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कृषि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के क्षेत्र में पथप्रदर्शक

नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉरर्पोरेशन (एनआरडीसी) की स्थापना 1953 में भारत सरकार द्वारा की गई थी। इसका प्राथमिक उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) संस्थाआ/विश्वविद्यालयों में खोजी जाने वाली प्रौद्योगिकियों, विधियों, आविष्कारों, पेटेंटस, प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना, विकास करना और उन्हें व्यावसायिक तौर पर उपलब्ध कराना था।

नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉरर्पोरेशन (एनआरडीसी) की स्थापना 1953 में भारत सरकार द्वारा की गई थी। इसका प्राथमिक उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) संस्थाआ/विश्वविद्यालयों में खोजी जाने वाली प्रौद्योगिकियों, विधियों, आविष्कारों, पेटेंटस, प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना, विकास करना और उन्हें व्यावसायिक तौर पर उपलब्ध कराना था। वर्तमान में यह विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में काम कर रही है। अपने अस्तित्व के छह दशकों और अपने कॉर्पारेट लक्ष्यों के अनुपालन के दौरान एनआरडीसी ने भारत में और विदेशों में भी वैज्ञानिक और औद्योगिक समुदायों के साथ मजबूत संबंध बनाए हैं तथा अनुसंधान संस्थाओं, शिक्षा और उद्योग के विस्तृत नेटवर्क का विकास किया है तथा उनके साथ उनकी प्रयोगशालाओं में विकसित तकनीकी जानकारियों के व्यापारीकरण के लिए औपचारिक व्यवस्था की है और अब इसे प्रौद्योगिकी के विस्तृत क्षेत्र के बड़े भंडार के रूप में जाना जाता है। प्रौद्योगिकी के इस क्षेत्र का विस्तार उद्योग के लगभग सभी क्षेत्रों में है जैसे कृषि और कृषि संसाधन, कीटनाशक समेत रसायन, दवाइयां और फार्मास्यूटिकल्स, जैव प्रौद्योगिकी, धातु विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स और इंस्ट्रमेंटेशन, निर्माण सामग्री, यांत्रिकी, इलेक्ट्रीकल और इलेक्ट्रॉनिक्स आदि। इसने 4800 से ज्यादा उद्यमियों को स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के लाइसेंस दिए हैं और बड़ी संख्या में छोटे व मध्यम आकार के उद्योगों की स्थापना करने में सहायता प्रदान की है।

प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के क्षेत्र में पथप्रदर्शक होने के साथ-साथ एनआरडीसी अपने संचारित प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत कई तरह के क्रियाकलाप करता है। यह अनुसंधान के प्रोत्साहन और प्रगति, आविष्कारों और नवाचारों के प्रोत्साहन के लिए होता है। इसमें सराहनीय आविष्कार पुरस्कार, तकनीकी व व्यापारिक सहायता, बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता तथा प्रौद्योगिकी के और अधिक विकास के लिए मूल्यवर्धन सेवाएं आदि शामिल हैं।

एनआरडीसी ने प्रौद्योगिकी और सेवाओं का विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों को सफलतापूर्वक निर्यात भी किया है। एनआरडीसी विकासशील देशों के लिए प्रौद्योगिकी, विश्वसनीय मशीनों और सेवाओं के स्रोत के रूप में विशेष रूप से मान्यता प्राप्त है।

परिकल्पना - भारत में एक अग्रणी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण संगठन बनना।

