बुंदेलखंड में महिलाओं को घूंघट हटाकर समाज और अपने हक की लड़ाई लड़ते देखना समाज के लिए एक सुखद संदेश है. यह वह इलाका है जहां न केवल पर्दाप्रथा का बोलबाला है, बल्कि महिलाएं लंबे घूंघट के बगैर घर से बाहर नहीं निकल पाती हैं. कई गांव की महिलाओं ने इस कुप्रथा को तोड़ते हुए सूखे बुंदेलखंड को 'पानीदार' बनाने में अहम हिस्सेदारी निभाई है. उन्हें इस संघर्ष में उनके परिवार का भी भरपूर साथ मिलने लगा है और आज पूरा समाज उनके साथ खड़ा है.
छतरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर की दूर पर स्थित आदिवासी बाहुल्य गांव है झिरिया झोर. ठेठ बुंदेलखंडी इस गांव में महिलाएं की सजगता और सक्रियता आपको अचरज में डाल देने वाली लग सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस गांव की महिलाएं 'हैंडपंप वाली बाई' के नाम से पहचानी जाती हैं. वे एक तरफ बारिश के पानी को रोकने का काम तो कर ही रही हैं, साथ ही उन्हें न केवल अपने गांवों में बल्कि आसपास के गांवों के हैंडपंपों को ठीक करने के लिए भी बुलाया जाता है.
झिरिया झोर गांव भी पानी की समस्या से जूझने वाले गांवों में से एक है. यहां की महिलाओं ने इस समस्या को दूर करने का अभियान चलाया. इसके लिए उन्होंने पानी पंचायत बनाई. पानी पंचायत की अध्यक्ष पुनिया बाई आदिवासी बताती है कि पांच साल पहले महिलाओं ने पानी के संरक्षण का संकल्प लिया. पहले मेड़ बंधान किया, चेकडैम बनाया, पानी रुका तो खेती हुई और उसी का नतीजा है कि इस इलाके के जलस्तर में इजाफा हुआ.
पंचायत सचिव सीमा विश्वकर्मा की मानें तो पहले महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलती थीं, वक्त लगा, मगर सोच बदली और महिलाओं ने एकजुट होकर पानी संरक्षण के लिए अभियान चलाया. महिलाएं अब तो हैंडपंप भी ठीक करने लगी हैं. हैंडपंप बिगड़ने पर मैकेनिक का किसी को इंतजार नहीं करना होता.
बुंदेलखंड के ललितपुर जिले के तालबेहट विकासखंड के भदौना गांव की तस्वीर भी यहां की महिलाओं ने बदल कर रख दी है. ललिता दुबे बताती हैं कि यहां की महिलाओं ने पानी पंचायत बनाई और गांव की जरूरत को ध्यान में रखकर चेकडैम बनाया. इसी का परिणाम है कि सूखाग्रस्त इस इलाके में पानी का संकट कम ही होता है और फसल की पैदावार भी अच्छी होती है.
जल-जन जोड़ो अभियान के संयोजक संजय सिंह ने आईएएनएस को बताया, परिवार में पानी की सबसे ज्यादा जरूरत महिलाओं को होती है, कई महिलाओं का तो आधा दिन पानी का इंतजाम करते ही गुजर जाता है. बुंदेलखंड में महिलाओं में यह जागृति आई है कि पानी पर पहली हकदारी उनकी है. इसी के चलते बुंदेलखंड के 13 जिलों के 243 गांव में पानी पंचायतें बन चुकी हैं. पानी पंचायतों की कमान महिलाओं के हाथ में है. बारिश के मौसम में वे पानी को रोकती है, तालाब की साफ सफाई करती हैं. इसके अलावा जल स्त्रोतों से पानी के उपयोग का निर्धारण भी वही करती हैं.
हमीरपुर जिले के सरीला विकासखंड के गोहनी गांव की बात करें तो यहां की सावित्री छह वर्ष पूर्व की स्थिति को याद कर कहती हैं कि यहां तालाब गंदगी का अड्डा बन गया था, मगर महिलाओं ने एकजुट होकर तालाब की न केवल सफाई की, बल्कि श्रमदान कर सौंदर्यीकरण किया. इसके साथ तालाब तक बारिश के पानी को पहुंचाने का इंतजाम किया, इसी का नतीजा है कि इस तालाब की जल संग्रहण क्षमता बढ़ने से अन्य जलस्रोतों का भी जलस्तर बढ़ गया है.
जालौन जिले की कुरौती गांव की महिलाओं ने एकजुट होकर तालाब, कुओं और पोखरों की तस्वीर ही बदल दी है, कभी वीरान व सूखे रहने वाले यह जलस्रोत अब लोगों का सहारा बन गए हैं. इस गांव की जल सहेली अनुजा देवी को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सम्मानित किया था.
बुंदेलखंड में मध्य प्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश के सात जिले आते हैं. जिन गांव में पानी पंचायत बनाई गई हैं, उनमें 15 से 25 महिलाओं को स्थान दिया गया है. प्रत्येक पानी पंचायत से पानी व स्वच्छता के अधिकार, प्राकृतिक जल प्रबंधन, महिलाओं का पानी के साथ जुड़ाव बढ़ाने के लिए दो महिलाओं को जल सहेली बनाया गया है. जल सहेली उन्हीं महिलाओं को बनाया जाता है, जिनमें पानी संरक्षण के साथ गांव के विकास की ललक हो और उनमें नेतृत्व क्षमता भी हो.
गैर सरकारी मदद से महिलाओं ने सूखा के कारण दुनिया में पहचाने वाले बुंदेलखंड के गांवों को पानीदार बनाकर उन नीति निर्धारकों को आईना दिखाया है जो वादे और दावे तो खूब करते हैं, धनराशि मंजूर होती है, मगर करोड़ों रुपये खर्च हो जाने के बाद भी गांव न तो पानीदार हो पाता है और न ही खेतों में फसल लहलहा पाती है.
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