Shardiya Navratri 2024 Date: शारदीय नवरात्रि की मंदिरों और घरों में तैयारियां काफी तेज हो रही है. भक्तजन इन दिनों सारे कष्ट, दुख, परेशनी दूर करने के लिए मां दुर्गा की पुजा अर्चना करते हैं. शारदीय नवरात्रि हर साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पुरे नौ दिन मनाए जाते हैं, लेकिन इस बार तृतीया तिथि में वृद्धि होने के कारण पूरे 10 दिन मनाए जाएंगे. इस हिसाब से 12 अक्टूबर को विजयदशमी मनाई जाएगी. आइये कृषि जागरण की इस पोस्ट में जानें, क्या है इस बार मां दुर्गा का वाहन, शुभ मुहूर्त, घटस्थापना, पूजा सामग्री और पूजा विधि?
इस बार क्या है मां दुर्गा की सवारी?
मान्यताओं के अनुसार, शारदीय नवरात्रि में माता के आगमन और प्रस्थान की सवारी बेहद खास मानी जाती है. देवी मां की सवारी भविष्य में होनी वाली घटनाओं का संकेत देती है. जानकारी के लिए बता दें, नवरात्रि के आरंभ और समापन के दौरान मां दुर्गा की सवारी प्रकट होती है और इस बार मां दुर्गा पालकी पर सवार होकर गुरुवार के दिन आ रही है. मां दुर्गा शारदीय नवरात्रि के आरंभ में जब धरती पर डोली या पालकी में आती हैं, तो इसे अच्छा संकेत नहीं माना जाता है. इसे अर्थव्यवस्था में गिरावट, देश-दुनिया में महामारी, व्यापार में मंदी और हिंसा बढ़ने के संकेत फैलने की आशंका है.
क्या है नवरात्रि का शुभ मुहूर्त?
शारदीय नवरात्रि की कलश स्थापना के लिए इस बार आपको दो शुभ मुहूर्त मिल रहे हैं. पहला शुभ मुहूर्त- 3 अक्टूबर की सुबह 6 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 22 मिनट तक है. सुबह में घट स्थापना के लिए आपको 1 घंटा 6 मिनट का समय मिलेगा. दूसरा शुभ मुहूर्त- 3 अक्टूबर की दोपहर में अभिजीत मुहूर्त है.
घटस्थापना का महत्व
महिलाएं साफ कलश में हल्दी की गांठ, सुपारी, दुर्वा और पांच तरह के पत्ते से कलश को सजाती हैं. फिर उसके नीचे बालू की वेदी बनाकर जौ को बोया जाता है और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा की पाठ किया जाता है.
नवरात्रि पूजा की सामग्री
- लाल चंदन
- दुर्वा
- लाल चुनरी
- मिठाई
- जौ
- पान और पान के पत्ते
- कलश
- नारियल
- हरी इलायची
- लाल वस्त्र
- घी का दीपक
- अक्षत
- लौंग
- लाल वस्त्र
- श्रृंगार का सामान
नवरात्रि पूजा की विधि
नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. अब एक चौकी बिछाकर वहां पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाएं. फिर रोली और अक्षत से टीका करें और फिर वहां माता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद विधि विधान से माता की पूजा करें.
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