Success Story of Progressive Ravindra Kumar Pandey: उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के प्रगतिशील किसान रवीन्द्र कुमार पाण्डेय ने ड्रैगन फ्रूट की खेती में ऐसी मिसाल पेश की है, जो उत्तर भारत के किसानों के लिए प्रेरणा बन चुकी है. 2016 में जब उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Farming) की शुरुआत की, उस समय इस फसल की लोकप्रियता उत्तर भारत में लगभग ना के बराबर थी. किसान इस फल के फायदों और इसके बाजार की संभावनाओं से अनजान थे.
लेकिन रवीन्द्र कुमार पाण्डेय ने अपनी दूरदर्शिता, मेहनत और नई तकनीकों को अपनाकर यह साबित कर दिया कि अगर सही जानकारी और समर्पण हो, तो किसी भी चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है. आज उनकी पहचान उत्तर भारत के सफल और नवाचारी किसानों में होती है, जो न केवल खुद आर्थिक रूप से सशक्त हुए हैं बल्कि अन्य किसानों को भी नई राह दिखा रहे हैं.
वर्तमान समय में युवा किसान रवीन्द्र कुमार पाण्डे एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Farming) कर सालाना 10-15 लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. ऐसे में आइए आज इस प्रगतिशील युवा किसान की सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-
शुरुआत का सफर
कृषि जागरण से बातचीत में युवा किसान रवीन्द्र कुमार पाण्डेय ने बताया कि वे पहले पारंपरिक फसलों जैसे धान, केला और सब्जियों की खेती करते थे. हालांकि, इन फसलों में अधिक पानी की जरूरत और कम मुनाफा देखते हुए उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Farming) करने का निर्णय लिया. उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Farming) आमतौर पर तटीय इलाकों में होती है, लेकिन सही जानकारी और मेहनत से इसे उत्तर भारत में भी आसानी से उगाया जा सकता है और भारी मुनाफा कमाया जा सकता है.
जब उन्होंने इसकी खेती शुरू की, तो उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा. ड्रैगन फ्रूट उनके लिए बिल्कुल नया था, और इसकी खेती की कोई जानकारी नहीं थी. इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और स्थानीय प्रशासन और कृषि विज्ञान केंद्र से मदद ली. साथ ही, सोशल मीडिया और देश-विदेश के किसानों से संपर्क करके उन्होंने इस फसल के बारे में जानकारी हासिल की. उनकी लगन और सीखने की चाहत ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी.
ड्रैगन फ्रूट की खेती की तकनीक और लागत
प्रगतिशील किसान रवीन्द्र कुमार पाण्डेय ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट का पौधा तीन साल में परिपक्व हो जाता है और लगभग 20 साल तक फल देता है. इसकी खेती में शुरुआती लागत अधिक होती है, लेकिन यह वन-टाइम निवेश है. एक एकड़ जमीन पर खेती करने में करीब 3.5 लाख रुपये का खर्च आता है, जबकि इसके बाद की लागत बहुत कम होती है.
उन्होंने बताया कि एक एकड़ जमीन पर लगभग 400 खंभों की जरूरत होती है. हर खंभे पर 4-5 पौधे लगाए जाते हैं, जिससे एक एकड़ में कुल 1600-1800 पौधे लगते हैं. खंभों की ऊंचाई सात फीट होती है, जिसमें से दो फीट जमीन में गाड़ दी जाती है. खंभों के बीच 12x8 फीट की दूरी रखी जाती है ताकि पौधों को पर्याप्त जगह मिले.
खंभों पर रिंग लगाने के बजाय उन्होंने पुराने टायर का इस्तेमाल किया, जिससे लागत में कमी आई. इसके अलावा, 2019 से उन्होंने सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन प्रणाली अपनाई, जो पानी और उर्वरकों की बचत करती है. यह तरीका उनकी फसल को बेहतर पोषण भी देता है.
