देश में कई ऐसे किसान हैं, जो कृषि क्षेत्र में नई तकनीक का उपयोग करके सफल किसान की श्रेणी में अपना नाम दर्ज कर रहे हैं. इस श्रेणी में बिहार के औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड के कई प्रगतिशील किसानों का नाम भी शामिल है. ये किसान परंपरागत खेती की लीक से अलग हटकर हल्दी समेत अन्य मसालों की खेती कर रहे हैं.
किसानों का दावा यह है कि इससे उन्हें कम लागत में ज्यादा मुनाफा मिल रहा है, साथ ही सरकार द्वारा सब्सिडी भी मिल रही है. आइए आपको इन प्रगतिशील किसानों के बारे में बताते हैं.
गेहूं और धान से हटकर कर रहे हल्दी की खेती
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड के हैबसपुर, धमनी, खुटहन, इटवां आदि गांव के मंझोले किसान गेहूं और धान की खेती से अलग हटकर हल्दी की खेती कर रहे हैं. इन किसानों के पास कम जमीन है फिर भी वह हल्दी खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. किसानों का कहना है कि हल्दी की खेती में सबसे बड़ी बात यह है कि इसका नकद बाजार है और किसानों के घर से ही व्यवसायीअच्छी कीमत पर उपज खरीद लेते हैं. किसान बाजार में जाकर भी अपनी उपज को आसानी से बेच सकते हैं.
दूसरी फसल को लगाकर भी कमाया मुनाफा
किसानों की माने तो हल्दी की खेती (Turmeric Cultivation) के अलावा दूसरी फसल को लगाकर भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. बता दें कि हल्दी और अन्य मसालों की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 30 हजार रुपए की लागत लगती है. इस पर 50 प्रतिशत सब्सिडी मिल जाती है. यानी सरकार द्वारा किसानों को 15 हजार रुपए की राशि दी जाती है. इस तरह हल्दी की खेती ज्यादा लाभकारी होती है. इसकी खेती करने के लिए अन्य किसानों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है.
अगर किसान केंद्र और राज्य सरकार की कृषि कल्याणकारी योजनाओं की मदद लेकर परंपरागत खेती से हल्दी की खेती करते हैं, तो इससे उन्हें अच्छी आमदनी मिलेगी, साथ ही मसालों के उत्पादन में राज्य की आत्मनिर्भरता भी मजबूत होगी.
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