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अनोखी पद्धति से ये किसान एक एकड़ से 1000 क्विंटल गन्ने की उपज ले रहा, लाखों रुपए की हो रही कमाई

वर्तमान में देश का किसान विभिन्न विसंगतियों, विपन्नताओं एवं अभावों से गुजरते हुए खुद को आर्थिक रूप से सुदृढ़ और मजबूत बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है. वहीं सरकारें भी अपनी तरफ से तमाम प्रयास कर रही हैं. इसके बावजूद देश में किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है. खेती की बढ़ती लागत और फसल के कम दाम किसानों को कर्ज के बोझ तले लाद रहे हैं.

श्याम दांगी
khet
Agriculture Story

वर्तमान में देश का किसान विभिन्न विसंगतियों, विपन्नताओं एवं अभावों से गुजरते हुए खुद को आर्थिक रूप से सुदृढ़ और मजबूत बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है. वहीं सरकारें भी अपनी तरफ से तमाम प्रयास कर रही हैं. इसके बावजूद देश में किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है.

खेती की बढ़ती लागत और फसल के कम दाम किसानों को कर्ज के बोझ तले लाद रहे हैं. वहीं प्राकृतिक आपदाएं उनकी रीढ़ तोड़ रही है. इन तमाम बाधाओं के बीच अन्नदाता अपनी लड़ाई लड़ रहा है. इस लड़ाई को मजबूती देने में देश के कुछ प्रगतिशील किसानों का बहुत बड़ा योगदान है.

जो आधुनिक खेती को अपनाकर देशके अन्य अभावग्रस्त किसानों के लिए प्रेरणादाय बनें हुए है. उन्हीं प्रगतिशील किसानों में से एक है महाराष्ट्र के सांगली जिले की तहसील वालवा के कारंदवाडी गांव के सुरेश कबाडे. जो देश के करोड़ों गन्ना किसानों के लिए रोल मॉडल बनकर उभरे हैं. वे पिछले कुछ सालों से अनोखी प्रयोगात्मक तकनीक का प्रयोग करके प्रति एकड़ गन्ने की 1000 क्विंटल की फसल ले रहे हैं.

19 फीट लंबा गन्ना (19 feet tall sugarcane)

देश के अन्य किसानों की तरह सुरेश भी बेहद कम पढ़े लिखे हैं. उन्होंने केवल 9वीं क्लास तक पढ़ाई की. लेकिन खेती के प्रति जुनून ने सुरेश को एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया है. उन्होंने अपने खेत में 19 फीट लंबे गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) करके सबको आश्चर्य में डाल दिया है. गन्ने पैदा करने की इस तकनीक को सीखने के लिए सुरेश के पास कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश के किसान आ  रहे हैं.

वहीं उनकी ईजाद की गई तकनीक को पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के गन्ना किसान भी अपना रहे हैं. सुरेश के गन्ने की लंबाई जहां 19 फीट होती है वहीं वजन लगभग 4 किलो होता है. 

क्या है सुरेश की पध्दति (What is Suresh's method)

सामान्यतः देश में बोए जाने वाले गन्ने की लंबाई 3-4 फीट की होती है. वहीं गन्ने का वजन भी कम होता है. जबकि सुरेश पेड़ी गन्ने की खेती करते हैं और उनके गन्ने की लंबाई 19 फीट तक पहुंच जाती है. वहीं उनके गन्ने में 47 कांडी यानी आंख होती है. इसके लिए सुरेश खुद बीज तैयार करते हैं. जहां अन्य किसान गन्ना 3-4 फीट की दूरी पर लगाते हैं वहीं सुरेश 5-6 फीट की दूरी पर गन्ना लगाते हैं.

दूसरे किसान खाद और उर्वरक सीधे खेत में फेंक देते हैं, वहीं सुरेश कुदाली की मदद जमीन में खाद डालते हैं. यही वजह है कि प्रति एकड़ वे 1000 क्विंटल गन्ने का उत्पादन कर पाते हैं. वहीं अन्य किसान प्रति एकड़ 400-500 क्विंटल का उत्पादन ही ले पाते हैं.

अन्य किसान बीज ले जाते हैं (Other farmers carry the seeds)

इस साल भी सुरेश ने गन्ने की अच्छी उपज ली है. उनके गन्ने की औसत लंबाई 20 फीट तक पहुंची है. वहीं गन्ने का वजन 4 किलो तक बैठा है. उनके गन्ने साइज और वजन देखकर अन्य राज्यों के किसान भी उनसे बीज ले जा रहे हैं. पिछले कुछ सालों से वे हर साल 2-3 लाख रूपए का गन्ने का बीज बेच देते हैं. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के किसान उनसे बीज खरीदते हैं.

पहले 400 क्विंटल प्रति एकड़ की पैदावार (First 400 quintal per acre yield)

अन्य किसानों की तरह सुरेश भी पहले प्रति एकड़ 300-400 क्विंटल तक गन्ने की उपज ले पाते थे. ऐसे में उन्होंने अपने खेत में नई तकनीक से गन्ना पैदा करने की सोची. इसलिए उन्होंने अपने खेत में सबसे पहले भरपूर जैविक और हरी खाद डालना शुरू किया. इसके अलावा वे पीएसबी, पोटाश, एजेक्टोबैक्टर का उपयोग भी करते हैं. साथ ही सुरेश जिस खेत में गन्ना लगाते हैं उसमें पहले चने की खेती करते हैं. सुरेश का कहना है कि वे अपने खेत में टिशू कल्चर से गन्ना उगाते हैं.

क्या है टिशू कल्चर तकनीक (What is tissue culture technology)

आपको बता दें कि टिशू कल्चर तकनीक है जिसमें एक पौधे के उतक या कोशिकाएं प्रयोगशाला में कुछ विशेष परिस्थितियों में रखी जाती है. जिसके चलते उसमें खुद बिना रोग के बढ़ने और अपनी ही तरह अन्य पौधे पैदा करना की क्षमता आ जाती है. इसके लिए सुरेश अपने खेत से कुछ मोटे, लंबे और बिना बीमारी वाले गन्ने चुनते हैं. जिन्हें वह एक टिशू बनाने वाली फर्म को देते हैं. इनमें से फर्म के वैज्ञानिक एक गन्ना चुनते हैं उससे टिशू बनाकर देते हैं. 

इसके लिए वे लैब को कुछ रूपये देते हैं. बदले में लैब उन्हें एफ-3 क्वालिटी का गन्ने का बीज तैयार करके देती है. वहीं सुरेश बीज के लिए तैयार गन्ने को 9-11 महीने तक रखते हैं. लेकिन बेचने वाले गन्ने को वे 16 महीने तक खेत में रखते हैं. साथ ही सुरेश किसानों को सलाह देते हैं कि पेड़ी के गन्ने का बीज बोने की बजाय उन्हें हमारी तकनीक से तैयार करना चाहिए.

English Summary: successful farmer suresh kabade stories in hindi Published on: 15 October 2020, 02:59 PM IST

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