ये कहानी किसान धर्मपाल की है जो परंपरागत खेती से ऊबकर आज जैविक पद्धति से खेती कर एक प्रगतिशील किसान बन चुके हैं। वह कहते हैं कि अक्सर लोग अधिक उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। लेकिन इससे न केवल खेती के लिए जमीन प्रभावित होती है बल्कि पर्यावरण भी बुरी तरह प्रभावित होता है। इस दौरान उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए जरूर कृषि विशेषज्ञों का सहारा मिलता रहता है, लेकिन वह खुद के प्रयासों से सफल बनने में कामयाब रहे हैं।
हरियाणा के रेवाड़ी के कापड़ीवास गाँव के किसान धर्मपाल की माने तों किसान जैविक खेती से तुरंत अच्छी पैदावार नहीं मिलने के कारण परेशान हो जाते हैं लेकिन बाद में वह अच्छी पैदावार देने लगती है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि थोड़ा सब्र दिखाकर जैविक खेती को अपनाएं और अच्छी पैदावार हासिल करें। क्योंकि लगातार इसे करने से कम से कम दो साल के भीतर ही रासायनिक पद्धति से की जा रही खेती से अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं।
वह खेती के अंतर्गत गेहूं व सरसों तो पैदा करते ही हैं साथ ही मक्का, प्याज जैसी फसलों का अंतराल पर प्रयोग करते हैं। उनका कहना है कि वह ऐसी भी फसलें उगाते हैं जो कम पानी में ही तैयार हो जाती है। वह बेबीकॉर्न की फसल भी उगाते हैं।
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