बेटे ही नहीं बेटियां भी घर को आर्थिक तौर पर मदद करती हैं. देश की बेटियां भी आज के समय में किसी से कम नहीं है. आज हम आपको ऐसी ही एक कहानी के बारे में बताने जा रहे है, जिन्होंने अपनी मेहनत के बल पर एक नई कामयाबी को हासिल किया.
आपको बता दें कि यह कहानी तिरुवनंतपुरम के अत्तिंगल की दो बहनों शिवप्रिया जे एस और हरिप्रिया जेएस की है. जो अपनी पढ़ाई के साथ-साथ खेती भी करती थी.
गौरतलब की बात यह है कि जब इनके परिवार को वित्तीय परेशानियों का सामना करना पड़ा, तो इन दोनों बहनों ने अपनी पढ़ाई को छोड़ खेतों के काम में लग गई. पांच साल पहले शुरू की खेती से यह दोनों बहने अब हर महीने लाखों की कमाई कर रही हैं.
सब्जियों का एक हिस्सा जमीन के मालिकों के पास (sabjiyon ka ek hissa jameen ke maalikon ke paas)
सर्वप्रथम इन दोनों बहनों ने अपने खेत में फलियां, लौकी, फूलगोभी, ककड़ी, गोभी, टमाटर और पुदीना आदि सब्जियों को बोया. हरिप्रिया जो पहले नौवीं कक्षा में पढ़ती थी वह बताती है, कि खेती के प्रति हमारे लगाव को देखते हुए पड़ोसियों ने सवा बीघा जमीन खेती करने के लिए दी. जिसका मालिकाना हर तीन लोगों के पास है.
उधर, वहीं ग्यारहवीं कक्षा की शिवप्रिया बताती है, कि जब हम सब्जियों को खेत से तोड़ते है, तो उन सभी सब्जियों का एक हिस्सा जमीन के मालिकों को भी देते है. इन दोनों बहनों ने यह भी बताया की, खेत के मालिकों ने हमें बहुत ही ज्यादा मदद की है.
स्टाफ रूम के बाहर खड़े रहते थे (staaph room ke baahar khade rahate the)
परिवार के सदस्यों का कहना है कि बीते पिछले साल से खेती ही हमारी वास्तविक आमदनी का एक मात्र जरिया रहा है. इसी खेत के कारण हम से कई लोग जुड़े हुए है, जो सीधे हमारे सामानों को हमसे खरीदते हैं और कुछ सब्जियों को हम बाजार में बेच देते हैं.
दोनों बहनों का यह भी कहना है, कि जब हमने शुरू में परिवार की मदद करने के लिए सब्जियों को लेकर अपने शिक्षकों के इंतजार में स्टाफ रूम के बाहर खड़े रहते थे, जिससे हमें बहुत शर्म आती थी. जिसके कारण से हम प्लेटाइम और मॉर्निंग असेंबली में शामिल नहीं हो पाते थे. लेकिन अब जब हम इस व्यवसाय से अपने परिवार की मदद करने में सक्षम हुए, तो हमें अपने ऊपर गर्व होता है. हमने जो कुछ किया सही किया.
दोनों बहन अवार्ड से सम्मानित (Both sisters honored with awards)
वर्तमान समय में यह ऑनलाइन कृषि सोसायटी की सदस्य बनी हुई है. जिसमें यह सब्जियों की खेती से संबंधित सभी जानकारियों को बताती रहती हैं. इनकी इस मेहनत और लगन को देखकर उनकी पंचायत ने इन दोनों को कुट्टी कृषक (Kutti Karshaka) पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
य़हीं नहीं हरिप्रिया को खेत के आधे हिस्से में सब्जियों को लगाने के बेहतरीन तरीके के लिए मातृभूमि बीज कार्यक्रम (Mathrubhumi seed programme) में तीसरा पुरस्कार भी दिया जा चुका है.
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