नालंदा जिले का सिलाव की प्रसिद्धि उसके बेहतरीन मिठाई खाजा को लेकर है, लेकिन अब यहां पैदा किये जाने वाले मशरूम ने भी उसकी पहचान में और चार चांद लगा दिया है. अपने दम पर कुछ अलग करने की जिद और परिवार के आर्थिक हालात को सुधारने के लिए मशरूम का उत्पादन शुरू करने के बाद आज उनकी जिंदगी की तसवीर बदल गयी है. इन महिलाओं ने मशरूम का उत्पादन करके कुछ अलग करने की सोची लेकिन सबसे बड़ी बाधा यह सामने आ रही थी कि मशरूम की खेती की शुरूआत कहां से और कैसे की जाये? इन महिलाओं ने यह सुन रखा था कि मशरूम के उत्पादन में लागत कम लगती है और इसकी मांग ज्यादा है. इसलिए इन्होंने मशरूम को ही अपने अपने आर्थिक हालात को सुधारने का जरिया बनाने को सोचा.
महिलाओं के इस काम में हिस्सा लेने पर और इसका नतीजा बढ़िया आने पर आत्मा के द्वारा अभी तक 20 स्वयं सहायता समूह का निबंधन किया जा चुका है. संघर्ष से लड़ कर कुछ करने की जिद ने इन महिलाओं की एक अलग पहचान बना दी है.
नालंदा जिले का सिलाव की प्रसिद्धि उसके बेहतरीन मिठाई खाजा को लेकर है, लेकिन अब यहां पैदा किये जाने वाले मशरूम ने भी उसकी पहचान में और चार चांद लगा दिया है. अपने दम पर कुछ अलग करने की जिद और परिवार के आर्थिक हालात को सुधारने के लिए मशरूम का उत्पादन शुरू करने के बाद आज उन महिलाओं की जिंदगी की तस्वीर बदल गयी है. जिन महिलाओं ने इसकी शुरुआत की थी.
इन महिलाओं ने मशरूम का उत्पादन कर के कुछ अलग करने की सोची लेकिन सबसे बड़ी बाधा यह सामने आ रही थी कि मशरूम की खेती की शुरूआत कहां से और कैसे की जाये? इन महिलाओं ने यह सुन रखा था कि मशरूम के उत्पादन में लागत कम लगती है और इसकी मांग ज्यादा है. इसलिए इन्होंने मशरूम को ही अपने अपने आर्थिक हालात को सुधारने का जरिया बनाने को सोचा. महिलाओं के इस काम में हिस्सा लेने पर और इसका नतीजा बढ़िया आने पर आत्मा के द्वारा अभी तक 20 स्वयं सहायता समूह का निबंधन किया जा चुका है. संघर्ष से लड़ कर कुछ करने की जिद ने इन महिलाओं की एक अलग पहचान बना दी है.
स्वयं सहायता समूह ने दूर की परेशानी
महिलाओं के मशरूम की खेती संबंधित जानकारी के देने के लिए कृषि और उद्यान पदाधिकारी ने पहल किया और सन् 2009 में ‘उत्थान महिला हित समूह’ का गठन किया गया. महज कुछ जागरूक महिलाओं के साथ शुरू किये गये इस समूह को शुरू में तो कुछ ही महिलाओं का साथ मिला लेकिन समय गुजरने के साथ और भी महिला इस से जुड़ने लगी. आज इस समूह की महिलाओं की संख्या अच्छी खासी हो गयी है. वर्तमान में सारलीचक गांव में 25 महिला हित समूह और पांच पुरुष हित समूह मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं. प्रत्येक महिला हित समूह में तेरह से चौदह महिलाओं की संख्या होती है. पिछले साल इस समूह ने 70 किलो ग्राम प्रतिदिन मशरूम का उत्पादन किया था. जिसकी बिक्री 70 रुपये से सौ रुपये प्रति किलो तक हुई थी.
कार्यकर्ता करते हैं सहयोग
इस समूह से जुड़ी महिलाओं उत्पादित मशरूम की खेती और इसकी मार्केटिंग खुद ही करती है. समूह से जुड़े लोगों का कहना है कि बैग में मशरूम के सौ ग्राम के स्पॉन से मशरूम का उत्पादन शुरू किया गया था. आज समूह की महिलाओं के मेहनत के दम पर यह एक उद्योग का रूप ले चुका है. पिछले साल इन महिलाओं ने पांच सौ स्पॉन मशरूम का उत्पादन किया था. स्पॉन को दिल्ली से मंगाया जाता है. इस काम में इन महिलाओं की मदद समूह के कार्यकर्ता करते है.
