Success Story: भारत के किसानों के लिए पशुपालन एक अच्छा बिजनेस बनकर सामने आ रहा है. देश के कई किसान पशुपालन से ही अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं. अधिकतर लोग नौकरियां छोड़ कर खेती-किसानी और पशुपालन की ओर रूख कर रहे हैं. इसी क्रम में एक किसान ऐसे भी जिन्होंने प्राइवेट नौकरी को छोड़ कर अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से पशुपालन व्यवसाय शुरू किया और आज वह इस बिजनेस से सलाना लाखों रुपयों का मुनाफा कमा रहे हैं. हम बात कर रहे हैं प्रगतिशील किसान दिलीप कुमार की, जो अरवल (बिहार) के रहने वाले है और गौ पालन का व्यवसाय करते हैं.
कृषि जागरण की इस पोस्ट में आज हम आपको प्रगतिशील किसान दिलीप कुमार की सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं.
साइट मैनेजर का काम छोड़ बने किसान
जीवन में पर्याप्त संसाधनों की कमी होने से एक समय दिलीप कुमार के लिए काफी मुश्किल हो गया था. वह पहले छत्तीसगढ़ में एक प्राइवेट कंपनी में साइट मैनेजर का काम करते थें, जहां उन्हें प्रतिमाह 6 हजार रुपये का वेतन मिलता था. इस वेतन से दिलीप का अपने परिवार की आवश्यकता को पूरा करने में काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा था. सबसे बड़ी चिंता उनके लिए अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा बनी हुई थी. किसान दिलीप ने वर्ष 1999 में स्नातक होने के बाद नौकरी शुरू की थी. वे 4 भाई-बहनों में सबसे कम उम्र के थे, जिस वजह से नियमित नौकरी करने के लिए परिवार से सुझाव दिया गया था.
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खेती के लिए 18 एकड़ जमीन
किसान दिलीप कुमार के परिवार में 12 एकड़ की कृषि भूमि है. वहीं, पट्टे पर खेती के लिए अतिरिक्त 6 एकड़ जमीन लेने से उनके परिवार के पास खेती के लिए कुल 18 एकड़ भूमि है. उनके परिवारिक खेती में उनके पिता और बड़े भाई के अलावा परिवार के बाकी सदस्यों की आजीविका चलती है. हांलाकि कुमार को खेती को आजीविका के रूप में चुनने का अवसर मिला, लेकिन संगठित क्षेत्र में नौकरी के लिए उनकी प्राथमिकता ने उन्हे छत्तीसगढ़ में स्थानांतरित कर दिया. किसान दिलीप मुख्य रूप से कम वेतन के कारण अपनी नौकरी के साथ कभी सहज नहीं थें. आखिर में उन्होंने वर्ष 2007 में नौकरी छोड़कर और अपने गांव लौटने का फैसला किया. यहां पहुंचकर उन्होनें गौशाला स्थापित करने का फैसला किया.
डेयरी का औसत दूध उत्पादन 120 लीटर
किसान दिलीप के पास गौ पालन से संबंधित थोड़ा बहुत ज्ञान था, जो उन्हें अपने परिवार द्वारा पहले किए गए गौ पालन की देखभाल से प्राप्त हुआ था. उन्होंने डेयरी की स्थापना का निर्णय अपने सहयोगियों से छत्तीसगढ़ में लिया था. अपने सहयोगियों से बातचीत करके कुमार ने डेयरी फॉर्मिंग से होने वाले लाभ के बारे में जाना था. किसान दिलीप ने छत्तीसगढ़ से अपनी वापसी के बाद डेयरी फॉर्मिंग शुरू करने के लिए अपने स्वयं के संसाधनों से दो गायों और एक मादा बछड़े (हीफर) को खरीदा और कृषि विज्ञान केंद्र, अरवल के सहयोग से बहुत कम समय में उन्होनें डेयरी फॉर्मिंग में सफलता हासिल की है. जब दिलीप कृषि विज्ञान केंद्र के सम्पर्क में आये जब डेयरी फॉर्मिंग की उनकी योजना नवजात अवस्था में थी. शुरूआत से ही कृषि विज्ञान केंद्र अरवल किसान दिलीप कुमार के पीछे खड़ा था. कुछ ही वर्षों के अंदर किसान दिलीप ने गायों की संख्या 2 से 18 कर दी और डेयरी का औसत दूध उत्पादन 120 लीटर तक पहुंच गया.
वर्तमान में 25 गायों का पालान
वहीं एक समय ऐसा आया जब उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा था. वर्ष 2018 में उनकी गायों को खुरपका मुँहपका नामक बीमारी हो गई थी, जिससे दूध का उत्पादन 120 लीटर से घटकर 60 लीटर पर आ गया था. प्रतिकुल स्थिति में कृषि विज्ञान केंद्र, अरवल ने किसान को आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान की थी. इसके बाद कुमार ने डेयरी फॉर्मिंग में उचित संसाधनो का निवेश बढ़ाया जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान में 25 गायों के साथ उनके डेयरी का दूध उत्पादन प्रतिदिन लगभग 170 लीटर तक हो गया. किसान ने दुग्ध सहकारी समिति की स्थापना की जिसका नाम "झूनाठी दूग्ध उत्पादक सहयोग समिति लिमिटेड" रखा गया है.
सलाना 4 से 4.5 लाख रुपये की कमाई
स्थानीय डेयरी किसानों से दुग्ध संग्रह के बाद समिति द्वारा गया शहर (Gaya City) में दूध की आपूर्ति की जाती है. किसान दिलीप की शुद्ध कमाई डेयरी फॉर्मिंग से प्रतिवर्ष 4 से 4.5 लाख रूपये है. इसके अलावा वह 3.5 बीघा भूमि में उच्च पोषण मूल्य के हरे चारे की खेती भी करते हैं, जिसमें वह अपने गायों के चारे के लिए सुपर नेपियर घास उगा रहे हैं. किसान दिलीप रोजाना लगभग 200 किलोग्राम सुपर नेपियर घास की कटाई करते हैं. गायों को हरा चारा प्रदान करके प्रत्येक गाय के चारे और दाने पर उनका दैनिक खर्च 80 से 85 रूपये आता है. किसान के अनुसार, हरा चारा पोषण सामग्री में समृद्ध होता है, इसलिए जानवरों को अलग-अलग प्रोटीन, जैसे- चीनी और फाइबर देने की आवश्यकता नहीं होती है.
अतिरिक्त आय के लिए गौबर से बनाते हैं गैस
किसान दिलीप कुमार ने एक बायोगैस प्लांट भी शुरू किया है, जिसमें गाय के गौबर का उपयोग बायो गैस बनाने के लिए किया जाता है. तरल पेट्रोलियम गैस के बजाय वह अब खाना पकाने के लिए बायोगैस का उपयोग करते हैं. एक वर्ष में किसान की डेयरी से लगभग 24 टन गाय के गौबर के साथ वर्मीकम्पोस्ट तैयार किया जाता है, जिसे बेच कर वह अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं. कुमार ने बिहार वेटेनरी कॉलेज, पटना के एक प्रशिक्षण में भाग लेकर वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने की तकनीक सीखी थी. उनका विश्वास है की इस प्रकार गौ पालन में विविधता लाकर अधिक आमदनी प्राप्त की जा सकती है.
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