Success Story: हाल ही केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने देश के किसानों को खेती के नए तरीके सीखने की सलाह दी थी. उन्होंने कहा था कि खेती में कुछ नया करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. उनकी यह बात बिहार के एक किसान पर पूरी तरह फिट बैठती है. उन्होंने फसलों की जगह मधुमक्खी पालन को कमाई का जरिया बनाया और आज वे सालाना लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं. हम बात कर रहे हैं बिहार के किसान आत्मानंद सिंह की, जो मुजफ्फरपुर जिले के गौशाली गांव के रहने वाले हैं. वह एक मधुमक्खी पालक हैं और इसी के जरिए अपने परिवार को भरण पोषण करते हैं. अगर शिक्षा की बात करें तो उन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की है. आत्मानंद सिंह ने बताया कि मधुमक्खी पालन उनका खानदानी पेशा है. वह तीसरी पीढ़ी के हैं, जो इस व्यवसाय को कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके दादा ने इस व्यवसाय की शुरुआत की थी. जिसके बाद उनके पिता ने इस व्यवसाय में कदम रखा और आज वह इस व्यवसाय को सफल तरीके से चला रहे है.
मिले चुके हैं कई पुरस्कार
उन्होंने बताया कि मधु उत्पादन के क्षेत्र में अपने काम और योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. उन्होंने बताया कि वैसे तो सालाना उनके पास 1200 बक्से तक हो जाते हैं. लेकिन, मौजूदा समय में उनके पास 900 ही बक्से हैं. उन्होंने बताया कि इस बार मानसून और मौसम की बेरुखी के चलते मधुमक्खियों को भारी नुकसान हुआ है. जिसके चलते इस बार उनके पास सिर्फ 900 डिब्बे ही बच गए हैं. उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन एक सीजनल बिजनेस है, जिसमें मधुमक्खी के बक्सों का दाम बढ़ता है. उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन के इस व्यवसाय को शुरु करने में किसी ने भी उनकी मदद नहीं की. उन्होंने खुद ही इस बिजनेस को खड़ा किया और आज बड़े स्तर पर मधुमक्खी पालन कर रहे हैं.
बड़े स्तर पर शहद उत्पादन
उन्होंने बताया कि मधुमक्खी से मिलने वाले उत्पादों की बिक्री के लिए उन्होंने एक ब्रांड भी बना रखा है. उन्होंने इसे रीपी हनी के नाम से रजिस्टर्ड करवाया है. उन्होंने बताया कि रीपी हनी का काम उनकी पत्नी देखती हैं. जबकि, वह थोक में बड़ी कंपनियों को शहद बेचते हैं. जिसमें डाबर बैद्यनाथ, पतंजलि जैसी कंपनियां शामिल हैं उन्होंने बताया कि वह बड़े स्तर पर शहद का उत्पादन करते हैं. उनके पास 1200 के आस पास बक्से हैं, जिससे प्रति बाक्स उन्हें 50 से 60 किलोग्राम की शहद प्राप्त होता है.
नकली शहद एक बड़ी समस्या
उन्होंने बताया कि शहद के दाम बढ़ते-घटते रहते हैं. मौजूदा समय में मार्केट की स्थिति बहुत खराब है और उन्हें शहद के अच्छे दाम नहीं मिल पा रहे हैं. उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन करने वालों के सामने सबसे बड़ी चुनौती नकली शहद की होती है. देश में हर साल 60 से 70 हजार टन शहद का उत्पादन होता है. लेकिन, इसकी बिक्री 1 लाख 20 हजार टन के आसपास होती है. यानी 50 हजार टन के आसपास जो शहद का उत्पादन हो रहा है, वह नकली है. जिससे उन जैसे किसानों और मधुमक्खी पालकों को काफी नुकसान होता है. उन्होंने बताया कि शहद की खपत तेजी से बढ़ी है, जिसका कुछ लोग फायदा उठा रहे हैं और नकली शहद का उत्पादन कर रहे हैं.
उन्होंने बताया कि जिस शहद का उत्पादन हम लोग करते हैं वो दिखने में पतला होता है. जबकि, ग्राहकों को लगता है कि शहद जलेबी की चाशनी की तरह गाढ़ा होता है. इसी चीज का फायदा उठाकर कई कंपनियां अपने शहद में मिलावट करती हैं. उन्होंने आगे बताया कि देश में जो भी अच्छी क्वालिटी का शहद उत्पादन होता है, वो ज्यादातर एक्सपोर्ट हो जाता है.
मधुमक्खी पालन के लिए देशभर का भ्रमण
उन्होंने आगे बताया कि मधुमक्खी पालन के लिए उन्हें देशभर का भ्रमण करना पड़ता है. मधुमक्खियों को शहद बनाने के लिए फूलों की जरूरत होती है. जिसके लिए वे साल भर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों का भ्रमण करते हैं. उन्होंने बताया कि देश में अक्टूबर-नवंबर में मधुमक्खी पालन का सीजन शुरू हो जाता है. जिसके बाद वे मौसम के हिसाब से जगह-जगह घूमते हैं और जून में उनका सीजन खत्म हो जाता है. उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन कभी भी एक स्थान पर नहीं किया जा सकता. इसके लिए आपको जगह-जगह घूमना होगा, ताकि मधुमक्खियां फूलों के जरिए अपना शहद बना सके.
सालाना 15 लाख तक का मुनाफा
उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन की सालाना लागत कई चीजों में निर्भर करती है वैसे तो इसमें वन टाइम इन्वेस्टमेंट होती है, जो शुरुआती समय में मधुमक्खियों के बॉक्स पर आती है. इसके अलावा, लागत में मेंटेनेंस और लेबर कॉस्ट भी शामिल होती है. उन्होंने बताया कि ये सब मार्केट पर निर्भर करता है. मधुमक्खियों के बॉक्स के दाम सीजन के हिसाब से बढ़ते घटते रहते हैं. इसी तरह सालभर कई तरह की चीजों को मिलाकर उनकी लागत 15 लाख रुपये तक बैठ जाती है. जबकि, उनकी सालाना आय 40 लाख रुपये के आसपास है. जिससे उन्हें 10-15 लाख रुपये तक का मुनाफा हो जाता है.
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