आज जलस्तर का जो हाल है उससे कोई अंजान नहीं है. दिनोंदिन पानी कम होता जा रहा है. कुछ वैज्ञानिकों ने तो यहां तक कहा है कि 2030 तक भारत की 40 % आबादी पानी को तरसेगी. सरकार के पास भी कोई जादू की छड़ी नहीं है की घुमा दे और पानी की स्थिति सुधर जाए. तो ऐसे हाल में किया क्या जाए ? कुछ महत्वपूर्ण और सख्त कदम उठाने होंगे, नहीं तो पानी नहीं बचेगा.
सरकार और जनता का साथ
सबसे ज़रुरी यही है. सरकार की कोई भी योजना तभी कामयाब होती है जब जनता कधें से कंधा मिलाकर साथ चलती है. पानी को बचाना है तो सरकार को कुछ योजनाएं और सख्त फैसले लेने होंगे और जनता का काम ये होगा कि उन फैसलों पर जितना हो सके अमल करे. कुछ लोग कहते हैं कि सरकार का काम है वो देखे, लेकिन अब देखने वाली बात ये है कि सरकार तो चुनिंदा लोगों की है लेकिन आवाम बहुत बड़ी तादाद मे है. अगर जनता सरकार का साथ देगी तो ज़रुर कोई हल निकलेगा. विशेषकर शहरों में बसने वाली जनता पानी बहुत बर्बाद करती है. शहरों की आबादी पानी की कीमत नहीं समझती. ये एक कड़वा सत्य है. सुबह पानी पीने से लेकर नहाने तक हर व्यक्ति कम से कम 7 से 10 लीटर पानी बर्बाद कर देता है.
किसान को भी करनी होगी पहल
देश की कृषि व्यवस्था को बनाए रखना है तो किसान को भी कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे. सबसे पहले तो सरकार की ओर से किसानों को संदेश पहुंचे की ऐसे समय में जब कृषि क्षेत्र पानी की किल्लत झेल रहा है तो किसान धान की खेती कुछ समय के लिए बंद कर दें. इसकी वजह एक ही है कि धान सबसे अधिक पानी की खपत करने वाली फसल है. पिछले कईं सालों में कुछ किसानों ने धान उगाना भी बंद कर दिया है. क्योंकि, धान की फसल के लिए पानी की आपूर्ति नहीं हो पा रही थी. समय की मांग देखते हुए किसानों को भी हाथ बढ़ाने होंगे.
कुछ समय के बाद मिलेंगे बेहतर परिणाम
कुछ समय की तकलीफ से यदि भविष्य बेहतर होता है तो तकलीफ उठा लेनी चाहिए. पानी को लेकर अभी लिए गए फैसलों से यदि कृषि और उद्योग जगत पटरी पर आ जाता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है. पिछले कुछ सालों से कृषि जगत पानी की भारी किल्लत झेल रहा है. जिसके चलते फसलों पर इसका खासा असर पड़ा है. देखने वाली बात ये होगी कि सरकार और प्रशासन जल संकट के इस दौर से निजात पाने के लिए क्या फैसले लेती है.
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