"ग्लेडियोलस" शब्द का निर्माण लैटिन भाषा के शब्द 'ग्लेडियस' से हुआ है, जिसका अर्थ 'तलवार' है क्योंकि ग्लेडियोलस की पत्तियों का आकार तलवार जैसा होता है... इसके आकर्षक फूलों को फलोरेट भी कहा जाता हैं,जो पुष्प दंडिका 'स्पाइक' पर विकसित होते हैं और ये 10 से 14 दिनों तक खिले रहते हैं... इसका उपयोग कट-फ्लावर के रूप में गमलों एवं गुलदस्तों में भी किया जाता है... ग्लेडियोलस की लोकप्रियता कुछ मुख्य विशेषताओं के वजह से बढ़ते जा रही है... जैसे सीमित संसाघन में अधिक लाभ देना, आसान खेती, शीघ्र पुष्प प्राप्ति, पुष्पों के विभिन्न रंगों, स्पाइक की अधिक समय तक तरोताजा रहने की क्षमता एवं कीट-रोगों के कम प्रकोप आदि...
भूमि एवं जलवायु:
ग्लेडियोलस की खेती के लिए उपजाऊ एवं उत्तम जल निकासी वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती हैं... चिकनी मिट्टी की अवस्था में खेती से पहले इसमें पर्याप्त देसी खाद डालें, जिसका पी.एच. 5.5 से 6.5 के मध्य होना अनिवार्य हैं... इसके लिए 16 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्तम हैं व 7 डिग्री सेल्सियस से नीचे और 32 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान पौध वृद्धि पर विशेष तौर पर पुष्प उत्पादन में बाधक हैं... यह एक शीत ऋतु की फसल है और इसे लंबे दिन व तीव्र रोशनी की जरूरत होती है...
ग्लेडियोलस की किस्में:
ग्लेडियोलस में विभिन्न रंगों की अनेक उत्तम गुणवत्ता वाली प्रजातियां प्रचलित हैं जो निम्न प्रकार हैं...
लाल : अमेरिकन ब्यूटी, ऑस्कर, नजराना, रेड ब्यूटी
गुलाबी : पिंक फ्रैंडशिप, समर पर्ल
नारंगी : रोज सुप्रीम
सफेद : ह्वाइट फ्रैंडशिप, ह्वाइट प्रोस्पेरिटी, स्नो ह्वाइट, मीरां
पीला : टोपाल, सपना, टीएस-14
बैंगनी : हरमैजस्टी
किस्में की पैदावार :-
क्रमांक संख्या |
किस्म |
|
1. |
White prosperity |
यह किस्म 110-120 दिनों में पक जाती है... इसकी 75 सैं.मी. की डंडी पर 17 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं... |
2. |
Nova Lux |
यह किस्म 110-120 दिनों में पक जाती है... डंडी की लंबाई 79 सैं.मी. होती है जिस पर पीले रंग के फूलों का उत्पादन होता है... प्रत्येक पौधा लगभग 47 गांठे तैयार करता है... |
3. |
Urovian |
यह किस्म 110-120 दिनों में पक जाती है... इसकी 84 सैं.मी. की डंडी पर 16 लाल छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं... |
4. |
Golden Melody |
यह किस्म 90-100 दिनों में पक जाती है... इसकी 87 सैं.मी. की डंडी पर 15 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं... प्रत्येक पौधा लगभग 67 गांठे तैयार करता है और इसके किस्म हल्के पीले रंग के फूल होते हैं... |
5. |
Snow Princess |
यह किस्म 80-90 दिनों में पक जाती है... इसकी 65 सैं.मी. की डंडी पर 11-14 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं... प्रत्येक पौधा लगभग 15 गांठे तैयार करता है और यह किस्म सफेद रंग के फूल तैयार करती है... |
6. |
Silvia |
यह किस्म 120 दिनों में पक जाती है... इसकी 75 सैं.मी. की डंडी पर 13-15 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं... प्रत्येक पौधा लगभग 15 गांठे तैयार करता है और यह किस्म सुनहरे पीले रंग के फूल तैयार करती है... |
7. |
Sansray |
