किसानों के लिए सरकार कई तरह की योजनाओं पर काम करती रहती है, जिससे किसानों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े. लेकिन फिर भी उन्हें अपनी फसल को लेकर कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. बता दें कि इस बार किसानों के लिए सबसे बड़ी परेशानी गेहूं की कटाई (wheat harvesting) है. बताया जा रहा है कि बाजार में गेहूं कटाई पर खर्च अधिक बढ़ गया है. जिससे किसान भाई गेहूं की कटाई के लिए दर-दर भटक रहे हैं.
क्यों बढ़ा गेहूं कटाई पर खर्च (Why the expenditure on harvesting wheat increased)
किसानों का कहना है कि गेहूं कटाई पर खर्च (cost of harvesting wheat) बढ़ने का मुख्य कारण यह है कि फरवरी महीने के बाद से ही बारिश के नहीं होने से क्षेत्र में कनक का झाड़ घटने लगे हैं और साथ ही अधिक गर्मी पड़ने से दाने का आकार भी छोटा हो गया है. जैसे कि आप जानते हैं, बैसाखी के त्योहार के बाद से कनक पककर कटने के लिए तैयार हो जाती है, लेकिन इस बार किसानों में फसल को लेकर चिंता बनी हुई है. इस चिंता के पीछे कटाई के लिए लेबर व अन्य कई सुविधाएं ना मिलना है.
कनक फसल में किसानों की परेशानी (Farmers' trouble in Kanak crop)
इस विषय में दातारपुर किसानों का कहना है कि जब हमने प्रवासी श्रमिकों से फसल कटाई की बात की तो उन्होंने सबसे पहले समय नहीं होने के बारे में कहा और साथ ही मजदूरों ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ महीने तक बहुत बुकिंग हैं.
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किसानों के ज्यादा जोर देने पर श्रमिकों ने कहा की अगर कनक कटवानी है, तो आपको प्रति एकड़ 5 हजार रुपए के साथ दिन में तीन बार चाय और शाम के समय दारू की व्यवस्था करनी होगी. उनका कहना है कि अब स्थानीय लोग कटाई में रुचि नहीं रखते हैं. इस आधार पर किसानों का कहना है कि खेती अब मुनाफे का नहीं घाटे का धंधा बनती जा रही है.
प्रति एकड़ कनक की फसल (Kanak's crop) का खर्च आमदनी से कहीं ज्यादा है और साथ ही अगर किसान इसकी कटाई करवा भी लेते हैं, तो उन्हें मंडीकरण के लिए ट्रैक्टर भाड़ा, लोडिंग, लेबर की बिजाई-कटाई तथा गहाई के वक्त चायपान और दारू तक देना होगा और इसके अलावा लावारिस पशुओं द्वारा किए जाने वाले नुकसान का भी खतरा भी है. ऐसे में किसानों को कहना है कि सरकार के दावों और वादों से किसान भाइयों की आमदनी में वृद्धि कैसे होगी.
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