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लाल-लाल सेब की कहानी, कहां से आया और कैसे बना हिमाचल की पहचान?

सेब हिमाचल की आर्थिक मजबूती की रीड बन गया. हिमाचल में सेब के उत्पादन का जनक सत्यानन्द स्टोक्स को-को माना जाता है. वे सन 1916 में अमेरिका से सेब के पौधे भारत लाये थे, जिन्हें उन्होंने जिला शिमला में स्तिथ "थानेदार" नामक गाँव में पहली बार लगाया था. आज इस लेख में हम यहीं जानेंगे की आखिर हिमाचल में ने क्या बदलाव लायें है और क्यों–

अंजुल त्यागी
लाल-लाल सेब की कहानी
लाल-लाल सेब की कहानी

कहते है "An Apple a day keeps Docter away" जी हां सेब को स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद उपयोगी माना गया है, लेकिन ऐसा भी कहा जाता है यदि ये सेब नहीं होता तो इस दुनियां में आदम और हौवा का प्रेम भी परवान नहीं चढ़ता और शायद इस दुनियां का विस्तार भी नहीं होता. खैर ये तो है कहानी. लेकिन क्या आप जानते हैं इस सेब का धरती पर कब जन्म हुआ? और कब से ये सेब हिमाचल की आर्थिक मजबूती की रीड बन गया. आज इस लेख में हम यहीं जानेंगे की आखिर हिमाचल में सेब की खेती ने क्या बदलाव लायें है और क्यों हिमाचल प्रदेश का सेब दुनियां भर में पसंद किया जाता है.

कब हुआ हिमाचल में सेब का जन्म?

ऐसा माना जाता है कि सेब की उत्पत्ति लगभग 4000 वर्ष से भी पहले मध्य पूर्व में हुई थी. हिमाचल में सेब के उत्पादन का जनक सत्यानन्द स्टोक्स को-को माना जाता है. वे सन 1916 में अमेरिका से सेब के पौधे भारत लाये थे, जिन्हें उन्होंने जिला शिमला में स्तिथ "थानेदार" नामक गाँव में पहली बार लगाया था. उस समय हिमाचल में सेब की यह शुरुआत "रॉयल" एवं "रेड डिलीशियस" नामक सेब की किस्मो से की गयी थी. इस वर्ष 2023 में, हिमाचल प्रदेश में सेब की व्यवसायिक खेती को 107 साल हो चुके हैं. हिमाचल प्रदेश की आर्थिक मजबूती में सेब के महत्त्व के चलते इस प्रदेश को "सेब राज्य" के नाम से भप प्रशिद्धि मिली हुई है. पूरे देश में लगभग 35 प्रतिशत सेब हिमाचल से ही प्राप्त किया जा रहा है. प्रदेश में इस फल की व्यवसायिक खेती शिमला, किन्नौर, मंडी, कुल्लू, चंबा एवं सिरमौर जिलों में की जाती है.

प्रदेश की बागबानी में 81 प्रतिशत भाग सेब की खेती का

सेब हिमाचल की एक बहुत महत्त्वपूर्ण फसल है. हालाकिं हिमाचल प्रदेश सरकार, उद्यान विभाग के अनुसार राज्य में फलों का कुल उत्पादन 7.97 लाख मीट्रिक टन है. अगर हम फलों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र पर नज़र डालें तो राज्य के कुल 3.27 लाख बागवानी क्षेत्रफल में से 2.35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फलों का उत्पादन किया जा रहा है. राज्य में फलों की उत्पादकता 3.4 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है. हिमाचल प्रदेश को "फ्रूट बाउल ऑफ़ इंडिया" कहा जाता है. यह राज्य यहाँ लगने वाले विभिन्न प्रकार के फलों के लिए प्रसिद्ध है. आर्थिक सर्वेक्षण, 2022-23 के अनुसार फलों का कुल उत्पादन 2021-22 में 7.54 लाख टन था जो वित्त वर्ष 2022 में बढ़कर 7.93 लाख टन हो गया. जिसमे से वर्ष 2021-22 में फलों के कुल क्षेत्रफल में 48.80 प्रतिशत भाग व फलों के कुल उत्पादन में 81 प्रतिशत भाग सेब का रहा. वर्ष 1950-51 में सेब का क्षेत्रफल कुल 400 हेक्टेयर था जो वर्ष 1960-61 में बढ़कर 3025 हेक्टेयर हो गय और वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा बढ़कर 115016 हेक्टेयर हो गया. हिमाचल में सेब की अर्थव्यवस्था लगभग 5000 करोड़ रुपए की है और लगभग 1.5 लाख किसान परिवार इससे जुड़े हैं.

