एक कहावत है “उत्तम करे कृषि, मध्यम करे व्यापार और सबसे छोटे करे नौकरी” ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि खेती करने वाले लोग प्रकृति के सबसे करीब होते हैं और जो प्रकृति के करीब हो वह तो ईश्वर के करीब होता ही है. कुछ यही मिसाल यूपी के फल उत्पादक अतुल त्रिपाठी ने भी पेश की है. इन्होंने अपनी मेहनत और लगन से हज़ारों किसानों को प्रेरित किया है.
अतुल त्रिपाठी की सफलता कैसे हुई संभव
अतुल त्रिपाठी अपनी 7 एकड़ ज़मीन का उपयोग बागवानी के लिए करते हैं साथ ही अन्य 22 एकड़ भूमि में मटर बोते हैं. इनके पास ताइवान की रेड लेडी की 786 किस्म के 6,000 पपीते के पेड़ हैं और केले के 3500 पेड़ हैं, जो सभी 7 एकड़ में लगाए गए हैं. साथ ही इनके फार्म में ताइवानी तरबूज, अच्छी नकदी फसलें पपीते के पेड़ों के नीचे इंटरक्रॉपिंग के हिस्से के रूप में उगाई जाती हैं.
वहीं, इनके पपीते के पेड़ 18-21 महीने पुराने हो गए हैं, जिसमें गुच्छों में पके फल लग रहे हैं और तेज़ी से बाजार में सप्लाई किए जा रहे हैं साथ ही अभी हाल-फिलहाल में केले भी काटे गए हैं. बता दें कि यह 10-12 एकड़ में खरबूजे और पपीते की इंटरक्रॉपिंग करते हैं, जिससे उन्हें इस साल अच्छी फसल होने की उम्मीद है.
ख़ास बात यह है कि इन्होंने अपने जिले में फलों के विकास को बढ़ावा दिया है और अब 1,000 हेक्टेयर भूमि पपीते की खेती के तहत और 600 हेक्टेयर केले की खेती के तहत है. यह किसानों को बीज और पौध प्रदान करते हैं. इसके अलावा, अतुल उनके लिए खेती में मार्गदर्शन की व्यवस्था करते हैं जिसमें खाद, उर्वरक, कीटनाशक की आवश्यकता, आदि शामिल हैं.
इनका कहना है कि वह उन उत्पादों की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो वे वितरित करते हैं. बता दें कि खेती के काम में रुचि रखने वाले या शिक्षा की आवश्यकता वाले सभी किसानों को अतुल अपने खेतों में जाने के लिए हमेशा आमंत्रित करते हैं. यह वहां आये लोगों को प्रैक्टिकल के तौर पर कृषि कार्य कैसे किया जाता है, उपयोग में आने वाली तकनीकें क्या है, इत्यादि बड़े चाव से बताते हैं.
बहुफसली तकनीक से होती है दोगुनी आय
अतुल त्रिपाठी, इंटरक्रॉपिंग में विश्वास करते हैं और नवीनतम तकनीकों का उपयोग करते रहते हैं. यह अपने खेत में आने वाले सभी किसान या फिर अन्य लोगों से बात करते हैं कि उन्होंने यहां क्या देखा और सीखा है जिससे इन्हें अपने क्षेत्र में काफी पहचान भी मिली है.
जैसे की हम सभी जानते हैं कि आज का ज़माना सोशल मीडिया का है. ऐसे में इन्होंने फेसबुक पेज के साथ हजारों सदस्यों का ग्रुप भी बनाया हुआ है. अतुल का कहना है कि "उन्होंने जैविक कृषि पर एक समूह शुरू किया है और 3 महीने के भीतर समूह में उनके 57,000 सदस्य हैं. इसलिए, बड़ी संख्या में संभावित ग्राहकों या सहयोगियों को उनके बारे में ऑनलाइन माध्यम से पता चलता है. वह उन उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने की योजना बना रहे हैं जो वे प्रदान करते हैं".
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अतुल, जैन कंपनी के माध्यम से पौध प्रदान करते हैं, इनका दावा है कि यह भारत की सबसे बड़ी कृषि कंपनी है और इनके पौधे तीव्र गति से बढ़ते हैं और 8-9 महीनों में परिणाम देते हैं. इन्होंने अपने केले के पौधों का उदाहरण दिया जिसमें यह बताते हैं कि जहां इसका पेड़ 14-16 महीनों में परिणाम देते हैं, वहीं इस कंपनी का पौध 9-12 महीनों में ही फल देना शुरू कर देता है. इससे किसानों को नुकसान नहीं होगा बल्कि उनकी आय में दोगुना मुनाफा ही होगा.
