.
लेखकों ने इसके लिए 'नीति आयोग' की उस रिपोर्ट का भी हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि देश के महज 10 फीसदी किसानों को ही फसल बोने से पहले उसके एमएसपी के बारे में जानकारी होती हैं.
उपरोक्त तर्कों के आधार पर कहा जा सकता है कि आरबीआई द्वारा रेपो रेट में वृद्धि का कदम अनुचित और विपरीत परिणाम देने वाला हो सकता है. चूँकि, किसान अपने उत्पादन के लिए जमा धन पर अधिक भरोसा करते हैं. रेपो दर में वृद्धि से बैंक लोन की दर में बढ़ोतरी होगी जिसके चलते कृषि में इस्तेमाल होने वाले उत्पादों की आपूर्ति कीमतों में इजाफा होगा. इसलिए, पहले से ही कर्ज में फंसे किसानों के लिए आरबीआई का यह कदम नुकसानदायक हो सकता है.
बैंक कर्ज की बढ़ी हुई दरों से एमएसपी में बढ़ोतरी होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. अगर ऐसा हुआ तो किसानों के लिए यह एक राहत भरा फैसला हो सकता है. हालाँकि, ऐसा होने का कम ही अनुमान है.
एक व्यापक निष्कर्ष पर पहुंचे तो इस अध्ययन में रेपो रेट में वृद्धि को कृषि क्षेत्र के लिए घातक बताया गया है. लेखकों का तर्क है कि रेपो दर में बढ़ोतरी से भारत में कृषि संकट को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही यह छोटे कृषि व्यवसायों को भी नुकसान पहुंचा सकता है.
रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण
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