Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश के कानपुर में रहने वाले युवा किसान ने अपनी आधुनिक तकनीक और संसाधनों की बदौलत परंपरागत खेती के बजाए मछली पालन का ऐसा मॉडल फार्म बनाया है, जो साल भर में उनकी एक अच्छी आय का जरिया बन गया. जय कुमार सिंह पेशे से टीचर हैं और उन्होंने मछली पालन का व्यवसाय शुरु किया, जिससे वह हर वर्ष लगभग 2 करोड़ रुपये तक का सालाना कारोबार करते हैं.
जय सिंह ने लगभग 25 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले फार्म पर अपना यह कारोबार शुरु किया. उन्होंने बताया कि धान और गेहूं की पारंपरिक खेती की तुलना में मछली पालन और बागवानी से 10 गुना ज्यादा लाभ हो रहा है.
नई तकनीक की मदद से बढ़ी पैदावार
जय सिंह ने बताया कि वह बीते 15 सालों से मछली पालन के काम में लगे हैं. पहले वह पारंपरिक तरीके से मछली पालन करते थे. इससे शुरू में तो लाभ हुआ लेकिन जल्द ही लाभ में गिरावट भी आने लगी थी. उन्होंने बताया कि 2013 में बाहरी राज्यों की मछली और विदेशी मछलियों के पालन की शुरुआत की. देसी मछलियों की तुलना में विदेशी मछलियां संवेदनशील होने कारण इनके पालन-पोषण के लिए उन्होंने अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लिया.
उन्होंने मछलियों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन प्लांट, साफ पानी के लिए वॉटर प्यूरीफायर और पानी में हलचल पैदा करने के लिए वॉटर मिक्सर जैसी अत्याधुनिक मशीनों को लगाया. इतना ही नहीं विदेशी मछलियों में सिल्वर, नैनी और चाइना की देखभाल के लिए जय सिंह ने सीमेंट के खास किस्म के वॉटर टैंक भी बनवाए हैं. उन्होंने बताया कि तकनीक को सहारा बनाने के बाद ही, सही मायने में उनके लिए मछली पालन मुनाफे का सौदा बना.
आंध्र प्रदेश की मछली
जय सिंह ने बताया कि 5 साल पहले उन्होंने आंध्र प्रदेश में पाली जाने वाली 'फंगास' नामक मछली मंगाई थी. पैदावार के लिहाज से इसे बेहतर माना जाता है, लेकिन फंगास को कानपुर की आबो हवा कुछ ज्यादा ही भा गई. वह बताते हैं कि पहले साल में ही इस मछली की उम्मीद से ज्यादा पैदावार हुई थी. इस इलाके के लोगों की जुबान पर फंगास के स्वाद का जादू ऐसा चढ़ा कि इसकी खपत स्थानीय बाजार में भी अच्छी कीमत पर होने लगी.
उन्होंने बताया कि वह अपने फार्म में 15 हेक्टेयर जमीन पर मछली पालन कर रहे हैं. इसमें लगभग 2 हेक्टेयर में फंगास और लगभग 7 हेक्टेयर में विदेशी नस्ल की मछली नैनी, सिल्वर और चाइना का पालन कर रहे हैं. अन्य तालाबों में देसी नस्ल की रोहू, कतला और ग्रास का भी पालन किया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि आज वह अपने कुनबे की लगभग 15 हेक्टेयर जमीन पर केवल मछली पालन कर रहे हैं. इसका नतीजा यह हुआ कि अब पूरे परिवार ने इस काम को अपने पेशे के रूप में अपना लिया है. इसका पूरे इलाके में भी सकारात्मक संदेश गया है और स्थानीय लोग अब अपने खेत पर तालाब बनाकर मछली पालन, पशुपालन एवं खेती जैसे अन्य विकल्पों को अपनाने लगे हैं.
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अगला कदम है बागवानी
जय सिंह का कहना है कि फलों की सभी हाइब्रिड प्रजातियों के पेड़ों में 3 साल के भीतर ही फलोत्पादन होने लगा है. उनके बाग के फल कानपुर की मंडी में ही बिक जाते हैं और इससे परिवार की लगभग 10 लाख रुपये सालाना अतिरिक्त आय होने लगी है. जबकि मछली पालन से लगभग 1.5 से 2 करोड़ रुपये की सालाना पारिवारिक आय होती है.
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