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किसानों के लिए बेहद आवश्यक है कृषि मूल्य निर्धारण नीति, जानें इसके लाभ और प्रकार

Agricultural pricing policy: राष्ट्रीय और घरेलू दोनों स्तरों पर खाद्य सुरक्षा हासिल करना आज भारत की प्रमुख चुनौतियों में से एक है. वर्तमान में खाद्य सुरक्षा प्रणाली और मूल नीति में मूल रूप से तीन उपकरण शामिल है. कृषि मूल्य नीति किसानों के उत्पादन, रोजगार और आय में सुधार करके खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है.

KJ Staff
कृषि मूल्य निर्धारण नीति के प्रकार और लाभ  (Picture Credit - FreePik)
कृषि मूल्य निर्धारण नीति के प्रकार और लाभ (Picture Credit - FreePik)

Agricultural pricing policy: कृषि मूल्य नीति समान रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में विकास वह सामान्य हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. सरकार की मूल्य नीति का प्रमुख अंतर्निहित उद्देश्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों की रक्षा करना है, राष्ट्रीय और घरेलू दोनों स्तरों पर खाद्य सुरक्षा हासिल करना आज भारत की प्रमुख चुनौतियों में से एक है. वर्तमान में खाद्य सुरक्षा प्रणाली और मूल नीति में मूल रूप से तीन उपकरण शामिल है खरीद मूल्य/न्यूनतम समर्थन मूल्य, बफर स्टॉक और सार्वजनिक वितरण प्रणाली, कृषि मूल्य नीति किसानों के उत्पादन, रोजगार और आय में सुधार करके खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण उपकरणों में से एक है. खाद्य सुरक्षा बनाए रखने और किसानों ने की आय बढ़ाने के लिए किसानों को लाभकारी मूल प्रदान करने की आवश्यकता होती है.

निसंदेह कृषि मूल्य में तीव्र उतार चढ़ाव के हानिकारक परिणाम होते हैं. उदाहरण के लिए कुछ वर्षों में किसी विशेष फसल की कीमत में भारी गिरावट से उसे फसल के उत्पादकों को भारी नुकसान हो सकता है. इससे न केवल आय कम हो जाएगी बल्कि आने वाले वर्ष में वही फसल उगाने का उत्साह भी कम हो जाएगा. यदि यह लोगों का मुख्य खाद्य पदार्थ होगा, तो आपूर्ति की मांग से कम रहेगी. इससे सरकार मजबूर होगी और आयात करके अंतर को काम करेगी (बफर स्टॉक ना होने की स्थिति में).
दूसरी ओर यदि किसी विशेष अवधि में किसी विशेष फसल की कीमतें तेजी से बढ़ती है तो उपभोक्ता को निश्चित रूप से नुकसान होगा. यदि किसी विशेष फसल की कीमतें लगातार बढ़ती है, तो इसका अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर नकारात्मक संकट पूर्ण प्रभाव पड़ सकता है.

कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य

  • मंदी के समय (आमतौर पर फसल काटने का समय) किसानों को लागत से कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है, जो अक्सर भारत जैसे निम्न क्रय-शक्ति और कम बाजार की मांग वाले देश में होता है.
  • फसल खराब होने के वर्ष में कृषि कीमतें के नियंत्रण से बाहर नहीं होती.
  • अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक वृद्धि को अधिकतम करने वाली कीमत प्रबल होती हैं.

कृषि मूल्य निर्धारण नीति के उद्देश्य

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि की स्थिति के आधार पर कृषि मूल्य नीति के उद्देश्य अलग-अलग देश में भिन्न भिन्न होते हैं. आमतौर पर विकसित देशों में मूल नीति का प्रमुख उद्देश्य कृषि आय में भारी गिरावट को रोकना है, जबकि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में कृषि उत्पादन में वृद्धि करना है.

