आज के समय में किसान अपने बच्चों को खेती करने के लिए बहुत कम प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन यह किस्सा है एक ऐसे परिवार का है जिसमें तीन पीढ़ी से किसी ने भी खेती नहीं की थी। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि इस परिवार की एक पढ़ी लिखी बेटी वल्लरी चंद्राकर, जिसने कंप्यूटर साइंस से एमटेक किया और बाद में वह कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर भी कार्य किया। आज यह लड़की नौकरी छोड़कर 27 एकड़ भूमि पर खेती कर रही है। खास बात यह है कि खेती से सिर्फ आमदनी प्राप्त करने का मकसद नहीं था। अपनी खेती से लिए गए उत्पादन का विदेशों में भी भेजने की तैयारी कर रही हैं। यही नहीं उन्होंने सीखने और सिखाने के जज्बे को सीमित न कर आज वह खेतों में काम समाप्त होने के बाद वह लड़कियों को अंग्रेजी एवं कंप्यूटर सिखाती हैं ताकि ये आत्मनिर्भर बन सकें। इसके अतिरिक्त वह किसानों के लिए नियमित कार्यशाला आयोजित करती हैं जिसके अन्तर्गत उन्हें तकनीकी तौर पर प्रशिक्षित किया जाता है।
उनका कहना है कि अपने इरादे व संदेश के लिए उन्हें शुरुआती दौर में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था जिसके लिए उन्होंने अपनी लोकल भाषा सीखी ताकि वह अपनी बात उचित तरीके से रख सकें। धीरे-धीरे उन्होंने सब्जी की खेती प्रारंभ की। सब्जियां भोपाल, इंदौर, दिल्ली, नागपुर, उड़ीसा, बेंगलुरु तक जाती है। वह करेला, खीरा, बरबटी, हरी मिर्च की खेती करती थीं लेकिन इस बार उन्हें टमाटर और लौकी का ऑर्डर मिला है जिसे विदेश में निर्यात करने का इरादा किया जा रहा है।
वल्लरी का कहना है कि उनके पापा का फार्म हाउस बनाने के सपने को साकार करने करने के लिए उन्होंने खेती करने का इरादा बनाया। लेकिन शुरुआत में लोगों द्वारा उनका मज़ाक उड़ाया गया। समाज ने उसे पढ़ी लिखी बेवकूफ कहा, फिर भी अपने इरादे पर अटल वल्लरी ने किसी की न सुनकर सिर्फ अपने काम पर ध्यान दिया और खेती करनी शुरु की। आज वह एक सफल किसान के तौर पर जानी जाती हैं। उनके फार्म हाउस में उगाई जाने वाली सब्जियों को थाईलैंड व इज़रायल भेजने की तैयारी की जा रही है। बात अगर तकनीकी सीखने की हो तो वह इंटरनेट के माध्यम से लगातार नए-नए अनुसंधान व तकनीकियों के बारे में ज्ञान प्राप्त करती रहीं। आज बाजार में खरीददार उनके फार्म हाउस के अच्छे उत्पाद को देखकर खरीद के लिए तत्पर रहते हैं।
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