इस वर्ष देशभर में बसंत पंचमी का त्योहार 22 जनवरी को मनाया जा रहा है। यह त्योहार हिंदू कैलेंडर के हिसाब से माघ मास के शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती पृथ्वी पर प्रगट हुई थीं। माता सरस्वती ने पृथ्वी पर उदासी को खत्म कर सभी जीव-जंतुओं को वाणी दी थी। इसलिए माता सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान, संगीत, कला और बुद्धि की देवी भी माना जाता है। उन्हीं के जन्म के उत्सव पर वसंत पचंमी का त्योहार मनाया जाता है और सरस्वती देवी की पूजा की जाती है।
बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि सृष्टि की रचना के बाद सरस्वती देवी ने सभी को वाणी दी थी। माना जाता है कि सृष्टि रचियता ब्रह्मा ने जीवों और मनुष्यों की रचना की थी, लेकिन इसके बाद भी वह ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं थे। क्योंकि पृथ्वी पर हर तरफ उदासी छाई हुई थी। तब ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान की अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल की कुछ बूंदे पृथ्वी पर छिड़की। ब्रह्मा जी के कमंडल से धरती पर गिरने वाली बूंदों से एक प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य चार भुजाओं वाली देवी सरस्वती का था। माता सरस्वती के एक हाथ में वीणा थी, दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। इसके अलावा बाकी अन्य हाथों में पुस्तक और माला थी।
ब्रह्मा ने चार भुजा वाली देवी सरस्वती से वीणा बजाने का अनुरोध किया। देवी के वीणा बजाने के साथ-साथ संसार के सभी जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई थी। सरस्वती देवी ने जीवों को वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी। इसलिए बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। मां सरस्वती को विद्या और बुद्धि की देवी माना गया है।
देशभर में विद्यार्थी, लेखक और कलाकार सरस्वती देवी की मूर्ती के सामने पुस्तकें, कलम और वाद्ययंत्र रखकर पूजा करते हैं। लोग प्राकृतिक जल स्रोतों, बाबलियों और झरनों में स्नान कर पीले वस्त्र धारण करते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा के लिए पीले रंग के चावल, पीले लड्डू और केसर वाले दूध का इस्तेमाल किया जाता है।
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