भारत में कृषि मूल्य नीति के प्रमुख उद्देश्य

  • खाद्यान्न एवं गैर खाद्यान्न की कीमतें और कृषि वस्तुओं के बीच उचित संबंध सुनिश्चित करना.
  • उत्पादकों और उपभोक्ताओं को हितों के बीच संतुलन करना.
  • मूल्य वृद्धि के चक्रीय मौसमी उतार-चढ़ाव को न्यूनतम सीमा तक नियंत्रित करना.
  • देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच मूल का व्यापक एकीकरण लाना ताकि विपणन योग्य अधिशेष का नियमित प्रवाह बनाए रखा जा सके.
  • मुख्य खाद्य वस्तुओं को सामान मूल्य स्तर को स्थिर करना.
  • देश में विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाना.

कृषि मूल्य नीति के प्रकार

नकारात्मक मूल्य नीति
आर्थिक विकास में तेजी लाने की नीति के संदर्भ में, बड़ी संख्या में देशों द्वारा अपने विकास के प्रारंभिक चरण में नकारात्मक कृषि मूल्य नीति को अपनाया जाता है. ऐसी नीति का मुख्य उद्देश्य खाद्य और कच्चे माल के कीमतों को अपेक्षाकृत कम रखना होता था (जब इसकी तुलना औद्योगिक उत्पादों के कीमतों से की जाती है) ताकि औद्योगिक और तृतीयक क्षेत्र के विकास को सुविधाजनक बनाया जा सके. दूसरे शब्दों में व्यापार की शर्तों को जानबूझकर कृषि क्षेत्र के लिए प्रतिकूल रखा जाता है

सकारात्मक मूल्य नीति
आज कई देश इस प्रकार की नीति का पालन करते हैं, जिसमें कृषि क्षेत्र पर काम और किसान को उसकी उपज के लिए उचित मूल का आश्वासन दिया जाता है. विषय मुख्य रूप से बड़ी संख्या में विकासशील देशों द्वारा अपनाया गया है, क्योंकि बड़ी संख्या में विकासशील देशों में आय, रोजगार और निर्यात के दृष्टिकोण से कृषि सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है. बढ़ती जनसंख्या बढ़ती आय के कारण खाद्यान्न की मांग बढ़ रही है जिसे केवल कृषि उत्पादन बढ़कर ही पूरा किया जा सकता है.

