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वैज्ञानिक तौर पर भी किसानों के लिए विशेष है मकर संक्राति, जानिए क्यों

मकर संक्रांति का त्यौहार किसानों के लिए बहुत अहम है, भारत के लगभग हर राज्य में इसी दिन से फसलों की कटाई शुरू हो जाती है. यही कारण है कि त्यौहार को ग्रामीण भारत का सबसे बड़ा सांस्कृतिक त्यौहार माना गया है. लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि मकर संक्राति का महत्व सिर्फ सांस्कृतिक या धार्मिक रूप से नहीं बल्कि वैज्ञानिक और साइकोलॉजी तौर पर भी है.

सिप्पू कुमार
मकर संक्रांति और विज्ञान
मकर संक्रांति और विज्ञान

मकर संक्रांति का त्यौहार किसानों के लिए बहुत अहम है, भारत के लगभग हर राज्य में इसी दिन से फसलों की कटाई शुरू हो जाती है. यही कारण है कि त्यौहार को ग्रामीण भारत का सबसे बड़ा सांस्कृतिक त्यौहार माना गया है. लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि मकर संक्राति का महत्व सिर्फ सांस्कृतिक या धार्मिक रूप से नहीं बल्कि वैज्ञानिक और साइकोलॉजी तौर पर भी है.

मकर संक्रांति और साइकोलॉजी

वैसे तो हर त्यौहार हमे अंधकार से प्रकाश की तरफ जाने की प्रेरणा देते हैं. लेकिन मकर संकांति का प्रभाव सीधे हमारी मानसिक सेहत पर पड़ता है. इस त्यौहार के बाद से बसंत का आगमन माना जाता है, बसंत ऊमंग, उत्साह और ऊर्जा का मौसम है. इस दौरान शारारिक श्रम करने की शक्ति प्राकृतिक तौर पर शरीर में बढ़ जाती है.

मकर संक्रांति और वैज्ञानिक आधार

अब बात करते हैं इस पर्व के वैज्ञानिक आधार की. क्या आपने कभी सोचा है कि मकर संक्रांति हर साल लगभग एक ही तारीख को क्यों पड़ती है. क्या प्राचीन समय में भी दिनों की गणना किसी सांइस के आधार पर की जाती थी. दरअसल मकर संक्रांति के त्यौहार को ज्योतिष गणना के अनुसार मनाया जाता है. इसलिए इस त्यौहार में प्राचीन समय से ही ग्रहों, नक्षत्रों, सूर्य और चंद्रमा की महत्वता सबसे अधिक रही है.

मकर संक्रांति और मौसम विज्ञान

मकर संक्रांति के साथ मौसम का खास नाता है, ये तो ग्रामीण भारत में हर कोई जानता है. लेकिन अब इस बात को खुद साइंस भी मानती है. जो पूरे वर्ष नहीं होता वो इस दिन होता है, दरअसल मकर संक्रांति में दिन और रात लगभग बराबर होते हैं और इसके बाद रातें छोटी होने लगती है.

कभी 22 दिसंबर को मनाया जाता था ये त्यौहार

आपको जानकार हैरानी होगी कि एक समय ऐसा भी था, जब ये त्यौहार जनवरी में नहीं बल्कि दिसंबर में मनाया जाता था. इसके पिछे भी एक साइंस है. खगोल शास्त्र के अनुसार पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए हर 72 साल बाद एक अंश पीछे चली जाती है. अब इस हिसाब से देखा जाए, तो सूर्य मकर राशि में एक दिन की देरी से प्रवेश करता है. इसी कारण आज से 1700 साल पहले संक्रांति 22 दिसंबर को मनाई जाती थी और आज से हजारों साल बाद ये किसी और माह में मनाई जाएगी.

English Summary: this is how scientifically makar sankranti impacts on farming know more about psychological advantages Published on: 14 January 2021, 01:55 PM IST

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