लक्ष्य - मूल्यवर्धन और साझेदारी द्वारा अनुसंधान और विकास संस्थाओं की नवाचारी, विश्वसनीय और प्रतिस्पर्धी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना, विकास करना, पोषण और उनका व्यापारीकरण करना। अनुसंधान और विकास संस्थाओं तथा उद्योगों को उन प्रौद्योगिकियों के प्रति संवेदनशील बनाना जिन्हें विकसित करने और व्यापारीकृत करने की आवश्यकता है। प्रोग्राम फॉर इंस्पायरिंग इनवेंटर्स एंड इनोवेटर्स (आविष्कारकों और नवीनता लाने वालों को प्रेरित करने के कार्यक्रम) पीआईआईआई के तहत एनआरडीसी के पास देसी खोजपूर्ण क्रियाकलाप को बढ़ावा देने का काम है। इस कार्यक्रम के तहत कॉरर्पोरेशन आविष्कारकों को वित्तीय और तकनीकी सहायता मुहैया कराता है। ऐसे आविष्कार अनुसंधान और विकास संगठनों, शिक्षा संस्थाओं और विश्वविद्यालयों तथा व्यक्तियों से बौद्धिक संपदा सुरक्षा के लिए आते हैं। आमजन तक वैज्ञानिक विकास को हिन्दी मासिक पत्रिका ‘अविष्कार’ द्वारा किया जाता है।

आविष्कार (विज्ञान पत्रिका आविष्कार) - हिन्दी में विज्ञान पत्रिका का प्रकाशन 1971 में शुरू हुआ था। पत्रिका का मुख्य उद्देश्य सूचना का प्रसार करना और नई प्रौद्योगिकी, खोज, नवीनताओं, बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े मुद्दों आदि के बारे में आम जनता के बीच जागरूकता पैदा करना है और छात्रों, वैज्ञानिकों, तकनीशियनों, उभरते उद्यमियों आदि के बीच खोज, नवीनता तथा उद्यमिता की भावना का विकास करना है।

एनआरडीसी इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी प्रबंधन डिविजन निम्नलिखित सेवाओं में सहायता करता है:

- राष्ट्रीय पेटेंट सुरक्षा योजना

- एनआरडीसी की पेटेंट तलाश सुविधा

- पेटेंट कराई हुई खोज के व्यापारीकरण में सहायता

- बौद्धिक संपदा अधिकार संगोष्ठी/कार्यशाला

- अन्य बौद्धिक संपदा सेवाएं

कृषि और खाद्य प्रसंस्करण - ऊष्मा, रोशनी और भंडारण के लिहाज से स्थिर अजादीरैकटिन और इसका फॉर्मूलेशन कस्सावा बायोवेस्ट से बायोपेस्टिसाइड निकालने की प्रक्रिया गहराई में मिट्टी को ढीला करने वाला-सह-उर्वरकजैव उर्वरक सह बायो फंजीसाइड्स बी5 ट्राइकोडर्मा विरेन्स के लिए एक अभिनव संयोजन (कंपोजीशन) नाइट्रीफिकेशन निरोधक नीम के बीज से अजादीरैकटिन निकालना और कीटनाशक बनाना पॉलीमेरिक सीड कोट्सप्लांट आधारित मॉसक्विटो लार्विसाइड बायो पेस्टिसाइडल नेमा जेल नीम के बीज से अजादीरैकटिन निकालना और कीटनाशक बनाना - नीम के बीज से अजादीरैकटिन निकालने की एक प्रक्रिया का विकास किया गया है। इस प्रक्रिया से अजादीरैक्टिन के व्यावसायिक उत्पादन का पर्यावरण और पैदा होने वाली फसल पर भारी असर होने वाला है तथा भिन्न कीटनाशकों के उपयोग से संबंधित परिदृश्य में बदलाव होने वाला है। नई विकसित इस प्रक्रिया में अन्य प्रक्रियाओं के मुकाबले कई फायदे हैं। सबसे प्रमुख फायदों में एक यह है कि अजादीरैक्टिन को अवक्षेपण की प्रक्रिया से अलग किया जाता है ना कि घोल को सांद्रित करके उसका वाष्पीकरण किया जाता है और उसमें घुले (विलयक) को अलग किया जाता है।

