“होइहि सोइ जो राम रचि राखा” ये दोहा इस लेख के लिए बिलकुल फिट बैठता है. जी हाँ यह कहानी एक युवा किसान अमरेश की है जो अच्छी पढ़ाई करने के बाद इंजीनियर बनने का सपना संजोए हुए थे। लेकिन अपने पिता की तबियत होने के कारण वह वापस घर आकर खेती की शुरुआत करता है।
उन्होंने हैदराबाद में राष्ट्रीय मात्यिकी विकास बोर्ड से मछलीपालन के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया। अमरेश बताते हैं कि उनके पिता जी जिस तरीके से मछलीपालन किया करते थे उसमें ज्यादा आमदनी नहीं थी। जिस कारण उन्होंने मछलीपालन को एक व्यावसायिक रूप देने का मन बनाया। आज अमरेश मछलीपालन से रोजाना लगभग नौ हजार रुपए का रोजगार दे रहे हैं।
वह बताते हैं कि मछलीपालन के लिए किसानों को उसकी सही नस्ल की जानकारी भी होनी चाहिए। इसकी सही जानकारी उन्हें प्रशिक्षण से मिला। साथ ही मछलियों के लिए अच्छा भोजन भी कैसा होना चाहिए यह भी उन्हें हैदराबाद में ट्रेनिंग से जानकारी मिली।
शुरुआती दौर में उन्हें मछलीपालन से लाभ नहीं मिला। क्योंकि वह बाजार की मांग के अनुसार मछली नहीं पालते थे। लेकिन इसके बाद साल भीतर ही वह बाजार के अनुसार मछलियों का पालन कर बाजार में मशहूर हो गए। उनके द्वारा पाली गई मछलियों की ही मांग थी।
उनके अनुसार मछलियों की रोहू, सिल्वर कार्प व कतला आदि नस्ल अच्छी होती हैं। इसके अतरिक्त मछलीपालकों को हर जिले में स्थित मत्स्य पालक अभिकरण से जानकारी हासिल करनी चाहिए।
मछलीपालकों को मछलियों को आहार देने के लिए चावल का आटा तैयार करना चाहिए। इसमें थोड़ी मात्रा में पानी मिलाकर गोलियां बनाकर मछलियों को देना चाहिए। इसके अलावा सरसों की भूसी भी आप घर के आस-पास से ही मिल सकती है।
मछलियों का वजन एक साल में ही एक से डेढ़ किलो हो जाता है। ऐसे में आप उसे बाजार भेज सकते हैं।
अमरेश कहते हैं कि खेती का व्यवसाय बुरा नहीं है। आज वह मछलीपालन के अलावा लगभग 13 एकड़ बांस की खेती करते हैं इसके अलावा आम व लीची की खेती भी करते हैं। इन दोनों ही फलों की मांग बाजार में अच्छी होती है।
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