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मुंबई की इस जोड़ी ने आदिवासी महिलाओं को बनाया सशक्त, लिख रहे हैं सफलता की नई कहानी

आदिवासी महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए एग्रो-फूड कंपनी के सीईओ राजेश ओझा ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर सफलता की एक नई मिसाल पेश की है.

रुक्मणी चौरसिया
Mumbai couple empowering tribal women
Mumbai couple empowering tribal women

जहां चाह होती है वहां राह खुद बन जाती है और यही मिसाल 12वीं ड्रॉपआउट राजेश ओझा ने भी दी है. बता दें कि यह अब एक एग्रो-फूड कंपनी के सीईओ हैं, जिन्होंने परिवार के समर्थन के साथ अपनी जेब में मात्र 1000 रुपए से इसकी शुरुआत की थी.

आदवासी महिलाओं के लिए छोड़े सारे ऐशो-आराम 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन्होंने आदिवासी क्षेत्रों को आधुनिक दुनिया के विकास के साथ जोड़ने की उद्यमशील यात्रा शुरू की थी. शुरुआती दौर में कृषि क्षेत्र का बिल्कुल ज्ञान नहीं होने की वजह से और पारिवारिक खेती के बैकग्राउंड के बिना, राजेश ओझा ने अपनी पत्नी पूजा ओझा के साथ समाज की पिछड़ी वर्ग की आदिवासी महिलाओं (उदयपुर की ग्रासिया आदिवासी महिलाएं) की मदद करने की ठानी, जिसके लिए उन्होंने "सपनों की नगरी-मुंबई" की सुख-सुविधाओं को भी छोड़ दिया था.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उनकी कंपनी जोवाकी का मूल्य वर्तमान में 20 करोड़ है और आने वाले दो वर्षों में 10 गुना और बढ़ने की उम्मीद है. निसंदेह, राजेश ओझा की सफलता की कहानी वास्तव में आज के युवा और युवा उद्यमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

संघर्ष से रची सफलता

राजेश अपनी यात्रा के बारे में बताते हुए उस समय को याद करते हैं, जब उनके पास अपने या अपने व्यवसाय का समर्थन करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था और वित्तीय संकट के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. रन-ऑफ-द-मिल बिजनेस करियर नहीं चुनने के लिए कई बार उनकी आलोचना की गई थी. जिसके बाद, कृषि-आधारित करियर चुनने के लिए उन्हें कई अस्वीकृतियों का सामना करना पड़ा, जहां उन्हें एक महानगरीय शहर की सुख-सुविधाओं को छोड़कर सुदूर वन क्षेत्रों में रहना पड़ा था.

हालांकि, वह जानते थें कि वो आगे क्या चाहते हैं और उन्हें क्या करना है. राजेश जी के शुरुआती दिन संदेह और चुनौतियों से भरे हुए थे. जैसा की हम सभी जानते हैं आदिवासी समुदाय के साथ कोआर्डिनेशन करना कोई आसान काम नहीं था. इसके बाद, शुरुआती दिनों में धीमी प्रगति के बावजूद, उन्होंने अपना दृष्टिकोण बहुत विनम्र रखा. धीरे-धीरे उनकी सादगी और काम ने रंग दिखाना शुरू कर दिया, जिससे जनजातीय समुदाय के साथ विश्वास बना और एक मजबूत बंधन बनना शुरू हो गया था.

सामाजिक और आर्थिक समर्थन

आज, जोवाकी एग्रो फूड्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी 1000 से ज़्यादा आदिवासी परिवारों के लिए आजीविका का स्रोत है. कंपनी ने दक्षिणी राजस्थान में,  ग्राम-स्तरीय प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की हैं साथ ही छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी इसी मॉडल पर काम चल रहा है. जोवाकी न केवल इन महिलाओं को संलग्न करता है, बल्कि उन्हें फल के प्रसंस्करण में शामिल विभिन्न चरणों पर प्रशिक्षण प्रदान करके उनकी क्षमता विकास की दिशा में भी काम करता है.

बता दें कि कटाई, संग्रह, भंडारण, ग्रेडिंग, छंटाई, धुलाई, प्रसंस्करण और पैकेजिंग जैसी पूरी प्रक्रिया आदिवासी महिलाओं द्वारा की जाती है.

जहां एक ओर, प्रति यूनिट औसतन 70 आदिवासी महिलाएं फलों के प्रसंस्करण में सीधे तौर पर शामिल हैं. वहीं दूसरी ओर, प्रति यूनिट अन्य 150 महिलाएं फलों के संग्रह का समर्थन कर रही हैं जिसके चलते सीधे तौर पर 1000 से अधिक आदिवासी महिलाओं को वह सब अपने साथ शामिल कर रही हैं. जोवाकी अपनी मेहनत से जंगलों के सबसे गहरे हिस्से में घुसने में सक्षम रहा है और आदिवासी समुदायों में ख़ासकर महिलाओं को एक स्थायी आजीविका प्रदान कर रहा है.