मशरूम के बिक्री के बारे में पूछने पर इन महिलाओं का कहना था कि वैसे तो इसकी मांग ठीक रहती है लेकिन पिछले साल मांग कम और उत्पादन ज्यादा हो जाने के कारण थोड़ा आर्थिक नुकसान भी हो गया. इससे सीख लेते हुए इन महिलाओं ने अब इसका उत्पादन क्रमवार तरीके से करने को सोचा है जिससे इनके मशरूम के उत्पादन का काम भी होता रहे और आर्थिक नुकसान भी ना हो. समूह से जुड़ी मंजुला देवी का कहना है कि अगर कच्च माल घर में ही तैयार हो जाता है तो लाभ भी अच्छा हो जाता है.
उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाएं कर रही है काम
इस ग्रुप में की कई महिलाएं आर्थिक तौर पर मजबूत होने और अपने पैर पर खड़े होने के लिए मशरूम की खेती को अपना जरिया बना चुकी हैं. इसमें सबसे खास बात यह है कि इन महिलाओं में ऐसी भी है जिन्होंने बीकॉम, आईएससी तक की पढ़ाई की है. इनका कहना है कि शिक्षा से ही उनके अंदर स्वावलंबी बनने की प्रेरणा मिली. प्रतिमाह चार से छह हजार तक की कमाई कर रही इन महिलाओं का कहना है कि अच्छी शिक्षा से ही अच्छी प्रेरणा मिलती है. इस खेती से प्राप्त आय का एक हिस्सा वह अपने बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करती हैं. निरूमा देवी, शोभा देवी ने आइएससी तक की शिक्षा प्राप्त की है वही मंजुला देवी ने बीकॉम तक की पढ़ाई की है.
बिहार दिवस में भी दिखी समूह की झांकी
मशरूम उत्पादन के दम पर अपनी पहचान बनाने वाली महिलाओं के लिए खुश होने का एक अवसर तब आया जब बिहार सरकार ने अपनी झांकी में इस महिला समूह की कर्मठता और लगन को अपनी झांकी में शामिल होने का अवसर प्रदान किया. साथ ही मशरूम उत्पादन में स्टॉल लगाने का भी मौका मिला.
पूरे बिहार में होती है आपूर्ति
समूह से जुड़ी औरतों द्वारा उत्पादित मशरूम की बिक्री पूरे बिहार में होती है. इनकी आपूर्ति का जिम्मा भी इन महिलाओं के हाथ में ही होता है. हालांकि इस काम में समूह के कार्यकर्ता इनका सहयोग करते हैं, लेकिन मुख्य काम इन महिलाओं के हाथ में ही होता है. इन मशरूमों की आपूर्ति राजधानी पटना के अलावा, मुजफ्फरपुर, गया, हाजीपुर के साथ-साथ लगभग पूरे बिहार में होती है. इन जगहों पर इस मशरूम की बहुत मांग होती है. मशरूम की कीमत वैसे तो लगभग 80 रुपये की करीब है लेकिन अगर मांग किया जाये तो दस रुपये और अतिरिक्त ले कर उसे आपूर्ति कर दी जाती है.
कुछ साल पहले तो घर की स्थिति अच्छी नहीं थी पर जीवन में कुछ करने की ठानी और दिखाया. मैं अपने को कमजोर नहीं मानती. अच्छे जीवन के लिये शिक्षा जरूरी है. यही कारण है कि मेरे बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहें हैं. पारम्परिक खेती के अलावा मशरूम से
प्रति माह लगभग चार हजार रुपये से अधिक की आय होती है. - निरूपा देवी
कुछ अलग करने की इच्छा से मशरूम उत्पादन में जुड़ी. पिछले पांच वर्षो से सारिचलक गांव में हैं और 2010 से मशरूम का उत्पादन का व्यवसाय कर रही है. इनके साथ ही इनके ग्रुप की महिलाएं अपने इस व्यवसाय से पूरी तरह संतुष्ट हैं. इनके ग्रुप में 13 से 14 महिलाएं हैं. पिछले वर्ष इनके ग्रुप का उत्पादन लगभग 70 किलोग्राम प्रति दिन हुआ था. - मंजुला देवी
200 से 250 बैग तैयार कर उत्पादन करती है. एक बैग से पांच से छह किलोग्राम तक का उत्पादन होता है. अपने इसी व्यवसाय के बल पर अपने बच्चों का भरण पोषण करती है. उसके बाद उसी बैग में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर उत्पादन होता रहता है. तीन से चार उत्पादन प्राप्त करने के बाद बैग बदल दिया जाता है. - शोभा देवी
कृषि जागरण / नई दिल्ली
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