धान की बढ़ती मांग और खपत के चलते अधिकतर किसान धान और गेहूं की खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं. इस तरह की खेती से फसलों की उपज भी अच्छी होती है और उनका मुनाफा भी अधिक होता है. धान की उपज के लिए मशहूर छत्तीसगढ़ में धान की नई किस्मों को विकसित करने की अपार संभावनाए चल रही है.
ऐसे में प्रदेश के किसानों के लिए अच्छा मौका जल्द ही आ सकता है. साथ ही यह किसानों के लिए एक बड़ी खुशखबरी भी साबित हो सकती है.
आपको बता दें जब भी किसी संस्थान में नई चीज़ें विकसित की जाती है तो वहां के स्थानीय किसानों को इसका अच्छा फायदा मिलता है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने एक ऐसी छत्तीसगढ़ धान 1919 के नाम से नई किस्म विकसित की है. जिसके पौधों में तेज हवा चलने पर भी असर नहीं होगा. धान का पौधा नहीं गिरेगा. इससे किसान नुकसान से बचेंगे और इस धान के किस्म में उत्पादन भी अधिक होगा.
कृषि विश्वविद्यालय के अनुवाशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के प्रोफेसर एवं वैज्ञानिक डा. दीपक शर्मा ने बताया कि विवि ने नवीनतम किस्म छत्तीसगढ़ धान 1919 का परीक्षण करके इसे किसानों के लिए रिलीज भी कर दिया गया है. इस नए किस्म को जी - 93- 2 जर्मप्लाज्म से संकरित करके विकसित किया गया है. उन्होंने बताया कि इस धान का पौधा अर्द्ध बौना है इसकी ऊंचाई करीब 90 सेंटी मीटर तक है. प्रदेश में धान की 23 हजार से ज्यादा किस्में हैं.
धान के इस ख़ास किस्म का तिल्दा में हुआ है परीक्षण
डा. दीपक शर्मा के द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक तिल्दा ब्लाक के भरूवाडीह (खुर्द), केवतरा, अदरडीह और बुढ़ेनी ग्राम में किसानों के खेतों पर किया गया है. इसे छत्तीसगढ़ राज्य बीज उप समिति द्वारा वर्ष 2021 में किसानों के लिए रिलीज की है. इस किस्म के बीजों का परीक्षण खरीफ 2020 में किसानों के पांच एकड़ खेत में किया गया था. यह किस्म किसानों को इतनी पंसद आई की इस वर्ष 2021 में चार ग्रामों में कुल 30 एकड़ क्षेत्रों में यह किस्म लगाई है.
लगातार होती रही निगरानी
वैज्ञानिक डा. दीपक शर्मा की धान विशेषज्ञ वैज्ञानिकों का दल यहां लगातार निगरानी करता रहा है. ऐसे में ग्राम भरूवाडीह (खुर्द) में लगे छत्तीसगढ़ धान 1919 का परीक्षण करने किसानों के खेतों पर पहुंचा और इस किस्म के फसल को देखकर किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी बताया.
कीटनाशक की लागत हुई कम
ग्राम भरूवाडीह (खुर्द) के कृषक पूना राम वर्मा के अनुसार इस किस्म में कीट और बीमारियों का प्रकोप कम होता है. जिसमें प्रति हेक्टेयर 2500-3000 रुपये तक की कीटनाशक में लागत कम हो जाती हैं.
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इसलिए नहीं गिरता है पौधा
यह धान बौना होने के के कारण गिरता नहीं है, जिससे हारवेस्टर से काटने में आसानी होती है. इस वर्ष की फसल के अनुसार इसका उत्पादन 25-26 क्विंटल प्रति एकड़ होने का अनुमान लगाया है. उन्होंने बताया कि ग्राम के अन्य कृषक इस किस्म की बहुत पसंद कर रहे हैं और अगले वर्ष इसकी खेती के लिए बीज की मांग कर रहे हैं.
इतना उत्पादन होगा प्रति हेक्टेयर
धान की इस किस्म का विकास करने वाले धान वैज्ञानिक डा. अभिनव साव के अनुसार सामान्य धान की अन्य किस्मों का पौधा परिपक्वता के समय तेज हवा या तूफान के कारण गिर जाता है, लेकिन यह किस्म छत्तीसगढ़ धान 1919 में यह समस्या नही आती है. इसकी अवधि 130-135 दिन और उत्पादन क्षमता 60-65 क्विंटल प्रति हेक्टयर है.
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