क़ृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की माँग हर वर्ष बढ़ती जा रही है. ओद्योगिक और घरेलू उपयोग में आने वाले जल की बड़ी मात्रा दूषित जल के रूप में जलाशय के स्रोतों में मिल जाती हैं. अब तो जमीन के भीतर के जल स्रोतों का भी स्तर दिन प्रति दिन गिर रहा हैं. चूंकि एक बहुत बड़ा पानी का हिस्सा हम क़ृषि क्षेत्र में इस्तेमाल करते हैं. तकरीबन 70 प्रतिशत दूषित जल हर दिन हिन्दुस्तान के घरों से निकल कर नालियों से मुख्य जलाशय के ओर बढ़ रहा और ख़राब कर रहा है. सुझावकारों का कहना हैं कि अंग्रेजी में इसे grey water बोला जाता है जो अब शहरों तक की समस्या नहीं बन कर रह गया है गाँव की भी समस्या बनता जा रहा है.
जलाशय को पहुंच रहा है नुकसान
उद्योग और खरीद की पकड़ अंदरूनी क्षेत्रों में भी देखने को मिलती हैं, गाँव में भी डिटर्जेंट पाउडर, शैम्पू का इस्तेमाल आये दिन जोर पकड़ रहा हैं. इन सब इस्तेमाल से निकले पानी का बहुत बड़ा हिस्सा नदियों व जमीन के भीतर के जलाशय को नुकसान पहुँचा रहा हैं तो सवाल यह हैं कि आखिर इस प्रदूषण के कारण को सामान्य कैसे किया जाये. क़ृषि के सन्दर्भ में पानी की तंगी हमेशा देखने को मिलती हैं क्योंकि सटीक तरीको को जमीनी स्तर पर पारित करने में हम असफल हो जाते हैं. दूषित जल (grey water) का प्रमुख इस्तेमाल क़ृषि क्षेत्र में हम उसेक मशीनी ट्रीटमेंट के बाद कर पाएंगे .
प्रदूषित पानी का हो सकता ठीक से उपयोग
क़ृषि तकनीक और सही व्यवस्था से इस उभरते जल कचरे को अपने जमीनों की उपज बढ़ाने में लगा सकते हैं . कैलिफ़ोर्निया इस संदर्भ में हमसे बहुत आगे हैं हमें वहा से सही सीख और सुझाव लेकर इसे पारित करना चाहिए . छोटे स्तर पर भी हम प्रदूषित जल का उपयोग कर सकते हैं जैसे कि घरों में पौधो को पानी देना, बाथरूम के फ्लश को दूषित जल से दोबरा इस्तेमाल करना, घरों में पोछा डिटर्जेंट के पानी से लगवाना इत्यादि. बढ़ते जल संकट और बढ़ती जनसंख्या दोनों इशारा कर रही कि हमें थोड़ा व्यवस्थित हो कर सोचना चाहिए. आज हमारे पास जल बहुत है आम बात यह है कि हमारे पास नदिया हैं पर कल को यही नदिया प्रदूषित हो जाएंगी अगर इसी तरह हम बिना सोचे बिना ढांचे के प्रदुषण को बढ़ाते रहे तो पानी और ज्यादा प्रदूषित हो जाएगा. पानी के बिना क़ृषि क्षेत्र पंगु बन जाएगा. हम आज एक ऐसे समाज को विकसित करेंगे जहा शायद वाई-फाई कि गति तो बहुत अच्छी हो पर बच्चे दाल चावल नहीं जानते हो और किसी ने सच कहा है बिना जड़ो का पेड़ बस खड़ा होता हैं जिन्दा नहीं रहता.
जल सुधार पर हो रहे कार्य
वैसे पिछले वर्षो में grey water की सुधार व्यवस्था पर काफ़ी काम हुए है, गंगा के किनारे के कई बड़े दूषित जल पाइप को अब सीधे नदी में नहीं भेजा जाता इसका बल्कि इससे पहले सुधार प्रक्रिया की जाती हैं परन्तु जनसंख्या की लगातार वृद्धि कार्बन फूटोरिनट को हर पल बढ़ा रही है. हमें हर पहलु को एक दूसरे से जोड़ कर देखना होगा की सुधार की किस तरह से मध्यस्था और बेहतर हो.
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