यह किस्म 120 दिनों में पक जाती है... इसकी 75.5 सैं.मी. की डंडी पर 15-17 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं... प्रत्येक पौधा लगभग 91 गांठे तैयार करता है और यह किस्म सफेद रंग के फूल तैयार करती है... |
8. |
Suchitra |
यह किस्म 90-95 दिनों में पक जाती है... इसकी 83 सैं.मी. की डंडी पर 15-16 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं... प्रत्येक पौधा लगभग 85 गांठे तैयार करता है और यह किस्म गुलाबी रंग के फूल तैयार करती है... |
9. |
Mayur |
यह किस्म 100-110 दिनों में पक जाती है... इसकी 76.6 सैं.मी. की डंडी पर 14-16 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं... प्रत्येक पौधा लगभग 88 गांठे तैयार करता है और यह किस्म जामुनी रंग के फूल तैयार करती है... |
10. |
Punjab Pink Elegance |
इस किस्म की डंडियां सजावट के उद्देश्य से उपयोग की जाती हैं... यह किस्म 86 दिनों में तैयार हो जाती है... प्रत्येक पौधा लगभग 39 छोटे आकार की गांठे तैयार करता है... यह किस्म हल्के गुलाबी रंग के फूल तैयार करती है और इसकी डंडी लंबी होती है... |
11. |
Punjab flame |
इस किस्म की डंडियां सजावट के उद्देश्य से उपयोग की जाती हैं... यह किस्म 114 दिनों में तैयार हो जाती है... प्रत्येक पौधा लगभग 60 छोटे आकार की गांठे तैयार करता है... यह किस्म हल्के गुलाबी लाल रंग के फूल तैयार करती है जो मध्य में से लाल रंग के होते हैं... |
12. |
Punjab Glance |
इस किस्म की डंडियां सजावट के उद्देश्य से उपयोग की जाती हैं... यह किस्म 78 दिनों में तैयार हो जाती है... प्रत्येक पौधा लगभग 14 छोटे आकार की गांठे तैयार करता है... यह किस्म संतरी रंग के फूल तैयार करती है और इसकी डंडी लंबी होती है... |
13. |
Punjab Lemon Delight |
इसे सजावटी उद्देश्य से उपयोग किया जाता है... यह किस्म 80 दिनों में तैयार हो जाती है... प्रत्येक पौधा लगभग 11 छोटे आकार की गांठे तैयार करता है... यह किस्म हल्के पीले रंग के फूल तैयार करती है और इसकी डंडी लंबी होती है... |
14. |
Punjab Glad 1 |
यह किस्म 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है... इसकी 84 सैं.मी. की डंडी पर 15 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं... प्रत्येक पौधा लगभग 44 गांठे तैयार करता है और यह किस्म संतरी रंग के फूल तैयार करती है...
|
ग्लेडियोलस लगाने का समय एवं दूरी :
ग्लेडियोलस की घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय मांगों को देखते हुए इसकी बुवाई अप्रैल माह से जून माह तक छोड़कर पूरे वर्ष की जाती है और वर्ष भर पर ही इसके फूल उपलब्ध रहते हैं...
जुलाई से दिसंबर मैदानी क्षेत्रों में व मार्च-अप्रैल पहाड़ी क्षेत्रों में लगाने के लिए उपयुक्त समय है... किस्मों का चुनाव सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि विभिन्न किस्मों के तापमान की आवश्यकतए भिन्न भिन्न है...
इसे 15 से 30 दिन के अंतर पर बार-बार लगाने से निरंतर फूल मिलते रहते हैं... पौधे से पौधे की दुरी 20 सेंटीमीटर व पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर उचित है... उत्तम गुणवत्ता के फूल प्राप्त करने के लिए कम से कम 5 सेंटीमीटर व्यास कंद 0.2 प्रतिशत बाविस्टिन के टैंक में 15 से 30 मिनट डुबोने के बाद ही लगाना चाहिए... कंद 5-7 सेंटीमीटर गहराई पर लगाने चाहिए और प्रति एकड़ 7000 पौधों का समावेश किया जा सकता है...