बायोपेस्टिसाइडल नेमा जेल - नेमाजेल में एक देसी कीटनाशक नेमाटोड स्टीनरनेमा थर्मोफीलियम (Nematode Steinernema thermophilum) होता है जो प्रयोगशाला में अलग किया गया है। यह नेमाटोड गर्मी बर्दाश्त कर सकता है और मिट्टी व फूल-पत्तों में रहने वाले कीड़ों की विस्तृत रेंज को मार सकता है। इनमें डायमंड बैक मोथ, ग्राम पॉड बोरर, राइस बोरर, व्हाइट फ्लाई, कैबेज बटरफ्लाई, कॉटन बॉल वॉर्म, टोबैको कार्टर पिलर, कट वॉम्र्स, रूट ग्रब्स, डेजर्ट लोकस्ट, मोल क्रिकेट, फील्ड क्रिकेट, राइस ग्रास हॉपर, रेड कॉटन बग, मस्टर्ड एफिड, टरमाइट्स आदि शामिल हैं जो भिन्न फसल को संक्रमित करते हैं। इनमें अनाज, दालें, तिलहन, सब्जियां, फलों के पेड़ आदि शामिल हैं। इन्हें पौधों, खेतों, जानवरों, अलक्षित ऑर्गेनिज्म, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए सुरक्षित माना गया है। खेतों में इसकी कार्यकुशलता छिड़काव किए जाने के बाद 24-48 घंटे में दिखाई देने लगती है और यह माइक्रोऑर्गेनिज्म को बढ़ने नहीं देता है तथा संक्रमण से निपट लेता है।

पॉलीमेरिक सीड कोट्स - इस तकनीकी का संबंध अजादीरैक्टिन-ए के साथ पॉलीमेरिक सीड कोट्स के विकास से है जो बीज के जर्मिनेशन के शेल्फ लाइफ को बेहतर करने और बीज की संपूर्ण गुणवत्ता निखारने, प्लांट की व्यवहार्यता और तंदुरुस्ती के लिए है। यह फंगल/निमाटोड/कीड़ों के संक्रमण को रोकता है जो खेतों के पौधों के लिए कीड़ा है और इसके खिलाफ मेलिआसिन यौगिक में जैव गतिविधि है।

जैव उर्वरक सह बायो फंगीसाइड्स बी 5 - बैक्टीरियम के एक वंश को अलग कर लिया गया है और इसकी पहचान कर ली गई है जिसे जैव उर्वरक, जैव फंजीसाइड और जैव बैक्टेरीसाइड के रूप में बहुत अच्छा पाया गया है। यह पौधे को विकास मुहैया कराता है, मिट्टी/बीज में जन्मे आलू और अन्य सब्जियों तथा सजावटी धान व गेहूँ की फसल में जन्म पैथोजेन को नियंत्रित करने के लिए बायो कंट्रोल एजेंट के रूप में काम करता है। पाया गया है कि यह फॉर्मूलेशन रोल्सटोनिया, सोलनसीरम, फुसैरियम, पायथियम, फायटोप्थोरा, रिजोकटोनिया, स्लेरोटियम, अल्टरनेरिया और पायरीकुलेरिया से होने वाली बीमारियां नियंत्रित करने में प्रभावी है।

कस्सावा बायोवेस्ट से बायोपेस्टिसाइड - कस्सावा से अलग किए गए कीड़े जैसे मूल का उपयोग एक जैव कीटनाशक के रूप में प्रभावी ढंग से किया जा सकता है जिससे राष्ट्रीय महत्त्व की खेती की फसल में बोरर कीट (बोरर पेस्ट) की भिन्न किस्मों का प्रबंध किया जा सकता है। यह पपीता के मिली बग्स और सब्जियों में एफिड्स के प्रबंध के लिए सर्वश्रेष्ठ समाधान है।

आविष्कार जनहित के चालू मुद्दों के साथ विज्ञान, टेक्नोलॉजी, खोज, नवीनताओं और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर केंद्रित रहता है। एनआरडीसी की प्रौद्योगिकी आपके लिए उद्यमियों को प्रौद्योगिकी के बारे में अपडेट करती है जो व्यापारीकरण के लिए एनआरडीसी के पास उपलब्ध है।

 

डॉ. एच. पुरषोत्तम

प्रबंधक् निर्देशक

एनआरडीसी

English Summary: Tractor in the field of agricultural technology transfer Published on: 15 January 2018, 06:31 AM IST

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