प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 4 फरवरी 2016 को किसानों की सहायता के लिए एक योजना शुरू की गई थी. इस योजना का नाम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) है. इस योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य किसानों की फसल क्षति से हुए नुक़सान की भरपाई करना है. यह फसल क्षति बाढ़, आंधी, ओले, प्राकृतिक आपदा अथवा मानवनिर्मित आपदा आदि विभिन्न कारकों से हो सकती है.
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी आकड़ों से पता चलता है कि किसान तो फसल का प्रीमियम समय पर जमा कर देते हैं लेकिन बीमा कंपनी फसल बीमा का लाभ किसानों को समय से नहीं देती अथवा देती ही नहीं है. अगर हम पिछले तीन साल के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आकड़ें बताएं तो इस प्रकार हैं- साल 2016-17 में 577.234 , 2017-18 में 515. 438 और 2018-19 में 507.987 लाख हेक्टेयर जमीन के लिए बीमा करवाया गया. इन तीनों सालों में बीमा के लिए कंपनी द्वारा क्रमशः 21936.56, 25351.51 और 28452.81 करोड़ रुपये फसल बीमा के लिए वसूले गए. वहीं इन तीन साल में किसानों को फसल बीमा योजना के लिए दिया गया लाभ क्रमशः 16777. 05, 21858.97 और 21012.17 करोड़ रुपये है.
अब इन आकड़ों को देखकर ये सवाल उठता है कि आखिर किसानों द्वारा फसल बीमा योजना में लगाया गया पैसा गया कहां. इस पैसे से किसका लाभ हो रहा है, कंपनी का या किसानों अथवा बिचौलियों का? ये खबरें हमेशा सुनने में आती रहती हैं कि किसानों को फसल बीमा का लाभ नहीं मिल पा रहा है. जबकि किसान अपनी बीमा राशि समय पर जमा करते है. तो उन्हें भी समय पर ही बीमा का लाभ मिलाना चाहिए। इस बात के जवाब में राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आनंद कहते हैं कि इंश्योरेंस कंपनी व किसान के बीच राज्य सरकार (राजस्व विभाग) है. जबकि यह योजना केंद्र की है. यदि किसी क्षेत्र में किसानों की फसल क्षति होती है तो उसकी रिपोर्ट तहसीलदार और उसके अंतर्गत आने वाले कर्मचारी रिपोर्ट बनाते हैं. जबकि बीमा कंपनी फसल नुकसान का आंकलन स्काईमेट की रिपोर्ट से करती है. इन दोनों की मिलीभगत के कारण किसान को फसल नुकसान की भरपाई बीमा कंपनी से नहीं हो पाती. कई क्षेत्रों में ऐसा होता है जहां स्काईमेट की रिपोर्ट के कारण बीमा कंपनियां फसल नुकसान का आंकलन ही नहीं करतीं.
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