किसानों के द्वारा बेहतर उत्पादन के मद्देनजर फसलों को कीट और रोगों के प्रकोप से बचाने के लिए उपयोग में लायी जा रही रही 40 वर्ष पुरानी दवाओं को उत्तराखंड उद्यान विभाग ने अब प्रयोग में ना लेने का निर्णय लिया है. इसके लिए कीटनाशक में 95 फीसद और व्याधिनाशक में 40 फीसद दवाएं बदल दी गई हैं. इससे पहले जिन दवाओं का इस्तेमाल कीट-रोक को रोकने में हो रहा था, उनसे फसल के साथ ही भूमि की उर्वराशक्ति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा था. यही नहीं, जो दवाएं इस्तेमाल में लायी जा रही थीं, उनमें से कई तो विदेशों में पहले से ही प्रतिबंधित हैं.
गौरतलब है कि औद्यानिकी को बढ़ावा देने के साथ ही अच्छा फसल उत्पादन के लिए प्रदेश में 1980 के दशक में प्रचलित कीटनाशक व रोगनाशक दवाओं और खादों का प्रयोग किया जा रहा था. इनके इस्तेमाल के बावजूद न फसल ठीक हो रही थी और न फसल उत्पादन ठीक हो रही थी. बाद में जब इसके पीछे की वजहों की पड़ताल की गई तो पता चला कि कीट-रोग को रोकने वाले 40 साल पुरानी दवाएं अब कीट – रोगों को रोकने में सक्षम नहीं हैं. इनके इस्तेमाल से लाभ मिलने की बजाए फसल को नुकसान पहुंच रहा है. फसलों के साथ ही जमीन में में भी इन दवाओं के तत्वों की मौजूदगी देखने में आ रही है.
जब यह पता चला कि जिन दवाओं को कीट व रोग के प्रकोप से बचाने के लिए प्रयोग किया जा रहा है, उनमें से कई तो विदेशों में प्रतिबंधित हैं. इस सबको देखते हुए उद्यान महकमे ने इन दवाओं को हटाने और इनके स्थान पर अपेक्षाकृत सुरक्षित मानी जाने वाली नई दवाओं के प्रयोग का निर्णय लिया. इसके लिए ऐसी 21 कीट और व्याधिनाशक दवाओं की सूची जारी की गई है.
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