उत्तर प्रदेश के गोरखपुर को धान का कटोरा भी कहा जाता है. यहां कई वर्षों से धान की खेती बड़े स्तर पर की जाती है. वहीं अब इस क्षेत्र में कालेधान की फसल की खेती भी होने लगी है. कालाधान/ काला चावल की खेती से किसान सशक्त बनते दिखाई दे रहे हैं. जिले के कई क्षेत्रों में अब इसकी खेती की शुरुआत पहली बार हुई है. जिसमें सहजनवा क्षेत्र में पांच एकड़ और महराजगंज जिले के निचलौल क्षेत्र में करीब 50 एकड़ में किसानों ने इसकी खेती की शुरुआत की है. इस चावल की खासियत यह है कि मधुमेह से संबंधित रोगी भी इस चावल का सेवन कर सकते हैं और यह उनके लिए लाभकारी भी है.
क्षेत्र में कृषि उत्पादक संगठन के सहयोग से इसकी खेती को बढ़ावा मिल रहा है और उनकी मदद से कुछ किसानों ने पांच एकड़ में इसकी खेती की शुरुआत की है. वहीं संस्था के निदेशक का कहना है कि किसानों को इसकी खेती से कई प्रकार के लाभ मिलेंगे और किसान इससे अपनी आय दोगुना ही नहीं बल्कि तीन गुणा तक कर सकते हैं. इस क्षेत्र के लगभग कई किसान मिलकर इसकी खेती कर रहे हैं. मूलत: यह धान मणिपुर और असोम की प्रजाती मानी जाती है. इसके उत्पादन की अगर बात करें तो इससे एक एकड़ में लगभग 15-16 क्विंटल का उत्पादन होता है. इसमें खास बात यह है कि इसकी खेती की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑर्गेनिक है और इसे तैयार होने में लगभग 140-145 दिन का समय लगता है. इसका प्रयोग सेफ फूड के तौर पर भी किया जा सकता है.
कृषि विज्ञान केंद्र के एक डॉ. की मानें तो चावल का रंग इसलिए काला है क्योंकि इसमें विशेष प्रकार के तत्व एथेसायनिन पाया जाता है. वहीं इसमें एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा ज्यादा पाई जाती है और इसमें विटामिन ई, फाइबर और प्रोटीन की मात्रा भी काफी अधिक है. इस चावल के प्रयोग से उच्च रक्तचाप, एलर्जी, गठिया की समस्या भी कम होती है. बता दें कि इस चावल की बिक्री कई बार 300 से 400 रुपए प्रति किलो तक बिकती है जिससे किसान इसकी खेती से आय दोगुनी कर सकते हैं.
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