 
            गौरैया का नाम तो आपने सुना ही होगा. कुछ लोग तो ऐसे भी होंगे, जिन्होंने केवल नाम ही सुना होगा. जी हां, आपने सही सुना, क्योंकि अब जगह-जगह अपनी मीठी आवाज़ से लोगों का दिल जीतने वाली यह नन्हीं चंचल चिड़िया विलुप्त होती जा रही है. वहीं कुछ लोग इन्हें बचाने के लिए मुहिम भी चला रहे हैं. ऐसे ही कुछ लोगों और संस्थाओं की वजह से आज आपको शायद कहीं यह गौरैया देखने को मिल जाए. इन्हीं को बचाने के लिए 20 मार्च गैरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है. आइए आपको इनसे जुड़ी कुछ अनोखी और दिलचस्प बातें बताते हैं-
 
            इसका जीवनकाल लगभग दो साल का होता है और यह पक्षी ज्यादा तापमान में नहीं रह सकते.
 
            यह होम स्पैरो (home sparrow) के नाम से जानी जाती है और लगभग छह अंडे देती है.
 
            आपको बता दें कि आंध्र यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक गौरैया की आबादी में लगभग 60 फीसदी से अधिक की कमी पाई गई है.
 
            ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ बर्ड्स‘ ने इस चुलबुली और चंचल पक्षी को ‘रेड लिस्ट‘ में शामिल कर दिया है.
 
            ये शहरी इलाकों से ज़्यादा यह गांव-देहात में पाई जाती हैं. ग्रामीण इलाकों में भी पेड़ काटे जा रहे हैं. इसके चलते अब वहां भी ये कम ही देखने को मिलती हैं.
गांव में कच्चे, यानी मिटटी के मकान गौरैया के लिए प्राकृतिक वातावरण हुआ करते थे. वहीं पेड़ों को काटकर बनी बड़ी-बड़ी इमारतों और मकानों ने इस चिड़िया के घर छीन लिए हैं.
गौरैया का मनपसंद भोजन घास के बीज हैं. इस समय गौरैया के लिए सबसे बड़ा खतरा कीटनाशक हैं. रसायन के उपयोग से फसलों और खेतों के कीट नष्ट हो जाते हैं, और इसी के चलते इनका भोजन भी इन्हें नहीं मिल पाता है. ऐसे में इनके लिए भोजन का भी संकट खड़ा हो गया है.
 
                 
                     
                     
                     
                     
                                                 
                                                 
                         
                         
                         
                         
                         
                    
                
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