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गुरुमुख सिंह ने रासायनिक खेती छोड़ अपनाई जैविक खेती, लोगों के लिए बने प्रेरणा के स्त्रोत

पंजाब के किसान गुरुमुख सिंह ने पारंपरिक खेती छोड़ जैविक तरीके से खेती करना शुरु किया है. इससे उनकी पैदावार बढ़ने के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी अच्छी हुई है.

रवींद्र यादव
गुरुमुख सिंह
गुरुमुख सिंह

Punjab: देश के किसान अपने आर्थिक विकास और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए जैविक खेती की और पहल कर रहे हैं. देश के जाने माने कृषि विशेषज्ञ भी इसकी सिफारिश कर रहे हैं. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे किसान से मिलवाने जा रहे हैं जिन्होंने बिना रासायनिक खाद के इस्तेमाल के जैविक खेती कर आज लोगों के लिए एक मिसाल कायम की है.

रासायनिक उर्वरकों के बिना जैविक खेती से विष मुक्त फसलें पैदा की जा सकती हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद तो होती ही हैं और यह पर्यावरण के लिए भी लाभदायक होती हैं. जैविक खेती के उत्पादों की कीमत बाजार में दोगुने से भी ज्यादा है और बाजार में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसकी खेती की ओर बढ़ा रहे हें हैं.

पंजाब के गुरदासपुर जिले के गांव रंगिलपुर के प्रगतिशील किसान गुरमुख सिंह, जो खुद जैविक खेती करते हैं, उन्होंने कहा कि वह जैविक खेती के माध्यम से बिना रासायनिक खाद और कृषि रसायनों के उपयोग के फसलें उगा रहे हैं. उन्होंने बताया कि रासायनिक खेती को जैविक खेती में बदलने में तीन साल का समय लग जाता है.

जैविक खेती के बारे में उन्होंने बताते हुए कहा कि इस खेती के लिए खेतों के आसपास काफी स्पेस की आवश्यकता है ताकि रासायनिक क्षेत्रों से कोई भी रसायन जैविक क्षेत्र में प्रवेश न कर सके. किसान गुरमुख सिंह ने बताया कि जैविक खेती करते समय बीजों में किसी तरह के रसायन का प्रयोग नहीं किया जाता है. आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें जैसे बीटी आदि किस्में प्रतिबंधित हैं. उन्होंने कहा कि जैविक खेती में फसल के अवशेषों को जलाना सख्त मना है.

फसल के अवशेष जैसे की हरी खाद, कम्पोस्ट, जैविक खाद सड़ी गली फल सब्जियां आदि को फसल चक्र के अनुसार रासायनिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि फसल उत्पादन की खेती की विधियों में फसल चक्र से खरपतवार का नियंत्रण किया जाता है. फसलों में कीटों को नियंत्रित करने के लिए, अनुकूल कीट और पक्षियों की आबादी बढ़ाने के लिए खेत प्रबंधन में बदलाव किए जाते हैं. पौधों में छिड़काव के लिए नीम के पौधे के अर्क या जैविक कीटनाशकों (बीटी, एनपीवी, ट्राइकोग्रामा) आदि का उपयोग किया जाता है.

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किसान गुरमुख सिंह ने बताते हैं कि ट्राइकोडर्मा और पीएसएफ जैसी फफूंद का इस्तेमाल बीमारियों से बचाव के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि सीवेज के दूषित पानी से खेत की सिंचाई नहीं करनी चाहिए. उन्होंने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि अपने खेत की फसल के कुछ क्षेत्र को जैविक खेती के अंतर्गत अवश्य खेती करनी चाहिए और फिर धीरे-धीरे जहर मुक्त जैविक खेती को बड़ा आकार दे देना चाहिए.

English Summary: Punjab's Gurmukh Singh left chemical farming and adopted organic farming Published on: 29 May 2023, 05:20 PM IST

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