भूमि की तैयारी और बुवाई :
जिस खेत में ग्लेडियोलस की खेती करनी हो उसकी 2-3 बार अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए... ग्लेडियोलस की खेती घनकंदों (कार्मस) द्वारा की जाती है,तथा इसकी बुवाई समयानुसार करनी चाहिए... तत्पश्चात सुविधाजनक आकार की क्यारियां बनाकर उन्हें उचित दूरी पर कंदों की बुवाई करें... किस्मों को उनके फूल खिलने का समय देख कर अगेती, मध्य और पछेती के हिसाब से अलग-अलग क्यारियों में लगाना चाहिए...
खाद एवं उर्वरक की मात्रा :
गली-सड़ी खाद : 5 किलोग्राम प्रति वर्ग मी.
नत्रजन : 30 ग्राम प्रति वर्ग मी.
फोस्फोरस : 20 ग्राम प्रति वर्ग मी.
पोटाश : 20 ग्राम प्रति वर्ग मी.
मिट्टी जनित फफूंदियों से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए हर बार उसी खेत में इसकी बागवानी न करें... रोपण के 30 दिन बाद 3 पत्ती व 6 पत्तियां आने पर हर बार 80-85 किलोग्राम किसान खाद का प्रयोग करें... 6 पत्तियां आने पर 65 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए...
सिंचाई :
इसकी सिंचाई की आवश्यकता मिट्टी एवं जलवायु पर निर्भर करती है, पहली सिंचाई घनकंदों के अंकुरण के बाद करनी चाहिए, इसके बाद सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल तथा गर्मियों में 5-6 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए... दोमट मिट्टी की अवस्था में 7 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें...
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण :
अधिक उत्पादन एवं गुणवत्ता के लिए फसल अवधि के दौरान चार से पांच बार निराई गुड़ाई करना आवश्यक है... जिससे खरपतवार नियंत्रण भी होता है... निराई गुड़ाई के समय पौधों के चारों ओर मिट्टी चढ़ाना जरूरी है... दो बार मिट्टी पौधों पर चढ़ानी चाहिये उसी समय नाइट्रोजन का प्रयोग टॉप ड्रेसिंग के रूप में करना चाहिए... तीन पत्ती की स्टेज पर पहली बार व् छः पत्ती की स्टेज पर दूसरी बार मिट्टी चढ़ानी चाहिए... रसायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए 1 लीटर बेसालिन प्रति एकड़ खेत तैयार करने के बाद कंदों के रोपण से पहले छिड़कने चाहिए...
पुष्प उत्पादन :
आमतौर पर अधिकतर ग्लेडियोलस की व्यवसायिक किस्मों से एक पुष्प डण्डी प्रति कंद/ पौधा प्राप्त होती हैं... परंतु अनेक ऐसी किस्मे है जो दो से अधिक पुष्प डंडियों की संख्या पर निर्भर हैं...
फूलों की कटाई:
घनकंदों की बुवाई के पश्चात अगेती किस्मों में लगभग 60-65 दिनों में, मध्य किस्मों 80-85 दिनों तथा पछेती किस्मों में 100-110 पुष्प उत्पादन शुरू हो जाता है... पुष्प दंडिकाओं को काटने का समय बाजार की दूरी पर निर्भर करता है... यदि पुष्प दूर भेजना हो तो डंडी की नीचे की कली में जैसे ही रंग दिखाई देना शुरू हो जाये तो काट लेना चाहिए... पुष्प डण्डी पर सबसे नीचे वाली कली के नीचे से इस प्रकार काटें की पौधे पर कम से कम चार पत्ते रह जाए... कटाई ठंडे मौसम में सुबह या सांय करें... काटने के लिए तेज धारदार चाकू अथवा ब्लेड का प्रयोग करें...
फूलों की पैकिंग :
इसकोसौ-सौ के गुच्छों में बांधकर बाजार में भेजना चाहिए... साधारण तौर पर 100X 25X 10 सेंटीमीटर आकार के गत्ते के डिब्बे प्रयोग किए जाते हैं...
कंदों की खुदाई :
पौधों से फूल काटने के 5 सप्ताह बाद पौधे सूख जाए तो कंदों को नन्ही कंदों के साथ खोद कर निकाल ले व बड़ी को अलग करें... कंदों की खुदाई से 2 से 3 सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए... तत्पश्चात एक सप्ताह तक छाया में सुखाने के बाद बाविस्टिन 0.2 प्रतिशत के घोल में 15 से 30 मिनट डुबोने के बाद सुखाकर हवादार स्थान पर शीतग्रह में भंडारण करें...
