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दुनिया में मुझसे बड़ा कमीना पैदा नहीं हुआ !

ये मुझे कभी अच्छे नहीं लगे. जब से फिल्में देखना शुरु किया उसी दिन से चाहता था कि ये कब मरे. लेकिन जब थोड़ी बहुत समझ आई तब पता चला कि ये तो किरदार थे. इनका असल जिंदगी से कुछ लेना देना नहीं है. 12 जनवरी 2005 को जब अमरीश पुरी ने दुनिया को अलविदा कहा तब पता चला कि मेरी जिंदगी में ये नाम 'अमरीश पुरी' कितने मायने रखता था. अपनी जो छाप छोड़कर ये कलाकार गया है वो अब कभी नहीं मिटने वाली. आज 22 जून को इनका जन्मदिन है लेकिन दिल ये मानने को तैयार नहीं कि इन्हें गए हुए 14 साल हो चुके है. कल ही तो मैनें दिलजले देखी.

गिरीश पांडेय
amrish puri

ये मुझे कभी अच्छे नहीं लगे. जब से फिल्में देखना शुरु किया उसी दिन से चाहता था कि ये कब मरे. लेकिन जब थोड़ी बहुत समझ आई तब पता चला कि ये तो किरदार थे. इनका असल जिंदगी से कुछ लेना देना नहीं है. 12 जनवरी 2005 को जब अमरीश पुरी ने दुनिया को अलविदा कहा तब पता चला कि मेरी जिंदगी में ये नाम 'अमरीश पुरी' कितने मायने रखता था.  अपनी जो छाप छोड़कर ये कलाकार गया है वो अब कभी नहीं मिटने वाली. आज 22 जून को इनका जन्मदिन है लेकिन दिल ये मानने को तैयार नहीं कि इन्हें गए हुए 14 साल हो चुके है. कल ही तो मैनें दिलजले देखी. जहां ये अजय देवगन से कहते हैं कि - 'आतंकवादी की प्रेम कहानी नहीं होती, नहीं होती आतंकवादी की प्रेम कहानी'.  इस फिल्म में भोले-भाले श्याम को शाका बनाने वाला कौन - अमरीश पुरी. सिमरन और राज की जोड़ी फिकी होती अगर उसमें 'बाऊजी' का ट्विस्ट न होता. ज़रा सोचिए ! अगर 'मुगेंबो  खुश न होता' तो क्या होता ? सनी देओल न तो 'तारीख पर तारीख' लेता और न ही 'ढ़ाई किलो का हाथ दिखाता'.

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आज भी फिल्में रिलीज़ होती हैं शुक्रवार के शुक्रवार. कुछ लव स्टोरी होती हैं, कुछ कॉमेडी तो कुछ हवस और जिस्म की नुमाइश से भरी हुई. विलेन का काम ज़ोरों पर है और तो और अब एक फिल्म में कईं विलेन होते हैं लेकिन न तो उनकी आंखों में दहकते शोले होते हैं और न ही उनके डायलॉग्स में आग. हर कोई साइलेंट विलेन बनना चाहता है. डायलॉग्स से जैसे तौबा कर ली हो. महीनों - सालों में कोई डायलॉग ज़ुबान पर चढ़ा तो चढ़ा वरना पूरी फिल्म में सूखा ही सूखा. 

अब तो साउथ फिल्मों का ऐसा जोर है कि हिंदी फिल्मों के निर्देशक भी उठा-उठा के उन्हीं की कहानी चेप रहे हैं. अब मार-धाड़ को तवज्जो दी जा रही है जिससे फिल्म के दूसरे पहलू कमजोर पड़ गए हैं. अभी-अभी की बात है. सोशल मीडिया पर एक डायलॉग आग की तरह फैल गया - 'आओ कभी हवेली पर'. ये भी अमरीश पुरी के ही कईं हीट डायलॉग में से एक है. तो आखिर क्या वजह है कि आज विलेन अपनी छाप छोड़ने में नाकाम हैं. वजह अमरीश पुरी का न होना नहीं है, वजह है किरदार और डायलॉग्स को महसूस न करना, वजह है किरदार और डायलॉग को सही डीलीवर न करना और वजह है इमेज से डरना. अमरीश पुरी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि - 'हमेशा अपने काम को सीरियसली लो अपने आप को नहीं'.

English Summary: amrish puri birthday special on today day Published on: 22 June 2019, 02:24 PM IST

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