साथ ही, अतुल मटर के बीज पर भी काम करते हैं और कहा कि जिले में हजारों एकड़ में मटर की खेती की जाती है. यह मटर के बीज को 2000-3000 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचते हैं. यह सामान्य मानकों से महंगा है लेकिन अतुल का यह दावा है कि वह गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराते हैं. इनका कहना है कि "हमारे क्षेत्र में मटर के बीज उपलब्ध कराने में काफी प्रतिस्पर्धा है. हम यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं कि जो बीज हम प्रदान करते हैं वे शुद्ध हों और एक भी खराब बीज न हो".
अतुल बताते हैं कि वह अच्छी गुणवत्ता वाले बीज पैदा करने के लिए मूल बीज खरीदते हैं. वह खराब बीजों को छानने के लिए श्रमिकों को किराए पर लेते हैं, जिसके बाद वो चनाई करते हैं, ग्रेडिंग करते हैं ताकि मैन्युअल प्रयास के बाद भी कोई खराब बीज है, तो मशीनें उन्हें छान लें. गर्व की बात है कि पहले उनका राज्य स्तर पर एक कार्यालय था और अब एक जिला स्तर पर है.
क्या है इनकी प्रेरणा का स्त्रोत
अतुल ने कहा कि "खेती और तकनीकी खेती उनका बचपन का शौक है. यहां के ज्यादातर लोग गेहूं और बाजरा उगाते हैं. यह 2016 में औपचारिक रूप से खेती में शामिल हुए और कुछ नया और अलग करना चाहते थे. उन्होंने केले के पेड़ लगाकर शुरुआत की लेकिन गर्मियों में पत्ते सूख गए और फूल सही से नहीं आए. उसने फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ी और सर्दियों में मिट्टी ठंड की चादर से ढकी हुई थी. वह कड़ी मेहनत करते रहे और आज यह अपनी 7 एकड़ जमीन से करीब 15 लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं.
उनकी कुल भूमि में से 2 एकड़ में ड्रिप सिंचाई की सुविधा है जहां वे पपीते की खेती करते हैं और बाकी की सिंचाई पारंपरिक तरीकों से की जाती है. यह 200 किसानों के एक समूह को 1,000 एकड़ जमीन पर खेती करने की सलाह देते रहे हैं. इस समूह का प्रबंधन व्हाट्सएप के माध्यम से किया जाता है और अतुल प्रशासक है जो प्रतिदिन घंटों संदेशों को पढ़ने और उनका जवाब देने में व्यतीत करते हैं. यह अपने उत्पादों को सही बाजार में निर्देशित करके किसानों का समर्थन करते हैं, जिससे इन किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि अतुल त्रिपाठी, अपने क्षेत्र में केले की खेती करने वाले पहले किसान थे, लेकिन आज उनके उदाहरण का अनुसरण करते हुए अब हर साल सैकड़ों एकड़ भूमि पर केले की खेती की जाती है. खेती शुरू करने और किसानों को सलाह देने से पहले, इस क्षेत्र में केले का सफलतापूर्वक उत्पादन नहीं किया गया था. इनका सुझाव है कि किसानों को ध्यान केंद्रित करना चाहिए और कड़ी मेहनत करनी चाहिए साथ ही सही ज्ञान भी होना चाहिए. उदाहरण के लिए अतुल सुझाव दिया कि " उन्होंने अनुभव से सीखा है कि जुलाई-अगस्त केले लगाने का सबसे अच्छा समय है. मार्च से जून तक केले के हमेशा अच्छे दाम मिलते हैं. केले महाराष्ट्र के शोलापुर से 15 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से लाए जाते हैं और फिर 2 रुपये प्रति किलोग्राम परिवहन के बाद 17 रुपये खर्च होते हैं. जबकि उनके स्थानीय रूप से उगाए गए केले की कीमत लगभग 14 रुपये प्रति किलोग्राम है, जिससे उनके केले अधिक लाभदायक हो जाते हैं.
हर दिन उन्हें अग्रिम भुगतान करने और अपने खेत से केले लेने के इच्छुक व्यवसायियों के फोन आते हैं. इसके अतिरिक्त वे इंटरक्रॉपिंग के साथ आलू और प्याज उगाते हैं जिससे अतिरिक्त आय होती है.
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