प्रदेश के लगाई जाने वाली विभिन्न किस्में

हिमाचल प्रदेश में सेब की कई प्रकार की विभिन्न किस्मों की खेती की जाती है. मुख्य तौर पर ये किस्में मानक एवं स्पर प्रकार में विभाजित की गई हैं. मानक प्रजातियों के तहत टाइडमैन अर्ली वरसैस्टर, मैलिस डिलीशियस , "समर क्वीन" कम समय में तैयार होने वाली किस्में हैं. यह सभी किस्में परागण के लिए भी प्रयोग में लाई जाती हैं. "मानक प्रजातियों के अंतर्गत कई स्पेशल डिलीशियस और उनकी विविध किस्में उत्पन्न होती हैं, जैसे कि स्टार्किंग डिलीशियस, रेड डिलीशियस, रिच ए रेड, वांस डिलीशियस, टॉप रेड, लॉर्ड लेम्बोर्न, स्काइलाइन सुप्रीम डिलीशियस, हार्डीमैन गाला सिलेक्शन, स्पार्टन, और मेकिन्टोष आदि. मध्य समय में तैयार की जाने वाली किस्मों में से, लॉर्ड लेम्बोर्न और स्कारलेट गाला प्रमुख हैं, जो परागण के लिए विशेषकर उपयोग होती हैं."गोल्डन डिलीशियस , गोल्डन स्पर , यलो न्यूटन , ग्रेनी स्मिथ , कमर्शियल, रेड फूजी पछेती किस्में हैं जिनमें से गोल्डन डिलीशियस, कमर्शियल एवं रेड फूजी परागन के लिए उपयोग की जाती हैं. "राज्य में कई प्रकार की "स्पर" प्रजातियाँ उत्पन्न की जाती हैं, जैसे कि "रेड स्पर डिलीशियस," "गोल्डन स्पर," "रेड चीफ," "ऑरेगन स्पर-II," "सिल्वर स्पर," और "ब्राइट-एन-अर्ली" इत्यादि.

पहाड़ों से कोल्ड स्टोर तक!

राज्य में इस वर्ष केवल 1.9 करोड़ सेब की पेटियाँ अनुमानित की गयी हैं, जबकि पिछले वर्ष सेब की कटाई से 3.36 करोड़ पेटियाँ प्राप्त हुई थी. अनुचित भंडारण और परिवहन सुविधाओं के कारण सेब की फसल नष्ट हो जाती है और कई अन्य प्रकार की क्षति होती है. इस संदर्भ में प्रदेश में कटाई से पहले और कटाई के बाद उचित प्रबंधन की आवश्यकता है. इस कड़ी में प्रदेश के अंदर कई उचित कदम उठाए गए हैं. इस दौरन सेब की कटाई के बाद फसल को नष्ट होने से बचाने के लिए कोल्ड स्टोरेज की सुविधाएँ स्थापित की गयी हैं. इनमे "अडानी एग्री फ़्रेश" , "देव भूमि कोल्ड चेन" , "हिम एग्री फ्रेश" , "अनुभूति एपल्स" , "मदर डेरी" इत्यादि कुछ प्रमुख कंपनियाँ हैं. इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश विपणन निगम (एच.पी.एम.सी) भी 'कोल्ड स्टोरेज' सुविधा प्रदान करता है. इस वर्ष, प्रदेश में 'बाजार हस्तक्षेप योजना' के अंतर्गत सेब का अधिप्राप्ति मूल्य 10.50 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़ाकर 12 रुपये प्रति किलोग्राम कर दिया गया है. एच.पी.एम.सी इसी मूल्य पर किसानों से सेब की फसल खरीदता है.

सेब की सघन खेती

सेब की पारंपरिक रोपण प्रक्रियाओं में लंबी अवधि, श्रम गहन और खराब गुणवत्ता वाले फलों के साथ कम उपज होती है. इन समस्याओं के समाधान के अंतर्गत प्रदेश में अब सेब की सघन खेती की जा रही है. खेती का यह प्रकार आसानी से प्रबंधनीय है. इस खेती के द्वारा किसानो को उच्च उपज एवं बेहतर गुणवत्ता वाले फलों की प्राप्ति होती है. अतः यह हिमाचल में सेब की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. "जेरोमाइन" , "रेड वेलॉक्स" , "रेड कैप वाल्टोड" , "स्कार्लेट स्पर-II" , "सुपर चीफ" , "गेल गाला" , "रेडलम गाला" और "औविल अर्ली फ़ूजी" को "एम-9 एवं एम-एम 106" रूटस्टॉक्स"पर तैयार किया गया है. प्रदेश में" गाला"," स्कार्लेट स्पर-II"," जेरोमाइन"," रेड वेलॉक्स"," सुपर चीफ "और" रेडलम गाला"नामक किस्में सघन खेती के लिए प्रमुख हैं. सरकार द्वारा भी सेब की सघन खेती के लिए राज्य में किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसके आलावा हिमाचल प्रदेश की बागवानी विकास सोसाइटी ने सेब की सघन खेती के लिए बागवानी विकास योजना तहत उत्पादन की मार्गदर्शिक को भी ज़ारी किया है.

विदेशी सेबों से जबरदस्त टक्कर!

हिमाचल प्रदेश के सेब को देश में आयत यानी की "इम्पोर्ट" से आने वाले सेब से भी जबरदस्त मुकाबला करना पड़ता है जैसे कि इस वर्ष "अमेरिका" से आने वाले सेब पर लगने वाले आयत शुल्क यानी कि "इम्पोर्ट ड्यूटी" को 70 प्रतिशत से कम करके 50 प्रतिशत कर दिया गया है. इसके इलावा इस वर्ष 2023 में अफगानिस्तान के ज़रिये भारत में इरानी सेब लाया जा रहा है जिसके कारण हिमाचल के सेब को गुणवत्ता सहित बाज़ार भाव में जबरदस्त प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा है.

हिमाचल प्रदेश का सेब आपकी टेबल तक पहुचने के लिए जाने कितने सारे मुकाबलों को पार करके पहुचता है. ऐसे में इस सेब को आप जब भी खाए तो गर्व करें कि ये आपके अपने पहाड़ी राज्य से उगाकर आपके लिए तैयार किया गया है. विदेशी सेब कितना भी सस्ता क्यों न हो जो स्वाद आपको हिमाचल के सेब में मिलेगा वह कही भी नहीं मिल सकेगा.

English Summary: story of red-red apple reed apple of economic strength of himachal Published on: 16 November 2023, 04:44 PM IST

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