देश में किसान पैदावार को बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आज हमारे बीच कुछ ऐसे भी किसान हैं जो रासायनिक खादों का इस्तेमाल किए बिना ही खेती से अच्छा लाभ कमा रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं गया, बिहार के डोभी प्रखंड स्थित केसापी गांव के रहने वाले रामसेवक की जिन्होंने कृषि और पशुपालन के बीच सामंजस्य बिठाकर अच्छी आमदनी के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी हिस्सेदारी निभा रहे हैं।
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रामसेवक, वर्ष 2010 में समेकित कृषि प्रणाली को अमल में लाने के चलते वो लोगों के बीच चर्चा में आए थे। और उस वक्त तब मुख्यमंत्री खुद उनके समेकित कृषि प्रणाली को देखने उनके गांव आए थे। और उसके बाद उनको किसान रत्न से भी सम्मानित किया गया। वहीं रामसेवक के किसान बनने की कहानी भी बिल्कुल दिलचस्प है, वो बताते हैं कि वो पहले एक ट्रक चालक थे। और पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में ट्रक लेकर जाते रहते थे। और खेती के बारे में किसानों से मौका पाते ही नए-नए तौर तरीके पुछने लगते थे। आखिर में एक दिन ऐसा आया जब सन 1991 में उन्होंने ट्रक चलाना छोड़कर खेती करने का निर्णय लिया। खेती की शुरुआत उन्होंने अपने दो एकड़ जमीन में आम का बगीचा लगाकर किया। इससे दो फायदे हुए एक तो आम भी मिला और दूसरा हरियाली भी आ गई। आम के पेड़ बढ़ने लगे और उन्होंने खेती में आमदनी के दूसरे स्रोत भी तलाशने लगे।
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आगे आम के साथ ही खेत में हल्दी और अदरक लगाना भी शुरू कर दिया और उसकी भी काफी अच्छी खेती होने लगी। वहीं उनका कहना है की उन्होंने ज्यादा से ज्यादा जैविक खाद का प्रयास किया है लेकिन, उन्होंने इसके साथ ही ये भी कहा ऐसा नहीं है की वो शुरूआत से ही जैविक खाद का प्रयोग कर रहे हैं। उनका मानना है की रासायनिक खाद का उपयोग करने से उर्वरा शक्ति कम होने लगी तो उन्होंने इस ओर ध्यान दिया। इसके बाद उन्होंने इससे निपटने के लिए पशुओं की संख्या को बढ़ाया और और फिर जैविक खाद बढ़ने लगा। अब तो ऐसा है की रामसेवक के घर में गोबर गैस प्लांट भी लगा हुआ है जिससे गैस भी मिल जाती है। और वो इससे वर्मी कंपोस्ट भी तैयार करते हैं। ये सारे प्रयोग उन्होंने पर्यावरण को स्वस्थ रखने के लिए किया है।
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आखिरी में रामसेवक ने समेकित कृषि के बारे में कहा की इससे धान, गेहूं, सब्जी, फल, आदि की खेती की जा सकती है। पर्यावरण को स्वस्थ रखने के लिए समेकित खेती को बढ़ाना देना जरूरी है। इससे आमदनी भी बढ़ती है और इसके साथ ही ये पशुपालन में भी सहायक साबित होता है।
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