लाभ का लगभग 60% हिस्सा आदिवासी महिलाओं को जाता है जो अपने जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम है. इसके अलावा, जोवाकी के नवोन्मेषी मॉडल से 25000 से अधिक परिवार अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित हुए हैं. वे अब वृक्षारोपण में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं और पहले से मौजूद वृक्षों का संरक्षण भी कर रहे हैं. इसके अलावा, उनके बार्गेनिंग स्किल्स में भी सुधार हुआ है जिससे वे अपनी उपज को उचित मूल्य पर बेचने में सक्षम हैं.

पूरी प्रशिक्षण प्रक्रिया में वन और पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण हिस्से को भी शामिल किया गया है और पेड़ों और जंगलों के महत्व के बारे में सामान्य जागरूकता पैदा करने में भी मदद मिली है. ख़ास बात यह है कि कंपनी इस क्षेत्र में एक व्यापक वृक्षारोपण अभियान भी चला रही है.

जैविक उत्पादों पर पकड़  

राजेश ओझा शुरू से ही जानते थे कि नवाचार के बिना वह अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों तक नहीं पहुंच सकते थे. ख़ासकर जंगल में, उन्होंने बड़ी मात्रा में कस्टर्ड सेब और जामुन के गूदे को बर्बाद होते देखा था. उन्होंने इस अंतर की पहचान की और इन फलों के 'प्रसंस्करण' में एक विशाल अवसर का पूर्वाभास किया. जिसके बाद, कच्चे फलों के इस प्रसंस्करण के माध्यम से मूल्यवर्धन आदिवासी महिलाओं को अपनी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने में मदद कर रहे हैं.

"कस्टर्ड ऐप्पल" का पल्प मुख्य रूप से कैटरर्स, आइसक्रीम और मिठाई उद्योग को बी 2 बी बाजार में बेचा जाता है. वहीं, जामुन के पल्प को नए उत्पादों जैसे फ्लेक्स, स्ट्रिप्स और ग्रीन टी बनाने के लिए संसाधित किया जाता है. बता दें कि जामुन के बीज को धूप में सुखाया जाता है और पाउडर के रूप में परिवर्तित किया जाता है जो अपने औषधीय गुणों के लिए लोगों के बीच मशहूर है.

इन सब के पीछे, मूल विचार यह है कि कुछ भी बर्बाद नहीं होना चाहिए, इसलिए वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए छिलका व कचरे का उपयोग किया जाता है. साथ ही, बीजों के एक हिस्से का उपयोग वृक्षारोपण के लिए भी किया जाता है.

ट्राइबलवेद ब्रांड

ब्रांड ट्राइबलवेडा ने वन उत्पादों के प्रसंस्करण से बने उत्पादों की एक अभिनव चैन का विपणन और बिक्री शुरू कर दी है. जिसमें, जामुन के बीज का पाउडर, स्ट्रिप्स, सिरका, फ्लेक्स, ग्रीन टी आदि जैसे 10 से अधिक उत्पाद हैं जो ताजा जामुन से बने होते हैं जो मोर्टार मॉडल के माध्यम से बेचे जाते हैं. बता दें कि, उत्पाद उनकी वेबसाइट और ई-कॉमर्स साइटों जैसे अमेज़न और फ्लिपकार्ट दोनों पर उपलब्ध हैं.

डीबीएस फाउंडेशन पार्टनरशिप

गर्व की बात यह है कि, जोवाकी ने प्रतिष्ठित "विजेता-डीबीएस फाउंडेशन सोशल एंटरप्राइज अवार्ड 2021" जीता है. इस वर्ष यह पुरस्कार दुनिया भर में 19 कंपनियों को दिया गया है, जिनमें से जोवाकी भी अपने अद्वितीय "सामाजिक-आर्थिक विकास" मॉडल के कारण इसे हासिल करने वाली कंपनियों में से एक थी.

जोवाकी सालाना 5 लाख किलोग्राम जंगली फलों और सब्जियों को संसाधित करने और सालाना 125 मीट्रिक टन उपज बेचने की योजना बना रही है. जिसके चलते इसका लक्ष्य 18,000 आदिवासी परिवारों के लिए एक स्थायी वर्षभर आजीविका प्रदान करने और आने वाले वर्षों में वनों की कटाई से 15 मिलियन पेड़ों को संरक्षित करने का रखा गया है.

जोवाकी समर्थक

अभिनव दृष्टिकोण और सामाजिक रूप से आउटरीचिंग बिजनेस मॉडल को ध्यान में रखते हुए, कई अन्य समर्थक भी जोवाकी के साथ हाथ मिलाने के लिए आगे आए हैं. जिसमें विलग्रो इनोवेशन फाउंडेशन, सीसीएस एनआईएएम- सेंटर फॉर इनोवेशन, एंटरप्रेन्योरशिप एंड स्किल डेवलपमेंट, नॉलेज पार्टनर आरकेवीवाई-रफ्तार, एमओए एंड एफडब्ल्यू, गोल उपया सोशल वेंचर्स, आईआईएम कलकत्ता इनोवेशन पार्क, और आईसीआईसीआई फाउंडेशन शामिल हैं.

English Summary: This Mumbai couple empowered tribal women, writing a new success story Published on: 16 June 2022, 05:35 PM IST

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