आज हम बात करेंगे किसान मोहर साहू की जिन्होंने अपनी मेहनत के बल पर अपने लक्ष्य को पूरा किया और आज एक सफल किसान बनकर करोड़ो का व्यवस्या कर रहे हैं. मोहर एक बहुत ही गरीब परिवार से थे फिर भी उनके पिता चाहते थे की वह पढ़ाई करें इसलिए उनका दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया. मोहर सातवीं तक तो पढ़ें पर उसके बाद उनके पिताजी से उनकी किताबों,वर्दी आदि खर्चों के लिए पैसे जमा नहीं हो पा रहे थे, जिसके कारण उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी उसके बाद उन्होंने 12 साल की उम्र में मजदूरी शुरू कर दी, मजदूरी कर के वह दिन के 2-3 रुपये कमा लेते थे पर वह अपने इस काम से संतुष्ट नहीं थे. इसलिए उन्होंने 6 महीने बाद यह काम छोड़ दिया और उसके बाद उन्हें रिक्शा सुपरवाइजर का काम मिला ,इससे वह महीने के 75 रुपये कमाने लगे और उनकी सालाना कमाई में 30 रुपये की बढ़ोतरी होने लगी.
मोहर की 1984 में शादी हुई उसके कुछ महीनों बाद ही उसने भविष्य का सोचते हुए नौकरी छोड़ दी और बर्तन की दूकान पर सेल्समैन का काम करने लगे. इसमें वह महीने का 3-4 हज़ार कमा लेते थे. नौकरी करते -करते भी वह नए व्यवसायों के बारे सोचते रहते थे, इसलिए वह अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे ,1987 में उन्होंने यह नौकरी भी छोड़ दी.
अब उनके पास कोई नौकरी नहीं थी घर के हालातों के कारण उन्होंने रिक्शा चलना शुरू कर दिया. जिससे घर का खर्चा निकल सके. मोहर के ससुराल वाले सूअर पालन करते थे उसने उनसे इसकी सालाह ली और बिरसा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के वेटिनरी डिपार्टमेंट के डीन डॉ. संत कुमार से मिले और सुअरपालन से जुड़ी सलाह ली 10 छोटे-छोटे सुअर खरीदें. उन्होंने अपने घर के पीछे 700 स्क्वॉयर फीट एरिया में सुअरपालन का व्यवसाय शुरू कर दिया. वह सुअर के भोजन के लिए शहर के सभी होटलों और कई घरों से जूठन इकट्ठा करते थे इसके लिए उन्हें कोई पैसे नहीं देने पड़ते थे. यानी सुअरों के लिए फ्री में चारे की व्यवस्था हो जाती थी. हालांकि उन्हें अपने पड़ोसियों की बात भी सुननी पड़ती थी क्योंकि सुअर की वजह से उनके पड़ोसी भी परेशान हो जाया करते थे. पहली बार जब उन्होंने सुअर बेचे तो उन्हें 10,000 रुपये मिले. मोहर को यकीन नहीं हो रहा था कि उन्हें सुअर के बिजनेस से इतने पैसे मिलेंगे. एक अनपढ़ आदमी के लिए उस वक्त इतनी आमदनी होना बड़ी बात हुआ करती थी. उन्हें लगा कि वह सही रास्ते पर हैं और फिर उन्होंने इस बिजनेस में और पैसे इन्वेस्ट करना शुरू कर दिए.
सिर्फ दो सालों में उनके पास 45 सुअर हो गए और 1990 में उनका टर्नओवर एक लाख पहुंचा. वह बताते हैं कि भारी और वजनी सुअरों की असम और बिहार में काफी डिमांड होती है. 1999 में उन्होंने 10 कट्ठे जमीन खरीदे और वहां पर एक साथ कई सुअर पाल लिए. 2000 में उनका टर्नओवर दस लाख जा पहुंचा था. उन्होंने अच्छी गुणवत्ता के सुअरों की लंबी लाइन लगा दी थी. मोहर को झारखंड के दो मुख्यमंत्री से सम्मान भी मिला. इस साल उनका कुल टर्नओवर एक करोड़ था. करोड़पति बनने के बाद भी उनका धंधा सुअरपालन ही है अब वह दूसरे लोगों को सुअरपालन की ट्रेनिंग और प्रेरणा देते हैं.
मनीशा शर्मा ,कृषि जागरण
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