अगर हम लगातार लकड़ियां काटने के बाद अगर पेड़ को उगाना शुरू नहीं किया तो क्या कभी सोचा है कि लकड़ी कहां से मिलेगी? ऐसा ही एक ख्याल आया लकड़ी के कारोबारी नरसिंह रंगा के मन में. इसी विचार के साथ उन्होंने 25 साल में नर्मदा नदी के किनारे सूखे और बंजर इलाके में 11 किमी लंबाई और नदी के तट से करीब 50 एकड़ की चौड़ाई वाले हिस्से को लाखों पेड़ों से हरा-भरा कर दिया.
बंजर जमीन को बनाया हरा भरा जंगल
जहां बंजर जमीन थी वहां अब रंगा के प्रयासों के बाद नर्मदा के एक तट पर 100 फीट से भी ज्यादा ऊंचाई वाले लहलहाते पेड़ खड़े हैं. यहां केवल चार प्रजाति के पेड़ देवरी बसनिया के इस जंगल में लगे हैं. सागौन, खमेर, बांस और नीलगिरी से अटा ये इलाका अब पूरी तरह उपजाऊ बन गया.
ऐसे शुरू हुआ जंगल बनाने का काम
टिम्बर व्यवसायी नरसिंह रंगा अपने परिवार के साथ जोधपुर से साल 1974 में जबलपुर आ गए थे. उनके मन में बंजर जमीन पर जंगल बनाने का ख्याल साल 1992 में आया. खुद की जमीन पर पौधे लगाने का काम गांववालों की मदद से शुरू हुआ. पौधों को पानी मिलता रहे, इसके लिए नर्मदा में जाने वाली नरई नदी में खुद के खर्च से रंगा ने स्टॉप डैम का निर्माण भी करवाया. फिर साल 1992 में 90 हजार पौधों का रोपण किया. साल 1993 में 1 लाख 40 हजार पौधरोपण किए, गांव वालों को रोजगार भी मिला और खुद रंगा भी अपना परिवार इसी जंगल में लगे बांस को बेचकर चला रहे हैं. गांव वालों को उनकी जमीन पर भी 15 हजार से ज्यादा पेड़ लगाने दिए गए.
जंगल को देखने आते हैं वैज्ञानिक
25 साल में नर्मदा नदी के किनारे सूखे और बंजर इलाका रंगा के प्रयास से हर-भरा और ऑक्सीजन जोन बन चुका है. देश भर से वन विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और रिसर्च स्कॉलर इस जंगल को देखने पिछले कई सालों से आ रहे हैं.
लोगों को मिली प्रेरणा
इस बात में कोई शक नहीं है कि जितने बेहतर ढंग से नर्मदा तट के किनारे पेड़ लगाए गए हैं, वो समाज और पर्यावरण के लिए एक बढ़िया मॉडल साबित हो सकता है.
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