Success Story: मौजूदा वक्त में देश के ज्यादातर किसान आज भी पारंपरिक तौर पर फसलों की खेती कर रहे हैं. लेकिन, इन फसलों की खेती से उन्हें उतना मुनाफा नहीं हो पाता, जिसकी वे उम्मीद करते हैं. हालांकि, किसान अगर पारंपरिक खेती में थोड़ा बदलाव करें तो वे अच्छा उत्पादन हासिल कर सकते हैं. जिससे उनका मुनाफा भी बढ़ सकता है. सफल किसान की इस सीरीज में आज हम आपको ऐसे ही किसान की कहनी बताएंगे, जिन्होंने खेती के तरीके में जरा सा बदलाव करके न केवल उत्पादन को बढ़ाया, बल्कि वे आज सालाना लाखों का मुनाफा भी कमा रहे हैं.
हम बात कर रहे हैं प्रगतिशील किसान हुकुमचंद दहिया की, जो गांव-बरमसर, जिला-जैसलमेर, राजस्थान के रहने वाले हैं. अगर शिक्षा की बात करें, तो इन्होंने 9वीं तक पढाई की है, लेकिन कृषि का ज्ञान पूरा प्राप्त कर चुके हैं. हुकुमचंद दहिया पिछले 33 सालों से कृषि से जुड़े हुए हैं. उन्होंने बताया कि, उनके पास लगभग 200 बीघा जमीन है, जिसमें वह ईसबगोल, जीरा और सरसों की खेती करते हैं. उन्होंने बताया कि वह शुरू से ही इनकी खेती करते आ रहे हैं. लेकिन, पहले उनका उत्पादन सही नहीं होता था. फिर उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी जुटाई और मिट्टी की भी जांच करवाई.विशेषज्ञों की सलाह पर उन्होंने खेती के तरीके में जरा सा बदलाव किसा, जिससे उन्हें अच्छा उत्पादन प्राप्त हुआ. आज इसी उत्पादन से वे लाखों का मुनाफ कमा रहे हैं.
विदेश तक भेज रहे अपनी उपज
उन्होंने बताया कि वह अपनी उपज को लोकल मार्केट, मंडियों और कुछ कुछ बड़ी कंपनियों को बेचते हैं. जिससे उन्हें मंडीकरण की सम्सया पेश नहीं आती. उन्होंने बताया कि वह अपनी उपज विदेशों में भी भेजते हैं. कुछ कंपनियां हर साल उनसे सैंपल ले जाती हैं, जिसके पास होने पर वह अपनी उपज विदेशों में भेजते हैं. उन्होंने बताया कि वह अपनी ज्यादातर उपज को आसपास की मंडियों में ही बेच देते हैं.
सालाना 25 से 30 लाख तक की कमाई
किसान हुकुमचंद दहिया ने बताया कि वह लगभग 1 बीघा में 1 क्विंटल तक ईसबगोल का उत्पादन कर देते हैं. ईसबगोल लगभग 120 रुपये किलो के हिसाब से बाजार में बिकता है. इसी तरह वह लगभग 1 बीघे में 100 किलो तक जीरे का उत्पादन करते हैं और यह 300 से 600 रुपये किलो के हिसाब से मार्केट में बिकता है. इसके अलावा वह सरसों की खेती भी करते हैं, जो काफी कम मात्रा में की जाती है. अगर सालाना लागत और इनकम की बात करें, तो किसान हुकुमचंद दहिया अपनी 200 बीघा जमीन पर सालाना 3 लाख रुपये तक खर्च कर देते हैं. सभी फसलों की खेती से उन्हें सालाना 25 से 30 लाख रुपये तक ही आमदनी होती है.
'हर परिस्थिति में डटे रहे किसान'
कृषि जागरण के माध्यम से प्रगतिशील किसान हुकुमचंद दहिया ने अपने 33 साल के खेती से जुड़े अनुभव के आधार पर कहा कि, किसानों को कभी हार नहीं माननी चाहिए. हमारे क्षेत्र में खेती करना प्रकृति के विपरीत चलने जैसा है, क्योंकि न तो यहां सिंचाई के लिए पानी की पर्याप्त साधन है और न ही प्रकृति सहयोग करती है. मौसम बदलता रहता है, जिससे फसलों और उपज का भारी नुकसान हो जाता है. ऐसे में किसानों को डटे रहना चाहिए.
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