इस साल भागवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन यानि कि जन्माष्टमी दो दिन मनाई जा रही है. दरअसल इस बार जन्माष्टिमी 23 और 24 अगस्त को मनाई जा रही है. इसी दिन श्री कृष्ण भक्त धूमधाम से अपने कान्हा जी का जन्मदिन मनाएंगे. इस मौके पर जहां एक तरफ मंदिरों के बाहर मेले लगेंगे, तो वहीं गलियों में कई तरह की झांकियां लगेंगी. इस दिन चारों तरफ लोग कृष्ण भक्ति में ही डूबे रहेंगे. यहां वृंदावन में ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी के दिन मध्य रात्रि में ही कान्हा का जन्म हो जाने के बाद एक बजकर 55 मिनट पर मंगला आरती की जाएगी. यहां के सभी मंदिरों को भव्य लाइटों और फूलों के सहारे सजाया गया है. साथ ही उनका जन्म के दौरान भी उनको फूलो से स्वागत किया जाएगा.
लोग है असमंजस मेः
बता दें कि इस बार जन्माष्टमी की तिथि को लेकर लोगों में काफी असमंजस की स्थिति है. दरअसल पौराणिक मान्यता के मुताबिक श्रीकृष्ण का जन्म भादो महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इस हिसाब से देखे तो अष्टमी तिथि 23 अगस्त को ही पड़ रही है जबकि रोहिणी नक्षत्र 24 अगस्त को पड़ रहा है. लेकिन अगर पंडितों और ज्योंतिषों की माने तो जन्माष्टमी का व्रत 23 अगस्त को ही रखा जाना चाहिए.
यह है तिथि मुहूर्त
इस बार जन्माष्टमी की तिथि 23 और 24 अगस्त को है. लेकिन अष्टमी तिथि 23 अगस्त को सुबह 8 बजकर 9 मिनट से शुरू होगी और 24 अगस्त 2019 को सुबह 8 बजकर 32 मिनट पर खत्म होगी. साथ ही रोहिणी नक्षत्र का प्रारंभ 24 अगस्त की सुबह 3 बजकर 48 मिनट से लेकर 25 अगस्त को सुबह 4 बजकर 17 मिनट तक है.
व्रत का पारणः
बता दें कि जानकारों के अनुसार जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने वालों को अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के खत्म होने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए. बता दें कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्व होता है.यह हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक थे. ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के आठवें रूप में अवतार लिया था. देश के सभी राज्यों में अलग-अलग हिस्सों में जन्माष्टमी अलग तरीकों से बनाई जाती है. सभी लोग इस दिन कृष्ण की महिमा का गुणगान करते है.
जन्माष्टी का व्रत ऐसे रखें
जो भी भक्त जन्माष्टमी के दिन व्रत रखना चाहते है उनको एक दिन पहले केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए. इस दिन सुबह-सुबह स्नान करके भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद व्रत खोल जाता है.
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