उपजाऊ जमीन की कमी की वजह से लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. एक ओर जहां लोग गांव छोड़ शहर में बस रहे हैं, उन्हीं के बीच 75 साल के भावन निषाद मेहनत से बंजर पड़ी जमीनों को उपजाऊ बनाने में जुटे हैं. उनकी मेहनत से कई अन्य किसानों की जिंदगी बदल गई है. किसानों के बीच JCB मैन के नाम से मशहूर भावन के कारनामो के बारे में आप भी जानिये.
25 सालों से बंजर जमीनें बना रहे हैं उपजाऊ
- फतेहपुर के अमौली ब्लॉक के रहने वाले 75 वर्षीय किसान भावन निषाद ने 25 सालों में अपने गांव की 50 बीघा ऊबड़-खाबड़ जमीन को मेहनत से खेती करने लायक बना दिया है. उनका मिशन अभी भी जारी है.
- भावन द्वारा तैयार किए खेतों में अब चना, सरसों और गेहूं की फसलें लहलहा रही हैं. लोग उन्हें अब जेसीबी मैन के नाम से पुकारने लगे है.
- भावन बताते हैं, "बुन्देलखण्ड के करीब होने के कारण मेरे गांव की अधिकतर जमीन बंजर है. लोग उस पर खेती करने के बारे में कभी सोचते नहीं थे. मैं तब 50 साल का था. मेरे सामने दो रास्ते थे, एक हार मानकर बैठ जाना और दूसरा इस मुश्किल से लड़ना. मैंने दूसरा रास्ता चुना."
- "मैंने उस बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए हर रोज सात से आठ घंटे तक काम करना शुरू किया. सबसे पहले मैंने ऊबड़-खाबड़ जमीन को समतल बनाया. यह सबसे मुश्किल काम था."
लोग कहते थे पागल, खेत में ही बिताए 25 साल
- भावन इस काम में अकेले ही जुटे थे. उनके घर पर कोई खाना तक देने वाला नहीं था. जब गांववालों ने उन्हें मेहनत करते हुए देखा, तो लोग खुद ही खाना बनाकर देने लगे. भावन खाना खाकर फिर से काम में जुट जाते.
- वे बताते हैं, "जब मैं काम करते-करते थक जाता था, तब वहीं पर तौलिया बिछाकर पेड़ के नीचे सो जाता. सुबह नींद खुलती थी. फिर नित्यक्रिया के बाद फिर से अपने काम में जुट जाता. पिछले 25 सालों से लगभग हर दिन मेरा यही रूटीन है."
- "मैंने 25 साल तक कुदाल चलाई. कई बार हाथ में चोट भी लगी. छाले भी पड़े. तब कुछ लोग ने मुझे पागल कहकर मेरा मजाक भी उड़ाया, लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया. अब मेरी मेहनत रंग लाने लगी है. कई खेत उपजाऊ बन चुके हैं."
ऐसे बिता था बचपन
- भावन बताते हैं, "मेरा जन्म फतेहपुर के अमौली ब्लॉक के भरसा के मजरे केवटरा गांव में हुआ था. पिता किसान थे. उनकी कमाई से ही से ही घर चलता था. मैं तीन भाइयों में सेकंड नंबर पर था. आर्थिक तंगी की वजह से 5वीं के बाद ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी."
- "मैं बचपन से ही फिजिकली स्ट्रॉन्ग था. मेरा मन खेती में कुछ ज्यादा ही लगता था. घरवाले भी मेरे काम करने से खुश थे. उन्होंने कभी भी मुझे खेत में काम करने से मना नहीं किया. बस तभी से खेती कर रहा हूं."
पत्नी के निधन के बाद लिया ये बड़ा फैसला
- भावन बताते हैं, "मेरी शादी पड़ोस के ही गांव में हुई थी. शादी के एक साल बाद मैं बेटी का पिता बना. हम दोनों ही घर में लक्ष्मी के आगमन से बहुत खुश थे. बेटी जब करीब 15- 16 साल की थी, तभी मेरी पत्नी का निधन हो गया. उसके बाद मैंने खुद अपनी बेटी का पालन पोषण किया. आज वो अपने ससुराल में सुखी है."
- पत्नी के निधन और बेटी की शादी के बाद भावन घर पर बिल्कुल अकेले रह गए थे. वहीं दूसरी तरफ गांव में उपजाऊ जमीन की कमी की वजह से कई परिवार पलायन कर रहे थे.
- भावन बताते हैं, "लगभग हर परिवार गांव छोड़कर शहर भाग रहा था. मैंने सोचा कि क्यों न कुछ ऐसा करें कि लोगों को गांव छोड़ना ही न पड़े. मैंने तभी गांव की जमीन पर मेहनत करने का फैसला ले लिया. अब तक 50 बीघा से ज्यादा जमीन उपजाऊ बना चुका हूं."
मेहनत को ऐसी मिली पहचान
- खेत किसान उत्पादक संगठन, अमौली फतेहपुर के डायरेक्टर भुवन भास्कर द्विवेदी बताते हैं, "गांव में एक सर्वे के दौरान मैंने भावन निषाद को खेत में काम करते देखा था. गांव के लोग उसे जेसीबी मैन के नाम से पुकार रहे थे. कई दिनों तक लगातार उसकी मॉनिटरिंग करने पर जैसा उसके बारे में सुना था एक दम वैसा ही पाया."
- "लोगों ने बताया था कि भावन निषाद बिना किसी से कोई मजदूरी लिए दिन हो या रात, हर वक्त जमीन समतल बनाने के काम में जुटा रहता है. उसकी उम्र और मेहनत को देखते हुए कर गांव के कुछ लोगों ने उसे पैसे देकर मदद करने की कोशिश की, लेकिन उसने इस काम के लिए पैसे लेने से इनकार कर दिया."
- भावन की मेहनत देखते हुए खेत किसान उत्पादक संगठन ने उन्हें सम्मानित किया.
साभार
दैनिक भास्कर
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