
Success Story of Progressive Farmer: राजस्थान के बीकानेर जिले की लूनकरणसर तहसील के छोटे से गांव फुलदेशर के युवा किसान मुकेश गर्वा की यह कहानी हजारों किसानों के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है. एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्मे मुकेश, शिक्षित हैं- उन्होंने बीएससी और बीएड की पढ़ाई पूरी की, लेकिन बचपन से ही खेती से जुड़ाव रहा. उनके परिवार के पास 2 हेक्टेयर कृषि भूमि थी, जिस पर वे पारंपरिक तौर पर मूंगफली और सरसों की खेती करते थे. पारंपरिक खेती में लागत अधिक और आमदनी बहुत कम थी. उत्पादन मौसम पर निर्भर था, और थोड़ी सी भी असमान्य बारिश या सूखा पूरी फसल बर्बाद कर देता था.
उस समय उनकी सालाना आमदनी मात्र 2 से 3 लाख रुपये थी, जिससे पूरे परिवार का गुज़ारा मुश्किल से हो पाता था. आर्थिक स्थिति कमजोर थी और सामाजिक स्तर पर भी परिवार पिछड़ रहा था. हालांकि, आज उनकी वार्षिक आमदनी 30 से 40 लाख रुपये तक है. ऐसे में आइए उनकी सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-
शिक्षा से जागरूकता और नवाचार की ओर पहला कदम
मुकेश गर्वा ने अपने शिक्षित होने का लाभ उठाते हुए खेती में कुछ नया करने की ठानी. उन्होंने महसूस किया कि केवल परंपरागत तरीकों से अब आर्थिक समृद्धि संभव नहीं है. इसलिए उन्होंने कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेना शुरू किया, जहां उन्हें आधुनिक कृषि तकनीकों के बारे में जानकारी मिली.
इन प्रशिक्षणों ने मुकेश को नई दिशा दी. उन्होंने महसूस किया कि यदि सही तकनीक और योजनाबद्ध तरीके से खेती की जाए, तो कम भूमि में भी अधिक उत्पादन और आमदनी संभव है. यहीं से उन्होंने संरक्षित खेती (Protected Farming) की ओर कदम बढ़ाया.

तकनीकी हस्तक्षेप: नई सोच, नई शुरुआत
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संरक्षित खेती (पॉलीहाउस) की ओर कदम
मुकेश ने कृषि विभाग के सहयोग से 4000 वर्ग मीटर के 3 पॉलीहाउस लगाए. पॉलीहाउस संरचना के अंदर उन्होंने खीरे की खेती की शुरुआत की. पॉलीहाउस की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें मौसम के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे बेमौसमी फसलें भी उगाई जा सकती हैं.
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सब्जी उत्पादन और बेमौसमी खेती
संरक्षित खेती के साथ-साथ उन्होंने बेमौसमी सब्जियों की खेती भी शुरू की, जैसे टिण्डा, तोरई और काकड़ी. ये फसलें आमतौर पर सीमित मौसम में उगाई जाती हैं, लेकिन पॉलीहाउस और ड्रिप सिंचाई तकनीक के माध्यम से उन्होंने पूरे वर्ष में इनका उत्पादन करना संभव बना लिया.
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जल प्रबंधन: बूंद-बूंद सिंचाई और वर्षा जल संचयन
राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में जल एक बड़ी चुनौती है. इसे ध्यान में रखते हुए मुकेश ने बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली (Drip Irrigation) को अपनाया. साथ ही उन्होंने 118x118 फीट की एक डिग्गी बनवाई, जिसकी गहराई 15 फीट है. इसमें वे पॉलीहाउस की छत से वर्षा जल संग्रहित करते हैं और फिर उसी पानी से सिंचाई करते हैं. इससे जल की बर्बादी नहीं होती और उत्पादन लागत में भी कमी आती है.

वर्तमान स्थिति: मेहनत ने बदली किस्मत
मुकेश गर्वा की मेहनत और तकनीकी समझ ने उनकी किस्मत ही नहीं, पूरे गांव और आसपास के युवाओं की सोच को भी बदल दिया. आज वे सालाना 30 से 40 लाख रुपये तक की आय प्राप्त कर रहे हैं, जो पहले की तुलना में 10 गुना से भी अधिक है.
पॉलीहाउस खेती का प्रभाव
उनके तीन पॉलीहाउस से सालाना 2400 क्विंटल उत्पादन होता है, जिसकी बाजार में औसत कीमत 2500 रुपये प्रति क्विंटल है. इसमें से उत्पादन लागत लगभग 18 लाख रुपये होती है, जबकि कुल आमदनी 60 लाख रुपये तक पहुंच जाती है. इस तरह उन्हें 42 लाख रुपये की शुद्ध आय प्राप्त होती है.

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
मुकेश ने केवल अपनी आर्थिक स्थिति को नहीं सुधारा, बल्कि वे अपने गांव के युवा किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं. जब उन्होंने पारंपरिक खेती से हटकर पॉलीहाउस और आधुनिक तकनीकों को अपनाया, तो कई लोगों ने इसे जोखिम भरा कदम बताया. लेकिन आज वही लोग उनके पास सलाह लेने आते हैं.
रोजगार सृजन में योगदान
मुकेश की खेती से अब वे स्थानीय मजदूरों और ग्रामीणों को रोजगार भी उपलब्ध करवा रहे हैं. पॉलीहाउस, सिंचाई, फसल प्रबंधन, पैकिंग और मार्केटिंग जैसे कार्यों में स्थानीय युवाओं को काम मिलता है, जिससे गाँव में रोजगार के अवसर बढ़े हैं.
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