छत्तीसगढ़ की पहचान वन से भरे हुए राज्य के तौर पर की जाती है. लेकिन सबसे बड़ी समस्या यहां के उत्पादों की ब्रांडिंग नहीं होने से इनको राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार नहीं मिल पाया है.
आज वहां की वर्तमान सरकार की ओर से वनोपजों को बाजार मुहैया कराने के लिए किए गए प्रयासों का नतीजा यह है कि अब यहां के काजू और सहजन को पश्चिमी अफ्रीका के घाना में अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने वाला है. साथ ही काजू के निर्यात के लिए भी करार हो चुका है.
तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन (Three day conference)
छत्तीसगढ़ के कृषि, उद्यानिकी, लघु वनोपज और हथकरघा उत्पादों को अंतरार्ष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहन देने एवं इनकी बिक्री को बढ़ावा देने के लिए तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रेता- विक्रेता सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में बहरीन, ओमान, जापान, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, पौलेंड, बांग्लादेश, सिंगापुर सहित 16 देशों के 57 प्रतिनिधियों और भारत के विभिन्न राज्यों से 60 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
खरीददार और क्रेता विक्रेताओं के बीच समझौता (Agreement between buyer and seller)
इस सम्मेलन में हिस्सा लेने आए देशी- विदेशी क्रेता विक्रेता के बीच 33 करार हुए. जापान की एक कंपनी ने छत्तीसगढ़ के काजू को खरीदने के लिए करार किया है. खाद्य साम्रगी कंपनी ने मसूर दाल, धनिया , अलसी आदि का भी अनुबंध किया है.
घाना के कारोबारी को पसंद आया सहजन (Ghana businessman liked drumstick)
इसी तरह घाना से आए हुए कारोबारियों को राज्य की सहजन ने प्रभावित किया है.उनका कहना है कि सहजन में औषधीय गुण और आयरन की मात्रा अधिक है. इसके अलग-अलग किस्मों को अपने देश में उत्पादन करके पाउडर, बिस्किट, चाकलेट के रूप में और अन्य तरह के खाद्य पदार्थों के साथ मिश्रण करके जनसामान्य को उपलब्ध कराने की दिशा में योजना बना रहे है, बाद में अपने देश को लौटकर वे यहां के सहजन को खरीदने की दिशा में कदम उठाएंगे.
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उनको छत्तीसगढ़ का चावल भी पसंद आया है. साथ ही इससे छत्तीसगढ़ के कोसा वस्त्रों, पल और सब्जियों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. इस बात की संभावना जताई जा रही है कि इस तरह के आयोजनों से इन उत्पादों कोदेश और विदेश में बेहतर बाजार मिल सकेगा.
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