देश में बढ़ती महंगाई आम जनता के लिए परेशानी का सबक बनी हुई है, अब मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी से आम जनता को एक बार फिर जोरदार झटका लगा है. बता दें कि खाद्य वस्तुओं और कच्चे तेल के महंगा होने से थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 15.88 प्रतिशत के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गयी, जो अगस्त 1991 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है. तो वहीं अप्रैल माह में थोक मुद्रास्फीति 15.08 थी और बीते वर्ष मई में 13.11 फिसद थी.
ईंधन और बिजली मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 40.62% हो गई, जो मार्च में 31.8% और अप्रैल में 38.7% थी. थोक खाद्य मुद्रास्फीति जो कि अप्रैल माह में 8.9% कम हुई थी. मार्च माह में इसमें 9.3% से बढ़कर मई में 10.9% तक का इजाफा हो गया.
बात करें एलपीजी मुद्रास्फीति की जो कि अप्रैल में 38.5% से बढ़कर मई में 47.7% हो गई. जबकि डीजल मुद्रास्फीति अप्रैल में 66.1% से 65.2% हो गई. पेट्रोल मुद्रास्फीति अप्रैल में 60.6% से थोड़ी कम होकर मई में 58.8% हो गई, बता दें कि सरकार ने 21 मई को पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती भी की थी.
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने कहा कि "मई 2022 में मुद्रास्फीति की उच्च दर मुख्य रूप से पिछले वर्ष की तुलना में खनिज तेलों, कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, खाद्य पदार्थों, मूल धातुओं, गैर-खाद्य वस्तुओं, रसायनों और रासायनिक उत्पादों और खाद्य उत्पादों की कीमतों में वृद्धि के कारण हैं".
तो वहीं मुद्रास्फीति के संदर्भ में आईसीआरए की मुख्य अर्थशास्त्री, अदिति नायर ने कहा कि “वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से जून 2022 के लिए थोक मुद्रास्फीति में और बढ़ोतरी के आसार हैं , यहां तक कि रुपये के कमजोर होने से आयात की लागत में वृद्धि होने की संभावना है. नतीजतन, हम उम्मीद करते हैं कि जून में थोक मूल्य मुद्रास्फीति 15% से 16% पर बनी रहेगी”.
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अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि आने वाले समय में RBI भी ब्याज दरों में इजाफा कर सकता है. थोक मुद्रास्फीति में आए इस उछाल से खाद्य वस्तुओं की कीमतों में उछाल देखने को मिलेगा, जो कि आम जनता के लिए मुसीबत से कम नहीं है.
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