ड्रैगन फ्रूट की खासियत और उत्पादन
रवीन्द्र कुमार पाण्डेय ड्रैगन फ्रूट की उन्नत किस्म 'वियतनाम रेड' की खेती करते हैं. इस किस्म की उपज अच्छी होती है, और इसका लाल रंग और मीठा स्वाद इसे बाजार में खास बनाता है. एक फल का वजन 400-500 ग्राम तक होता है, और तीन फलों का वजन 1200-1400 ग्राम तक पहुंच सकता है.
उन्होंने बताया कि एक एकड़ में लगभग 50 क्विंटल ड्रैगन फ्रूट का उत्पादन होता है. इस फल को पेटियों में बेचा जाता है, जिसमें एक पेटी में 20 फल होते हैं. हर पेटी की कीमत 1200 से 1500 रुपये होती है. इस प्रकार, एक एकड़ जमीन पर खेती से सालाना 10-15 लाख रुपये की आय होती है.
जैविक खेती का महत्व
शुरुआती समय में युवा किसान रवीन्द्र रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते थे, लेकिन इससे पौधों में रोग लगने लगे और उपज कम होने लगी. इसके बाद उन्होंने जैविक खाद का उपयोग शुरू किया. जैविक खाद ने न केवल उनकी फसल की गुणवत्ता में सुधार किया, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाया.
ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Farming) बलुई, पथरीली और लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि जैविक खाद का उपयोग करें, जिससे मिट्टी में कार्बन तत्व बढ़ता है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है.
ड्रैगन फ्रूट की खेती का समय और सिंचाई
ड्रैगन फ्रूट की खेती का सबसे उपयुक्त समय फरवरी माह है. पौधों की तुड़ाई मई-जून से लेकर नवंबर-दिसंबर तक होती है. पहले रवीन्द्र सिंचाई के लिए लाइन विधि का उपयोग करते थे, लेकिन अब ड्रिप इरिगेशन अपनाने से उनका काम आसान और अधिक प्रभावी हो गया है.
ब्रांड और बाजार
रवीन्द्र ने अपने ड्रैगन फ्रूट का ब्रांड नाम 'कौशांबी ड्रैगन फ्रूट' रखा है. इस ब्रांड के तहत वे अपने फल को बाजार में बेचते हैं. उन्होंने बताया कि ब्रांडिंग के कारण उनके फल को पहचान और अच्छी कीमत मिलती है.
अन्य फसलें और आमदनी
ड्रैगन फ्रूट के साथ-साथ रवीन्द्र आलू, टमाटर और अन्य सब्जियों की भी खेती करते हैं. इससे उन्हें सालभर अच्छी आय होती है. सब्जियों की खेती के साथ ड्रैगन फ्रूट का संयोजन उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है.
नई तकनीकों और संसाधनों का उपयोग
प्रगतिशील किसान रवीन्द्र ने बताया कि उन्होंने बीज के बजाय पौधों की नर्सरी का उपयोग किया. उनके अनुसार, पौधों का मदर प्लांट तीन-चार साल पुराना होना चाहिए ताकि उपज जल्दी और बेहतर हो. सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से उन्होंने खेती के नए तरीके सीखे और उन्हें अपनाया.
चुनौतियां और समाधान
शुरुआती समय में रवीन्द्र को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. ड्रैगन फ्रूट की खेती उनके लिए नया अनुभव था, और इसकी कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं थी. लेकिन उन्होंने धैर्य रखा और खेती की नई तकनीकों को सीखा. आज उनकी मेहनत का परिणाम है कि वे उत्तर प्रदेश के सफल ड्रैगन फ्रूट किसानों में से एक बन गए हैं और 35-40 जिले के किसान प्रभावित होकर ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं.
किसानों के लिए संदेश
प्रगतिशील किसान रवीन्द्र ने कृषि जागरण से बातचीत में अन्य किसानों को सुझाव दिया कि वे खेती में नए प्रयोग करें और पारंपरिक खेती के साथ आधुनिक फसलों को भी अपनाएं. उन्होंने कहा कि जैविक खेती न केवल मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखती है, बल्कि फसल की उत्पादकता को भी बढ़ाती है. इसके अलावा, उन्होंने किसानों से कहा कि वे स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र और विशेषज्ञों की सलाह जरूर लें.
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