Success Story: प्रगतिशील किसान मान सिंह गुर्जर, मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले की बनखेड़ी तहसील के ग्राम गरधा, पोस्ट मेछेरा कला के निवासी हैं. मान सिंह गुर्जर पिछले 14 वर्षों से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. उन्होंने अपने खेतों में 7 फुट की लौकी और 30 किलो का तरबूज उगाकर देश के करोड़ों किसानों के लिए मिसाल पेश की है. वे मुख्य रूप से गन्ना, गेहूं, अरहर, धान, चना और मूंग की खेती करते हैं. साथ ही, उन्होंने 600 से अधिक देसी बीजों का संरक्षण किया है, जिसमें 230 धान की किस्में, 160 गेहूं की किस्में, 25 देसी मूंग की किस्में और 18 तूर दाल की किस्में शामिल हैं. इसके अलावा, वे सब्जियों की 150 किस्मों और पपीते की 7 किस्मों का भी संरक्षण कर रहे हैं.
मान सिंह गुर्जर का मानना है कि देशी बीजों का संरक्षण ही किसानों के भविष्य को सुरक्षित रख सकता है. उनका कहना है कि आजकल किसान बाजार से हाइब्रिड बीज खरीदते हैं, जिनमें उन्हें अधिक मात्रा में खाद और कीटनाशक डालने पड़ते हैं, लेकिन इसके बावजूद उनकी अपेक्षा के अनुसार उत्पादन नहीं हो पाता. इसके विपरीत, देशी बीजों की खासियत यह है कि इनमें न तो यूरिया की जरूरत होती है और न ही कीटनाशकों की, फिर भी अच्छी फसल और बेहतर उत्पादन मिलता है. यही कारण है कि मान सिंह ने देशी बीजों के उपयोग पर जोर दिया और उनकी खेती को प्राथमिकता दी.
अपनी 15 एकड़ जमीन में से 8 एकड़ पर वे गन्ने की खेती करते हैं और बाकी जमीन पर धान, गेहूं, और मूंग की फसल उगाते हैं. वे गन्ने की उन्नत किस्मों जैसे- 8006, 865, 8605 की खेती करते हैं, जिनसे उन्हें प्रति एकड़ 400 से 500 क्विंटल तक उपज मिलती है. इसके साथ ही, वे चना और सरसों जैसी सहफसलों की भी खेती करते हैं, जिससे उन्हें प्रति एकड़ 8 से 9 क्विंटल चने की उपज भी मिल जाती है.
प्राकृतिक खेती के लाभ के बारे में बताते हुए मान सिंह गुर्जर ने उदाहरण दिया कि वे एक एकड़ गन्ने की फसल से 2 लाख रुपये तक कमा लेते हैं, जबकि प्राकृतिक रूप से उगाया गया चना 80 हजार रुपये तक बिक जाता है. इस प्रकार, उन्हें अच्छा लाभ होता है. उन्होंने यह भी बताया कि वे खेती के साथ पशुपालन भी करते हैं, जिसमें उनके पास मालवी नस्ल की पांच देसी गायें हैं.
प्राकृतिक खेती का एक और लाभ यह है कि उनकी फसल की बुकिंग पहले ही हो जाती है और कटाई के बाद दोगुनी कीमत पर घर से ही बिक जाती है. जहां रासायनिक खेती का चना 50 रुपये प्रति किलो बिकता है, वहीं प्राकृतिक खेती के चने की बुकिंग 100 रुपये प्रति किलो की दर से हो जाती है. इसी प्रकार, वे गेहूं की बंसी और लोकन किस्में उगाते हैं, जिनसे प्रति एकड़ 10 से 12 क्विंटल की उपज मिलती है. उनके अनुसार, खाद और कीटनाशक सब कुछ वे घर पर ही प्राकृतिक तरीके से तैयार करते हैं, और उनकी लागत केवल मजदूरी पर ही आती है.
मान सिंह गुर्जर ने बताया कि प्राकृतिक खेती से उनकी लागत कम और मुनाफा ज्यादा है. इस खेती से वे सालाना 30 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर लेते हैं. कृषि जागरण के माध्यम से उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे प्राकृतिक खेती अपनाकर शुद्ध अनाज उत्पन्न करें और पर्यावरण का संरक्षण करें. साथ ही, उन्होंने देशी बीजों के संरक्षण पर भी जोर दिया और 'घर का बीज, घर की खाद, और घर का स्वाद' का नारा देते हुए कहा कि किसानों को सेठ के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए खेती करनी चाहिए. उनका मानना है कि प्राकृतिक खेती किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की एक मुहिम है, जिसे हर किसान को अपनाना चाहिए.
Share your comments