आज भी हमारे समाज में कई ऐसी महिलाएं हैं जिनका पूरा जीवन उनके परिवार की देख-रेख और चार दीवारी में ही बीत जाता है. इसके बाद भी उन्हें वो सम्मान नहीं मिल पाता, जिसकी वे हकदार हैं. अभी भी इस तरह की महिलाएं घूंघट में ही सिमट कर रह गयी हैं. महिलाएं केवल घरेलू काम तक ही सीमित न रह जाएं, इसके लिए गुरदेव कौर आगे आयीं.
पंजाब की जमीन पर जन्मी और पली-बढ़ी मज़बूत इरादों वाली एक लड़की ने अपनी ज़िन्दगी में कुछ ख़ास करने की ठानी. उसमें भीड़ से आगे बढ़ने की चाहत थी, हौसला था. हालांकि, बाकी लड़कियों की तरह ही पढ़ाई पूरी की, शादी की लेकिन अपने हौसले को टस से मस न होने दिया. अपनी सक्रियता और उत्साह के साथ आज वह ग्लोबल सेल्फ-हेल्प ग्रुप की अध्यक्ष है. जी हां, ये गुरदेव कौर देओल ही थीं जिन्होंने न केवल अपनी तकदीर बदली बल्कि बाकी महिलाओं को भी पहचान दिलाई है.
केवल परिवार संभालना ही न बने ज़िन्दगी का उद्येश्य, इसलिए लिया फैसला
आज हम आपसे साझा करने जा रहे हैं उस महिला की कहानी जो उद्यमिता के माध्यम से महिला समाज में एक नया बदलाव लेकर आई. गुरदेव कौर महिला समकक्ष की मदद करने और उन्हें सशक्त महसूस कराना चाहती थीं. शैक्षिक योग्यता के तहत उन्होंने जी.एच.जी. खालसा कॉलेज, गुरुसर सदर, लुधियाना से MA- B.Ed किया. पढ़ाई के बाद उनकी शादी कर दी गयी. शादी के कुछ समय बाद ही उन्हें यह एहसास हुआ कि एक गृहणी के तौर पर केवल परिवार संभालना ही उनके लिए पूरी ज़िन्दगी का उद्देश्य बनकर नहीं रहेगा. उनकी आगे बढ़ने की चाहत को पंख देने का वक्त आ चुका था.
मात्र 5 बक्से के साथ शुरू किया मधुमक्खी पालन भी...
साल 1995 में उन्होंने मधुमक्खी पालन करने की ठानी और मात्र 5 बक्से के साथ ही उन्होंने मधुमक्खी पालन शुरू किया. साल 2004 में वे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) के संपर्क में आईं. बाद में उन्हें इस बात की समझ हुई कि अभी तक उन्हें केवल सैद्धांतिक ज्ञान था जबकि इसके साथ ही व्यावहारिक ज्ञान की भी ज़रूरत थी. इसके लिए वे PAU के मधुमक्खी पालक संगठन की सदस्य बन गयीं और वहां से बहुत कुछ सीखा.
बाकी महिलाओं को भी किया जागरुक
उस दौरान उन्होंने अपने साथ समाज की उन महिलाओं को भी उसी स्तर पर लाने की सोच बनाई, जहां वे अब आ चुकी थीं. उन्होंने बाकी महिलाओं को भी जागरुक करने की ठानी. यहीं से ग्लोबल सेल्फ-हेल्प ग्रुप की शुरुआत हुई. उन्होंने साल 2008 में महिला समूह की शुरुआत की. उन्होंने अपने ही गांव की 15 महिलाओं को इकट्ठा किया और एक सहकारी समिति बनायी. इसे ग्लोबल सेल्फ-हेल्प ग्रुप का नाम दिया गया. शुरुआती दौर में समूह की सभी महिलाओं को PAU प्रशिक्षण कार्यक्रम में दाखिला लेने में मदद की. महिलाओं ने व्यवसाय और बाजार की बारीकियों को भी सीखा. धीरे-धीरे महिला समूह को अच्छा लाभ मिलना शुरू हुआ.
खाद्य प्रसंस्करण में भी रखा कदम
इसके तीन साल बाद 1999 में उन्होंने अचार, सॉस, चटनी में भी अपने हाथ आज़माए और बाद में इन स्व-निर्मित उत्पादों को बाजार में ले जाकर इनकी मार्केटिंग का काम भी शुरू किया. गुरदेव कौर ने न केवल खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में काम किया है बल्कि वह एक प्रगतिशील महिला किसान भी हैं.
दुग्ध उत्पादन में भी रखा कदम
खाद्य प्रसंस्करण, खेती और मधुमक्खी पालन में सफलता मिलने के बाद गुरदेव कौर देओल ने दुग्ध उत्पादन भी शुरू किया. दुग्ध उत्पादन के लिए उन्होंने डेरी खोली है और मिलने वाले दूध से वे कई तरह के उत्पाद तैयार कर उनकी मार्केटिंग भी करती हैं.
कम जमीन वाले किसानों को भी देती हैं प्रेरणा
गुरदेव कौर उन किसानों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं जिनके पास खेती करने के लिए कम ज़मीन है. उनका कहना है कि अगर किसी किसान को कम संसाधन के बावजूद अच्छी आमदनी करनी है तो, वह धान और गेहूं जैसी पारम्परिक फसलों की जगह नई फसल लगा सकता है. किसान अपने खेतों में सब्ज़ी या दाल भी ऊगा सकते हैं. जैविक खेती को अपनाकर किसान कम लागत और समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
कई पुरस्कारों से किया गया पुरस्कृत
महिलाओं को एकजुट कर उन्हें उनकी पहचान दिलाने के लिए हर तरह से सक्षम बनाने के लिए गुरदेव कौर को कई बार पुरस्कृत भी किया गया. साल 2012 में जहां उनके महिला समूह को नाबार्ड की तरफ से स्टेट अवॉर्ड दिया गया, तो वहीं साल 2011 में भी दुग्ध उत्पादन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था. साल 2010 में ATMA योजना के तहत इन्हें कृषि विभाग की तरफ से स्टेट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. वहीं सबसे पहले साल 2009 में उन्हें सरदारनी जगबीर कौर अवॉर्ड से उनके योगदान को सराहा गया था.
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