सब्जी उत्पादक किसान कोरोना के कहर से बेहाल हो चुके हैं. इनके सारे ख्वाब मुकम्मल होने से पहले ही ध्वस्त हो गए. सब्जी उत्पादक किसानों की बदहाली का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि जिन सब्जियों को उगाने में इन्हें 10 से 12 रूपए की उत्पादन लागत आ रही है, उसे अब यह पशुओं को खिलाने पर मजबूर हो चुके हैं.
अपनी लड़खड़ाती जुबान से अपनी बेहाली को बयां करते ये किसान कहते हैं कि जिन सब्जियों के उत्पादन में इन्हें 10 से 12 रूपए की लागत आ रही है, भला हम उसे मंडियों में महज 4 से 6 रूपए में कैसे बेच दें? इसमें तो हमें कहीं दूर-दूर तक मुनाफा नहीं दिख रहा है. मजबूरन, अब यह किसान अपनी सब्जियों को पशुओं को खिलाने पर मजबूर हो चुके हैं.
यकीनन, किसान भाइयों ने जिन सब्जियों को मेहनत से उगाया है, उसे पशुओं के मुहाने के आगे डालना इनके लिए किसी असहनीय पीड़ा से कम नहीं है, मगर यह भी विषम परिस्थितियों के आगे बाध्य हो चुके हैं. किसानों का कहना है कि नुकसान के साथ फसल बेचने से अच्छा है कि हम इसे पशुओं को ही खिला दें. किसान कहते हैं कि यह सब कुछ कोरोना के बेकाबू हो चुके कहर के वजह से हो रहा है. लॉकडाउन के दौरान सब्जियों की मांग कम हो चुकी है. आमतौर पर मांग कम होने की स्थिति में सब्जियों की कीमत में कमी आ जाती है. यही स्थिति मंडियों में भी बनी हुई है. किसानों को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए?
ऐसी स्थिति हर सब्जी उगाने वाले किसानों के साथ है. खासकर, गोभी उगाने वाले किसानों का हाल तो बेहाल हो चुका है. वे भारी नुकसान के साथ सब्जियां बेचने पर मजबूर हो चुके हैं. कोरोना के कहर से बेहाल हो चुके किसान कहते हैं कि पिछले साल तो यही सब्जियां 10 से 12 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बिक गई थी, मगर इस बार ऐसा नहीं हो रहा है. इस बार हमें भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है.
किसानों की है, सरकार से ये मांग
वहीं, ढली मंडी आढ़ती एसोशिएसन के अध्यक्ष हरीश ठाकुर का कहना है कि यह सब कुछ कोरोना के खिलाफ लगाए गए लॉकडाउन की वजह से हो रहा है. सब्जियों की मांग में भारी गिरावट आ गई है. ऐसे में अब किसान इस नुकसान को लेकर सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं, मगर इसे लेकर सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. खैर, अब देखना यह होगा कि इसे लेकर सरकार की क्या कुछ प्रतिक्रिया सामने आती है.
सब कुछ चौपट कर चुका है ‘कोरोना’
गौरतलब है कि मौजूदा समय में समस्त विश्व कोरोना के कहर से त्राहि-त्राहि कर रहा है. सभी देशों की अर्थव्यवस्था थम-सी चुकी है. ऐसे में हर देश अपनी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा है, मगर इस बीच समस्या यह पैदा हो जाती है कि जैसे ही उनकी बेपटरी हो चुकी अर्थव्यवस्था पटरी पर आना शुरू ही होती है कि कोरोना का कहर उन्हें बेहाल करने पर आमादा हो जाता है.
वर्तमान में भारत के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. कल तक कोरोना की पहली लहर का दट मुकाबला कर चुके भारत अपनी बेपटरी हो चुकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में काफी हद तक सफल हो चुका था, मगर अफसोस कोरोना की दूसरी लहर ने सब कुछ चौपट करके रख दिया.
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