आय पर प्रभाव

  • भारत में 86% किसान छोटे और सीमांत हैं, उनके पास कीमतें कम होने पर बाजार में आपूर्ति रोकने की आर्थिक शक्ति नहीं है और उन्हें अपने उपज बेहद कम कीमतों पर बेचनी पड़ती है. कीमतों में अचानक गिरावट जो अत्यधिक उत्पादन के कारण हो सकती है या फसल व्यापारियों द्वारा रणनीतिक मिली भगत व्यवहार (जमाखोरी, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी) की स्थिति में कृत्रिम रूप से फसल कीमतों को कम कर देती है. किसानों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यह न केवल गरीबी और असमानता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ता है तथा औद्योगिक उत्पादों एवं सेवाओं की मांग कम होने लगती है. पूरी अर्थव्यवस्था को गिरावट का सामना करना पड़ सकता है.
  • दूसरी ओर कृषि मूल्य नीति ने किसानों को उनके उत्पादन को बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रेरणा एवं प्रोत्साहन प्रदान करके और इसकी कीमतों का समर्थन करके आवश्यक लाभ प्रदान किया है. इन सबके परिणाम स्वरुप किसान के स्तर के साथ-साथ उनके जीवन स्तर में भी वृद्धि हुई है.
  • कृषि मूल्य नीति क्षेत्र के आधुनिकरण के माध्यम से किसानों को अपना कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान कर रही है न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार द्वारा प्रभावी ढंग से निर्धारित किया जाता है जो किसानों के हितों की रक्षा करते हैं.
  • कीमतों के विभिन्न सेटों को तात्पर्य संबंधित उत्पादकों के लिए आय के विभिन्न सेटों से हैं, जो देश के फसल पैटर्न में बदलाव लाते हैं. उदाहरण के लिए सरकार से आवश्यक सहयोग प्राप्त करके आधुनिक तकनीक को अपनाने से गेहूं और चावल का उत्पादन काफी बढ़ा है. लेकिन ऐसे मूल्य समर्थन के अभाव में दलहन और तिलहन के उत्पादन में कोई खास बदलाव नहीं आ सका.
  • कृषि मूल्य नीति ने कृषि उत्पादों की कीमत को काफी हद तक स्थिर कर दिया है. इसमें कृषि उत्पादों की कीमत में अनुचित उतार-चढ़ाव को सफलतापूर्वक रोका है. इससे देश के उपभोक्ताओं और उत्पादकों दोनों पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है.
  • अन्य चीजों को स्थिर रखते हुए कृषि कीमतों में वृद्धि से आपूर्ति पक्ष के माध्यम से कृषि उत्पादकों की आय में वृद्धि होगी. दूसरी ओर इसका मतलब कृषि वस्तुओं की खरीदारों की वास्तविक आय में संकुचन होगा. इसलिए भारत जैसे देश में जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीब है, कम कीमतों से गरीब उपभोक्ताओं को फायदा होगा लेकिन उत्पादक गरीब हो जाएगा. दूसरी ओर उंची कीमतों उत्पादकों को तो फायदा पहुंचाएगी लेकिन खरीदारों को नुकसान पहुंचाएगी. ऐसी समस्या के न्याय संगत समाधान के लिए राज्य के हस्तक्षेप की आवश्यकता है.
  • कृषि उत्पादों का उपयोग कई औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन में इनपुट के रूप में किया जाता है. इसलिए कृषि कीमतों में विधि से ऐसे औद्योगिक सामानों की कीमतें बढ़ जाएगी. इसलिए औद्योगिक वस्तुओं की मांग में गिरावट आएगी जिसके परिणाम स्वरुप उनके उत्पादन और रोजगार में कमी आएगी.
  • साथ ही कृषि कीमतों में सापेक्ष वृद्धि अर्थव्यवस्था की क्षेत्रीय संरचना को भी प्रभावित करती है. उदाहरण के लिए ऊंची कृषि कीमत उत्पादकों के लिए फायदेमंद है लेकिन उन उपभोक्ताओं के लिए हानिकारक है जिनके पास औद्योगिक और वस्तुएं और सेवाओं खरीदने के लिए कम पैसे बचे हैं, जिससे उनकी समग्र मांग में गिरावट आई है.
  • लेकिन कृषि मूल्य नीति से चीनी, सूती कपड़ा, वनस्पति तेल आदि कृषि उद्योग को भी लाभ हुआ है. इस नीति ने कृषि वस्तुओं की कीमतों को स्थिर करके देश के कृषि उद्योगों के लिए उचित मूल्य पर प्राप्त मात्रा में कच्चे माल का प्रावधान किया है.
  • अधिक लाभप्रदता उत्पादकों को किसी क्षेत्र में कृषि के सामने आने वाली स्थानीय चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए नई तकनीक को पेश करके फसल की उपयोगिता बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है. उदाहरण के लिए पंजाब और हरियाणा में किसानों से अनाज खरीदने में सरकार द्वारा की जाने वाली नियमित खरीद और सुनिश्चित उच्च कीमतों ने इन राज्यों के किसानों को अधिक उत्पादक तकनीकी अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है. आधिकारिक खरीद की सुविधा केवल मुट्ठी भर किसानों तक पहुंचती है. यह खरीद कुल खदान उत्पादन का वह बमुश्किल 15% कवर करती है.

रबीन्द्रनाथ चौबे
ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण
बलिया, उत्तरप्रदेश.

English Summary: agricultural pricing policy is very important for farmers know benefits and types Published on: 31 July 2024, 06:15 PM IST

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