एक छोटे से छोटे किसान के कुल में जन्मा बच्चा भी आसमान में उड़ने की पूरी ताकत रखता है. वह बच्चा चाहे लड़का हो या हो लड़की. कोई भी खेती में अपनी मेहनत और लगन से उन बुलंदियों को भी छू सकता है जिसे पाने का सपना हर एक इंसान अपने मन में सजाये रखता है. ऐसी ही एक कहानी है किसान परिवार में पली-बढी ललिता की. ललिता ने बचपन से माता-पिता के साथ मिलकर खेती करना सीखा. शादी होने के बाद भी किसानी करने के लिए उन्हें परिवार का साथ मिला. आज किसान परिवार में पली-बढ़ी ललिता एक आवार्ड विजेता आर्गेनिक किसान हैं.
आप को बता दें की ललिता मध्यप्रदेश के धार जिले के एक तहसील मानवगढ़ के सिरसाला गांव से आती हैं. उनके माता पिता पेशे से एक किसान थे. पुराने समय में ललिता के माता पिता उनको किसानी के साथ ही उनकी पढ़ाई लिखाई के लिए भी आगे बढ़ाया. 19 साल की उम्र में ही उनकी शादी सुरेश चंद्र मुक्ती से हो गई जब उन्होंने अपने ससुराल में पढ़ाई करने को कहा तो उनके परिवार वालों ने उन्हें बीए की प्राइवेट डिग्री के लिए दखिला दिला दिया. ललिता के ससुर काफी समाजिक थे जब भारत और चीन युद्ध हुआ था तब उन्होंने सैनिकों के लिए अपने घर का सोना बेच दिया था. ललिता अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने खेती के कार्यों से भी जुड़ी रहीं. उन्होंने 21 महिलाओं के ग्रुप के साथ मिलाकर कैमिकल कृषि की जगह ऑर्गेनिक कृषि के लिए लोगों को प्रेरित किया.
बरवानी जिले के बोरलाई गांव में वो अपने 36 एकड़ में बिना किसी रासायनिक की मदद से उन्होंने खेती करना चालू किया. इस जमीन पर हर तरह की फसल उगाती थीं ऑर्गेनिक तरीकों से की गई खेती से आज उनका सालाना लाभ लाखों में पहुंच गया है, जिसे देखकर बाकी के किसान भी उनसे इस तकनीक के बारे में जानकारी हासिल कर रहे हैं.
खेती के आलावा वे अपने बच्चों के भी पढ़ाई का अच्छा ध्यान रखा जिसकी वजह से उनके 5 बच्चे अलग-अलग फिल्ड अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं. वर्तमान समय में ललिता अपने पति जो की एग्रीकल्चर में एमएससी किये हुए हैं उनके साथ मिलकर रसायिनक खेती का विरोध कर ऑर्गेनिक खेती के प्रति लोगों को जागरुक कर रहे हैं. उनके इस उत्कृष्ट काम को देखते हुए उन्हें मध्यप्रदेश की सरकार की तरफ से सम्मानि भी किया गया है.
प्रभाकर मिश्र, कृषि जागरण
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