कमी और उसका उपचार :
आयरन की कमी: ग्लेडियोलस की फसल में आयरन की कमी के लक्षण पत्तों का पीला पड़ना है... जब पौधे के 3-6 पत्ते निकलते है तब फेरस सल्फेट 0.2% की स्प्रे करें यह आयरन की कमी का इलाज करती है...
कीट एवं बीमारियां :
कीट – ग्लेडियोलस पर किसी भीप्रकार केकीट का विशेष प्रकोप नहीं होता है...
बीमारियां :
उलेखा :यह ग्लेडियोलस की विनाशकारी बीमारी है... इससे ग्रसित होने पर दराती के आकार के पत्ते निकलते हैं... जिन परलाल लाल धब्बे निचले भाग पर नजर आते हैं व फलस्वरुप पत्ते पीले हो जाते हैं और पूरा पौधा मर जाता है...
उपचार : इसके नियंत्रण हेतु निम्न उपाय अपनाएं... खेत की मई-जून में गहरी जुताई करें... केवल स्वस्थ व फफूंदी मुक्त कंदों का प्रयोग करें... रोपण पूर्व कंदों को 2 प्रतिशत बाविस्टिन के घोल में 15 से 30 मिनट भिगोए।रोग के लक्षण नजर आते ही पूरे खेत अथवा हरित ग्रह में 2 प्रतिशत बाविस्टिन का जड़ को निशाना बनाकर छिड़काव करें... फलों का भंडारण पूर्ण 2 प्रतिशत बाविस्टिन से उपचारित करें। बचाव से तैयार कंधों से रोपण को प्राथमिकता दें... रोपण पूर्व कंदों को 57 सेल्सियस तापमान पर 30 मिनट तक पानी से उपचारित करें... एक ही खेत में बार-बार रोपण ना करें... मिट्टी को फार्मेलिन का छिड़काव करके काली पॉलीथीन की शीट से एक सप्ताह तक ढककर रखें...
कंद गलन :इसके फलस्वरुप भंडारण के दौरान कंद गल-सड़ जाते हैं...
उपचार :भंडारण से पूर्व रोग ग्रस्त की पूर्व ही छटनी कर दें... कंदों को 3% कैप्टान या बाविस्टिन से उपचारित करें... उचित तापमान पर हवादार स्थान पर वह पतली तहों में भंडारण करें।फसल के दौरान ही पौधों पर कैप्टान या बाविस्टिन का छिड़काव करें...
गांठो पर काला पन :यह बीमारी सेपटोरिया ग्लेडिओली के कारण होती है... इसके लक्षण गांठों पर अंदर की तरफ घसे हुए गहरे भूरे और काले रंग के घब्बे पड़ जाते है...
उपचार : इस बिमारी की रोकथाम के लिए गांठो को थिऑफनेट मिथाइल में 85-120 F तापमान पर और एप्रोडाइओन को अनुकूलित तापमान पर 15-30 मिनट भिगोएं...
जाडों का गलना : यह बीमारी मलोइडोगाइन इनकोगनिटा के कारण होती है... इसके लक्षण पतोंं का विकास रुक जाना सूखना और पीला पढना जडों का गलना आदि है...
उपचार : इसकी रोकथाम के लिए ऑक्जामिल की स्प्रे प्रभावित खेत में करे...
चितकबरा रोग :इस बीमारी के लक्षण पौधे का पीला पड़ना विकास का रुक जाना और रंग बिरंगे और गोल घब्बे आदि होते है...
उपचार : इसकी रोकथाम के लिए ऐसीफेट 600 ग्राम को 150 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति एकड़ पर स्प्रे करे...
पैदावार :इसकी औसतन पैदावार 40000 -125000 डडियां प्रति एकड़ और 7500-8000 गांठे प्रति एकड़ होती है...
सचि गुप्ता*,डा. अशोक कुमार**
*एम.एस.सी.(कृषि),उद्यान विज्ञान** सह प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष, पुष्प एवं भूदृष्य विज्ञान विभाग नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) 224229
Share your comments